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अगर नियोजित शिक्षक जीत जाते यह लड़ाई,तो दोगुनी हो जाती वेतन

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अगर नियोजित शिक्षक जीत जाते यह लड़ाई,तो दोगुनी हो जाती वेतन

सिटी पोस्ट लाइव-आखिरकार लम्बे समय से नियोजित शिक्षकों का चला आ रहा सामान काम समान वेतन की लड़ाई शिक्षक हार गएँ. उन्हें शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट से निराशा हाथ लगी .क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने सामान काम समान वेतन पर फैसला देने से इनकार कर दिया. इससे करीब बिहार के साढ़े तीन लाख से अधिक शिक्षकों को निराशा हुई है. लेकिन इससे बिहार सरकार को बड़ी राहत मिली है क्योंकि बिहार सरकार कई बार इस मामले में अदालत से गुहार लगा चुकी है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले से पटना हाईकोर्ट के फैसले को भी पलट दिया है.

फैसले को लेकर सभी की निगाहें दिल्ली पर टिकी थी जहां बिहार के नियोजित शिक्षकों के कई नेता भी कैंप कर रहे थे. शिक्षकों की इस लड़ाई में देश के दिग्गज वकीलों ने उनका पक्ष कोर्ट में रखा था. ये लड़ाई 10 साल पुरानी है जब 2009 में बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ ने बिहार में नियोजित शिक्षकों के लिए समान काम समान वेतन की मांग पर एक याचिका पटना हाइकोर्ट में दाखिल की थी. आठ साल तक चली लंबी सुनवाई के बाद पटना हाइकोर्ट ने साल 2017 को अपना फैसला बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के पक्ष में दिया था.

इस फैसले के तहत कहा गया था कि नियोजित शिक्षकों को समान काम के लिए समान वेतन मिलना चाहिए. पटना हाईकोर्ट के इस फैसले के विरोध में बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई थी. शिक्षकों की तरफ से कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी जैसे वकीलों ने कोर्ट में बहस की जिसके बाद अंतिम सुनवाई वर्ष 2018 में तीन अक्तूबर को हुई. आपको बता दें कि कोर्ट के इस फैसले से बिहार के प्राथमिक स्कूल से लेकर प्लस टू विद्यालयों के शिक्षक इस फैसले से प्रभावित होंगे.

आपको बता दें कि शिक्षकों से जुड़े इस बड़े फैसले में जस्टिस अभय मनोहर सप्रे और जस्टिस उदय उमेश ललित की खंडपीठ ने अंतिम सुनवाई पिछले साल तीन अक्तूबर को की थी जिसके बाद से फैसला सुरक्षित रखा गया था. सात महीने बाद आने वाले इस फैसले का सीधा असर बिहार के पौने चार लाख शिक्षकों और उनके परिवार पर होगा.
फिलहाल बिहार के नियोजित शिक्षकों का वेतन लगभग 20 से 25 हजार रुपए के आसपास है और अगर कोर्ट का फैसला शिक्षकों के पक्ष में आता तो उनका वेतन लगभग दोगुना यानी 35-40 हजार रुपए हो जातात. कोर्ट के इस फैसले से शिक्षकों को निराशा हाथ लगी है. अब शिक्षकों के पास पुनर्विचार याचिका दायर करने के अलावा कोई रास्ता नहीं है. वहीं अब यह माना जा रहा है कि राज्य सरकार के साथ बैठकर ही इस समस्या का हल निकाला जा सकता है.
जे.पी.चंद्रा की रिपोर्ट

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