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नीतीश ने धारा 370 पर क्यों बदला स्टैंड, क्या है आगे की रणनीति?

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नीतीश कुमार ने धारा 370 पर क्यों बदला स्टैंड, क्या है आगे की रणनीति?

सिटी पोस्ट लाइव : क्या बीजेपी ने नीतीश कुमार को बैकफूट पर भेंज दिया है या फिर नीतीश कुमार ने खुद जनमानस का मन पढ़ अपना स्टैंड बदल दिया है ? धारा 370 पर अपना स्टैंड बदल दिया है.अनुच्‍छेद 370 को निष्प्रभावी किए जाने के आदेश विरोध करनेवाली जेडीयू के नेता आरसीपी सिंह ने मंगलवार को बिल पास होने के एक दिन बाद ही ये कह दिया कि अब यह कानून बन गया है और कानून पूर देश में लागू होता है. ऐसे में हम सभी को इसका पालन करना चाहिए. जाहिर है जेडीयू के इसी यू टर्न से सवाल उठने लगा है कि क्या बिहार की राजनीति में बीजेपी ने नीतीश कुमार को बैकफुट पर भेज दिया है या फिर नीतीश कुमार ने खुद जनमानस का मन पढ़ अपना स्टैंड बदल दिया है ??

गौरतलब है कि अनुच्‍छेद 370 के निष्प्रभावी होने और जम्मू-कश्मीर राज्य पुनर्गठन बिल पर बीजेडी, अन्‍नाद्रमुक, वाईआरसीपी जैसी पार्टियों के साथ बीजेपी की धुर विरोधी बीएसपी, टीडीपी और टीआरएस जैसे दलों ने भी केंद्र सरकार का समर्थन कर दिया है. कांग्रेस में भी इस मसले पर फूट पड़ गई और उनके बड़े नेताओं ने व्हिप जारी होने के बाद भी पार्टी से अलग रुख अपना लिया.

यही नहीं जेडीयू को छोड़ एनडीए में शामिल शिवसेना और शिरोमणि अकाली दल समेत सभी दलों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया. ऐसे में इस बिल का विरोध करने की वजह से नीतीश कुमार एनडीए में अलग-थलग पड़ सकते थे. माना जा रहा है कि जेडीयू ने बिहार में अपने राजनीतिक हितों को ध्यान में रखते हुए अलग स्टैंड लिया. परंतु सवाल ये है कि इससे क्या नुकसान हुआ और क्या फायदा ?

दरअसल बालाकोट हमले की सत्यता पर सवाल खड़े करने का जितना खामियाजा देश भर में विपक्षी पार्टियों को और बिहार में महागठबंधन को भुगतना पड़ा है यह किसी से छिपा नहीं है. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को छोड़कर किसी का खाता तक नहीं खुला. राजनीतिक पंडितों का कहना है कि देश का नैरेटिव में बड़ा बदलाव आया है. क्षेत्रीय हितों के साथ-साथ अब राष्ट्र हित भी अहम माने जाना लगा है. युवा वोटरों की बढ़ती भागीदारी के कारण अब वोटिंग पैटर्न भी बदल चुका है.

जम्मू कश्मीर को देश के सभी नागरिकों के लिए सुलभ बनाना, एक ऐतिहासिक फैसला है. जो भाजपा के समर्थक नहीं हैं, वे भी इस फैसले से खुश नजर आ रहे हैं. धारा 370 को हटाने के फैसले ने जनमानस को मोदी सरकार से जोड़ दिया है. यहां तक कि आरजेडी के नेता लालू यादव और तेजस्वी यादव ने भी इस मसाले पर चुप्पी साध ली है जिनका सबसे बड़ा वोट बैंक मुस्लिम समुदाय है.अब जेडीयू के नेता भी मान रहे हैं कि इसका विरोध कर के पार्टी रॉंग नम्बर डायल कर दिया, जिसे सुधारने की कोशिश लगातार जारी है.

