मोदी मंत्रीमंडल में बिहार के सवर्णों को मिली अहमियत,असंतोष की भरपाई का प्रयास
सिटी पोस्ट लाइव- नरेन्द्र मोदी ने लगातार दुसरी बार प्रधानमंत्री का पद गुरुवार को शपथ ग्रहण के साथ संभाल लिया. साथ ही सरकार ने अपने मंत्रीमंडल का भी कुछ एलान कर दिया है. इसमें अपने सहयोगियों का भी ध्यान रखा गया है. हालांकि जेडयू ने मंत्रीमंडल में शामिल होने से इनकार कर दिया. लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि मोदी सरकार की दुसरी पारी में मंत्रीमंडल के विस्तार में सामाजिक समीकरणों का खासकर काफी ख्याल रखा गया है. या यूं कह सकते हैं कि सवर्णों को काफी अहमियत दी गई है. मतलब बीजेपी ने लालू प्रसाद के भूराबाल फ़ॉर्मूले का अनुसरण किया है. ये बातें खुद मंत्रियों की जातियां बता रही हैं. बिहार के कोटे से छः मंत्रियों में से चार सवर्ण जाती के बनाये गये हैं. इस प्रकार से कहा जा सकता है कि मोदी सरकार ने सवर्णों के अन्दर जो टिकट बंटवारे को लेकर असंतोष था उसे कम करने की कोशिश की गई है.
बता दें कि मोदी सरकार में शपथ लेने वाले 6 मंत्रियों में से चार सवर्ण समाज के हैं और वो भी अलग-अलग बिरादरी के हैं . कैबिनेट मंत्री का दर्जा पाने वाले रविशंकर प्रसाद सिन्हा जहां कायस्थ जाति से हैं तो वहीं गिरिराज सिंह भूमिहार जाति से हैं. कैबिनेट राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार की कुर्सी पाने वाले आरके सिंह जहां राजपूत बिरादरी से आते हैं तो वहीं सरकार में दोबारा राज्य मंत्री बनने वाले अश्विनी चौबे भी ब्राह्मण बिरादरी से. ये तो बात हुई अगड़ी जाति की अब बाकी के दो चेहरों की और बात करें जो क्रमश: दलित और पिछड़ी बिरादरी से आते हैं. कैबिनेट में दलित और पिछड़ों को भी बिहार कोटे से जगह मिली है. लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान जहां दलित बिरादरी से आते हैं तो वहीं पहली बार केंद्र में मंत्री बनने वाले नित्यानंद राय भी यादव बिरादरी से आते हैं. मोदी कैबिनेट में मंत्रियों की संख्या अभी और बढ़ सकती है लेकिन अभी तक बिहार से किसी भी अति पिछड़ी जाति का प्रतिनिधित्व जो कि न तो पिछली सरकार में था और न ही इस बार मिला है कई सवाल भी खड़े कर रहा है.
गौरतलब है कि बिहार में लोकसभा चुनाव के दौरान एनडीए पर सवर्णों को टिकट देने में भेद भाव का आर्रोप लगा था. बिहार की सभी 40 लोकसभा सीटो में अगड़ी जाति की तुलना में पिछड़ी जातियों को ज्यादा टिकट दिये गये थे. टिकट के इस बंटवारे के बाद बीजेपी के कई नेताओं ने इसका सांकेतिक विरोध भी किया था क्योंकि बिहार के सवर्ण बीजेपी के कैडर वोटर्स माने जाते हैं. मोदी सरकार अपने मंत्रिमंडल में सवर्णों को जगह देने में हमेशा से मेहरबान रही है. पिछली सरकार की बात करें तो 2014 की सरकार में राज्य के आठ सांसद मंत्री बने थे जिसमें भी सवर्ण मंत्रियों की संख्या पांच थी. चूकि इस बार राधामेहन सिंह इस बार मंत्री नहीं बन सके हैं इस कारण इस समाज के एक चेहरे को ही मोदी मंत्रिमंडल में जगह मिल सकी है.
मालूम हो कि गुरुवार को पीएम के रूप में नरेन्द्र मोदी ने प्रचंड जीत के बाद पूर्ण बहुमत के साथ दुबारा शपथ ग्रहण लिया. इस दौरान उन्होंने मंत्रीमंडल का भी विस्तार किया. जिसमे 24 कैबिनेट मंत्री ,24 राज्यमंत्री एवं 9 को स्वतंत्र मंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई. लेकिन बिहार की सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण सहयोगी राजनीतिक दल मंत्रीमंडल में नहीं शामिल हुई. जिसपर कई कयास लगाए जा रहे हैं. दरअसल ऐसा कहा जा रहा है कि जेडयू ने दो नामों को कैबिनेट मंत्री के रूप प्रस्ताव भेजा था लेकिन उसे मात्र एक मंत्रालय का ऑफर मिला. इस कारण से जेडयू नाराज हो गई और मंत्रीमंडल में भाग नहीं लिया. खैर, आनेवाले दिनों में और मंत्रीमंडल का विस्तार बाकी है ऐसे में फिर से जेडयू के शामिल होने की संभावना है क्योंकि बीजेपी नहीं चाहती है कि उसकी सहयोगी पार्टी जेडयू नाराज हो.
जे.पी.चंद्रा की रिपोर्ट
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