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सोनिया गांधी का MASTER PLAN, 2024 में नीतीश कुमार हो सकते हैं विपक्ष का चेहरा

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सोनिया गांधी का MASTER PLAN, 2024 में नीतीश कुमार हो सकते हैं विपक्ष का चेहरा

सिटी पोस्ट लाइव : बीजेपी के लिए जेडीयू के राष्ट्रिय ऊपाध्यक्ष प्रशांत किशोर एक बड़ी चुनौती बनते जा रहे हैं. लोकसभा में खराब प्रदर्शन के बाद तृणमूल कांग्रेस  2021 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए प्रशांत किशोर की कंपनी I-PAC की मदद से चुनावी रणनीति बनाने में जुटी है. बीजेपी की पश्चिम बंगाल ईकाई ने पीके की टीम पर राज्य सरकार के अधिकारियों के कामकाज में हस्तक्षेप करने, वरिष्ठ अधिकारियों पर उनका आदेश मानने के लिए दबाव बनाने जैसे कई गंभीर आरोप लगाया है. बीजेपी की चिंता इस बात को लेकर है कि एनडीए में रहते हुए भी जेडीयू नेता प्रशांत किशोर उसकी धुर विरोधी ममता बनर्जी की पार्टी का साथ दे रहे हैं?

राजनीतिक पंडित इसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राजनीतिक रणनीति मान रहे हैं. उनका कहना है कि नीतीश कुमार राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं. राजनीतिक समझ के मामले में पीएम मोदी और अमित शाह से कम नहीं हैं. पिछले  लोकसभा चुनाव में जिस तरह से वो केवल  2 लोक सभा सीट अपने पास होते हुए भी अपने लिए 17 सीटें लेने में कामयाब रहे,उनकी राजनीतिक समझ का प्रमाण है. वे हमेशा अपने लिए कई विकल्पों को खोल कर रखने में यकीन रखते हैं.

वैसे अभी भी एनडीए में सबकुछ सामान्य नहीं है. रिश्ते में बहुत कडवाहट आ चुकी है. बीजेपी नीतीश कुमार को लगातार नजर-अंदाज कर रही है, ये जानते हुए भी कि बिहार में वगैर नीतीश कुमार के उसकी दाल नहीं गलनेवाली है.बीजेपी की इस चाल से नीतीश कुमार बखूबी वाकिफ हैं और सोची समझी रणनीति के तहत ही उन्होंने अपने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर को बीजेपी की प्रबल विरोधी ममता बनर्जी की मदद करने की इजाजत दिया है.ये बात किसी से छिपी हुई नहीं है कि नीतीश कुमार की राष्ट्रिय राजनीति में अहम् भूमिका निभाने की इच्छा रही है और इसके लिए वो माकूल अवसर की तलाश में हैं.

सीएम नीतीश कुमार ने जिस तरह से धारा 370 पर चुप्पी साध ली और उनकी पार्टी के दो नेताओं श्याम रजक और आरसीपी सिंह ने परस्पर विरोधी बयान दिए उसका राजनीतिक मतलब है. श्याम रजक ने कहा कि यह काला दिन है जबकि नीतीश कुमार के बेहद करीबी राज्यसभा सांसद आरसीपी सिंह ने ये कह दिया कि अब तो कानून बन गया और सबको यह मानना चाहिए. जाहिर है पहले विरोध भी जाता दिया फिर समर्थन भी दे दिया.

दरअसल, 2020 के आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर दोनों ही पार्टियां अपनी रणनीति बना रही हैं. इसमें बड़ा भाई कौन होगा इसको लेकर भी अभी फैसला होना बाकी है. ऐसे में सीएम नीतीश पहले से ऐसा माहौल बनाए रखना चाहते हैं कि बीजेपी को हमेशा ये एहसास होता रहे कि उनका साथ उसके लिए बेहद जरुरी है.लोक सभा चुनाव में भी इसी रणनीति के जरिये नीतीश कुमार बीजेपी से 17 सीटें लेने में कामयाब हुए थे और विधान सभा में भी इसी को आजमाना चाहते हैं.

नीतीश कुमार बीजेपी के साथ रहने हुए और सरकार चलाते हुए भी हमेशा अपने अजेंडे पर काम करते रहे हैं. उन्होंने कभी अपने सेक्युलर क्रेडेंशियल के साथ समझौता नहीं किया.तीन तालाक बिल और धारा 370 के खिलाफ वोटिंग के समय उनकी पार्टी का बायकॉट कर जाना इस बात का संकेत है कि नीतीश कुमार बीजेपी के साथ बने रहना तो चाहते हैं लेकिन अपने सेक्यूलर क्रेडेंशियल की कीमत पर बिलकुल नहीं.नीतीश कुमार को ये बखूबी पता है कि इस साल पांच राज्यों के होनेवाले विधान सभा चुनाव में बीजेपी को सफलता मिल जाती है तो बिहार में भी उसका मन बढ़ जाएगा. इसीलिए उन्होंने अपनी पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर को ममता बनर्जी के साथ लगा दिया है.

विधानसभा चुनाव में अगर बिहार में बीजेपी बड़ा भाई बनने की कोशिश करेगी तो हो नीतीश कुमार साथ छोड़ सकते हैं.आरजेडी के नेताओं का नीतीश कुमार के प्रति नरम रवैया और आरजेडी के नेता शिवानन्द तिवारी का ये बयान कि लालू नीतीश कुमार को पीएम पद का दावेदार बनाना चाहते हैं, ये संकेत देता है कि अब भी आरजेडी को नीतीश कुमार से परहेज नहीं है .फैसला नीतीश कुमार को लेना है.दरअसल, लोकसभा चुनाव में बुरी तरह हार चुकी आरजेडी घुटनों के बल आ चुकी है.उसके तमाम नेता ये मानते हैं कि अगर नीतीश कुमार साथ आ जायें तो एक बार फिर  बिहार की राजनीति में महागठबंधन का खूंटा गड जाएगा.जेडीयू और आरजेडी का कोर वोट बैंक पिछड़ा समाज और मुस्लिम एक ही रहा है. दोनों के लिए इस वोट बैंक का डिविजन  बीजेपी को फायदा पहुंचा सकता है.

देश की राजनीति में पीएम पद की दावेदारी पेश करने की इच्छा नीतीश कुमार की राजनीतिक इच्छा से सभी लोग वाकिफ हैं. कांग्रेस में नेतृत्वहीनता की स्थिति पैदा होने की वजह से नीतीश कुमार के लिए एक और अवसर पैदा हो चूका है.सोनिया गांधी का अंतरिम अध्यक्ष बनाने के बाद यह भी उम्मीद की जा रही है कि विपक्षी दलों की एकता के लिए वह बड़ी भूमिका निभा सकती हैं. ऐसे में 2024 के चुनाव के लिए विपक्ष नीतीश कुमार को मोदी के विकल्प के रूप में पेश कर सकता है.

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