दरअसल, नीतीश कुमार के लिए अब आरजेडी के साथ जाना संभव नहीं है क्योंकि वहां जायेगें तो उसी तेजस्वी यादव के साथ उन्हें सरकार चलाना पड़ेगा जिन्हें भ्रष्ट बताकर उन्होंने महागठबंधन को एक झटके में छोड़ दिया था. अगर दुबारा वहां जाते हैं तो फिर उनकी क्रेडिबिलिटी ख़त्म हो जायेगी. लेकिन समस्या ये है कि बीजेपी नीतीश कुमार की इस मज़बूरी को अपना हथियार बना चुकी है. वह नीतीश कुमार को भाव ही नहीं दे रही है. चाहे राज्य को विशेष दर्जा दिए जाने की मांग हो या फिर पटना विश्विद्यालय को सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा देने की मांग या फिर केन्द्रीय मंत्रिमंडल में भागेदारी देने का सवाल, बीजेपी ने नीतीश कुमार को ठेंगा दिखा दिया है.

बीजेपी ने जिस तरह से तीन तलाक और धारा 370 पर नीतीश कुमार को नजर-अंदाज किया है, जेडीयू के नेताओं को बहुत्खातक रहा है. लेकिन उनकी मज़बूरी ये है कि आरजेडी के साथ जाने पर उससे भी बड़ा खतरा नजर आ रहा है.जेडीयू को अब ये डर सता रहा है कि विधान सभा चुनाव में बीजेपी कहीं पैंतरा न बदल दे. सीटों के बटवारे के मसले पर या फिर नीतीश कुमार के नेत्रित्व को लेकर कोई पेंच न फंसा दे. इसी डर की वजह से जेडीयू बीजेपी के साथ रहते हुए भी बीजेपी के ऊपर दबाव बनाए रखने के साथ साथ अपने संगठन को बीजेपी से मुकाबले के लिए तैयार करने में जुटी है.जेडीयू के नेता आरसीपी सिंह ये बयान कि बिहार की सबसे बड़ी पार्टी जेडीयू है, इसमें किसी को कोई शक नहीं होना चाहिए, पार्टी के इसी डर को दर्शाता है.अब तक बड़े भाई की भूमिका के तौर पर रही जेडीयू के बीजेपी के सामने बैकफुट पर जाने का खतरा है. सवाल यह कि क्या बिहार की राजनीति भी बदलती लग रही है?

देश के साथ साथ बिहार में भी लोक सभा चुनाव में ये दिखा है कि युवा वोटर जाति के दायरे से बाहर निकल कर राष्ट्रीय हितों के मुद्दों को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं.बदली परिस्थितियों में जिन अत्यंत पिछड़ी जातियों के भरोसे नीतीश कुमार गेम खेलने के लिए तैयार बैठे हैं अगर उनके युवा वोटरों ने इरादा बदल दिया तो क्या होगा .अगर बीजेपी के भावनात्मक मुद्दों से प्रभावित उन्होंने वोट आर दिया तो जेडीयू के मंसूबे पर पानी फिर जाएगा.आरजेडी के एक अल्पसंख्यक नेता अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर कहते हैं कि इसबार जिस तरह से यादवों ने आरजेडी का साथ छोड़ दिया उससे नाराज अल्पसंख्यकों का कहना है कि अब बीजेपी को भले वोट कर देगें लेकिन आरजेडी को वोट नहीं देगें.

इसमे शक की कोई गुंजाइश नहीं कि अगर नीतीश कुमार अभी भी आरजेडी के साथ चले जायेगें तो बीजेपी की चुनौती बढ़ जायेगी. लेकिन अगर बीजेपी ने किसी यादव को मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट कर दिया तो खेल बदल सकता है.यादव लालू यादव का साथ छोड़ बीजेपी के साथ खड़े हो सकते हैं.और सबसे बड़ा खतरा धारा 370 के कश्मीर से हटाये जाने के बाद पैदा हुआ है.जनमानस आज की तारीख में पार्टी, जाति के बंधन से ऊपर उठकर मोदी के साथ खड़ा है और उसका असर विधान सभा चुनाव पर भी पड़ना तय है.इसलिए नीतीश कुमार के लिए ज्यादा सेफ रास्ता बीजेपी के साथ रहकर अपनी पार्टी का जनाधार और संगठन को माबूत करने का है.

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