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कांग्रेस की हेंकड़ी को हराया, इन नेताओं के लिए विलेन बने तेजस्वी!

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कांग्रेस की हेंकड़ी को हराया, इन नेताओं के लिए विलेन बने तेजस्वी!

सिटी पोस्ट लाइवः महागठबंधन को लेकर पेंच चाहे लाख फंसा हो लेकिन यह हमेशा से तय रहा था कि होगा वही जो लालू चाहेंगे। राजद बिहार में सबसे बड़ी पार्टी है और कम से कम बिहार में महागठबंधन का नेतृत्व राजद के हाथो में है। तेजस्वी सिर्फ राजद की हीं कमान नहीं संभाल रहे बल्कि महागठबंधन का भी नेतृत्व कर रहे हैं। लालू और तेजस्वी ने मिलकर कांग्रेस की हेंकड़ी को किस तरह से हराया है उसकी वानगी महागठबंधन में सीटों का जो फार्मूला तय हुआ उसमें देखी जा सकती है।

3 फरवरी को पटना के गांधी मैदान में कांग्रेस की जन आंकाक्षा रैली में राहुल गांधी ने कहा कि कांग्रेस फ्रंट फुट पर खेलती रही है और खेलती रहेगी। उसी मंच से तेजस्वी यादव ने राहुल गांधी को क्षेत्रीय दलों के सम्मान की नसीहत दी थी। बाद में लालू-तेजस्वी ने मिलकर राहुल गांधी के उस बयान को बड़बोलापन साबित कर दिया और बिहार में जब सीटें बांटी गयी तो कांग्रेस के हिस्से महज 9 लोकसभा की सीट और 1 राज्यसभा की सीट दी गयी। राजद 20 सीटों पर लड़ेगी राजद-कांग्रेस के बीच 20 और 9 का फासला यह बताने को काफी है कि महागठबंधन में फ्रंट फुट पर कौन खेल रहा है। लेकिन सवाल सिर्फ सीटों का नहीं है बल्कि तेजस्वी यादव उन नेताओं के लिए भी विलेन साबित हुए जो या तो कांग्रेस के रास्ते महागठबंधन में एंट्री चाहते थे या फिर किसी दूसरे दल से चुनाव लड़ना चाहते थे जिससे कांग्रेस को कोई दिक्कत नहीं थी। मसलन कांग्रेस से टिकट की चाह रखने वाले अनंत सिंह को तेजस्वी यादव ने पहले हीं बैड एलिमेंट कह दिया। अनंत सिंह दावा करते रहे कि उनका टिकट कंफर्म हैं, कांग्रेस ने भी कहा कि अनंत सिंह से कोई परहेज नहीं है वे जिताउ उम्मीदवार हैं तब भी कांग्रेस को पीछे हटना पड़ा और बीच का रास्ता निकालते हुए अनंत सिंह की पत्नी पूनम देवी को कांग्रेस ने मुंगेर का टिकट थमा दिया।

पप्पू यादव अंतिम क्षण तक गुहार लगाते रहे कि मैं महागठबंधन का हिस्सा बनना चाहता हूं, खबर यह भी थी कि कांग्रेस में उनकी एंट्री का रास्ता साफ हो चुका था लेकिन तेजस्वी यादव ने उनका रास्ता भी रोक लिया। जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार सीपी़आई के टिकट पर बेगूसराय से चुनाव लड़ना चाहते हैं। उनका चुनावी अभियान भी जारी है। लेकिन महागठबंधन में सीपीआई को जगह नहीं मिली जाहिर तौर पर कन्हैया को महागठबंधन ने नहीं स्वीकारा और कहा जा रहा है कि कन्हैया के विलेन भी तेजस्वी यादव हीं साबित हुए हैं। हांलाकि भले सीपीआई महागठबंधन का हिस्सा नहीं है लेकिन तकरीबन यह तय है कि बेगूसराय से कन्हैया चुनाव लड़ेगे यानि बेगूसराय में मुकाबला अब त्रिकोणीय हो गया है।

सीपीआई को महागठबंधन में जगह मिलती तो कन्हैया का सीधा मुकाबला एनडीए उम्मीदवार से होता लेकिन अब कन्हैया की भिड़ंत महागठबंधन और एनडीए दोनों से होगी। कुल मिलाकर बिहार की राजनीति का गणित यही है कि तेजस्वी यादव, पप्पू यादव, अनंत सिंह और कन्हैया जैसे नेताओं के लिए विलेन साबित हुए है। खासकर पप्पू यादव और अनंत सिंह की कांग्रेस में एंट्री का रास्ता साफ था लेकिन तेजस्वी यह होने नहीं दिया और कांग्रेस को पीछे हटना पड़ा यानि चाहकर भी कांग्रेस अनंत सिंह और पप्पू यादव को अपने खेमे में शामिल नहीं करा पायी। तो कुल मिलाकर लालू-तेजस्वी ने कांग्रेस की हेकड़ी को हराया और उसे फ्रंटफुट से बैकफुट पर लाया। कहा जा सकता है कि 2019 की जीत हार से पहले महागठबंधन में राजद-कांग्रेस के बीच जो जीत-हार की लड़ाई चली उसमें राजद जीत गयी।

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