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कांग्रेस को RJD के सहारे लोकसभा चुनाव लड़ना पड़ सकता है भारी, जानिए क्यों?

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कांग्रेस को RJD के सहारे लोकसभा चुनाव लड़ना पड़ सकता है भारी, जानिए क्यों?

सिटी पोस्ट लाइव : कांग्रेस के बड़े नेताओं का पार्टी छोड़कर लगातार जाने का सिलसिला जारी है. टिकट देने के कांग्रेस पार्टी के एप्रोच को देखते हुए ऐसा लगता है कि आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को नुकसान हो सकता है. हाल ही में कांग्रेस के कद्दावर नेता शकील अहमद ने पार्टी छोड़ दी.शकील अहमद  मधुबनी से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में नामांकन भरा. इस घटना के बाद कांग्रेस के अंदर पड़ने वाली दरार दिखने लगी है.

टिकट बंटवारे को लेकर कहीं न कहीं कांग्रेस दूसरी पार्टी से आए नेताओं और गठबंधन पार्टियों आरजेडी, आरएलएसपी, विकासशील इंसान पार्टी के सामने झुक गई है. बाहरी लोगों ने अपने लाभ के लिए पार्टी के टिकट बंटवारे को प्रभावित किया. इसका सबसे बड़ा उदाहरण है बिहार कांग्रेस कैंपेन कमिटी के अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह के बेटे का आरएलएसपी उम्मीदवार के रूप में पूर्वी चंपारण से केंद्रीय मंत्री राधा मोहन सिंह के सामने चुनाव लड़ना और शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी पूनम सिन्हा का सपा-बसपा उम्मीदवार के रूप में लखनऊ से चुनाव लड़ना.

शुरुआत में कांग्रेस 40 में से 20 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती थी, लेकिन बाद में उसे कुल 9 सीटों से ही संतोष करना पड़ा. इन नौ उम्मीदवारों में से 5 ऐसे हैं जिन्होंने हाल ही में दूसरी पार्टी से आकर कांग्रेस ज्वाइन की है. जैसे बीजेपी से आए शत्रुघ्न सिन्हा को पटना साहिब और पप्पू सिंह को पूर्णिया से टिकट दिया गया है. इसी तरह डॉन से विधायक बने अनंत सिंह की पत्नी को मुंगेर से, एनसीपी के मौजूदा सांसद तारिक अनवर को कटिहार से और शाश्वत पांडेय को वाल्मीकि नगर से टिकट दिया गया है. वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं का कहना है कि ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि उनके पास चुनाव लड़ने की कोई रणनीति नहीं है और बाहरी नेताओं का पार्टी में काफी प्रभाव है. कांग्रेस आरजेडी के पिछलग्गू की तरह काम कर रही है.

हाल ही में बीजेपी ज्वाइन करने वाले वरिष्ठ नेता बिनोद शर्मा का कहना है कि न ही कांग्रेस ने उच्च जाति-मुसलमान-दलित कॉम्बिनेशन को फिर से अपने पक्ष में करने की कोशिश की और न ही पूरे बिहार में फैले ओबीसी वोटों को ही साधने की. आरजेडी से आए कुछ नेताओं को चुनाव प्रचार की पूरी जिम्मेदारी दे दी गई और उन्होंने इस बात के लिए हाईकमान को मना लिया कि आरजेडी के साथ मिलकर ही ज्यादा सीटें जीती जा सकती हैं.

 जब राहुल गांधी ने फरवरी में पटना में जनसभा की थी तो ऐसा लग रहा था कि कांग्रेस फिर से उठ खड़ी होगी. गांधी मैदान में राहुल गांधी के ऐतिहासिक भाषण के बाद लगने लगा था कि कांग्रेस 2019 के लोकसभा चुनाव में आरजेडी के बराबर ही बड़ी भूमिका निभाएगी. बाद में लालू की गैर-मौजूदगी में जब राहुल गांधी ने तेजस्वी यादव से मुलाकात की तो यह चर्चा का विषय बन गया. लोगों को लगा कि कांग्रेस और आरजेडी मिलकर बीजेपी-जेडीयू और एलजेपी के गठबंधन को रोक सकते हैं.

लेकिन पार्टी के अंदर सीटों को लेकर वाद-विवाद के कारण सारा खेल बिगड़ गया और मतदाताओं के मन में नकारात्मक संदेश गया. फिर कांग्रेस की राज्य इकाई से मतभेद के कारण कार्यकर्ता भी नाराज़ नज़र आते हैं. ऐसे में बिहार में कांग्रेस की जीत की राह में मुश्किलें बढ़ सकती हैं.

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