“विशेष” : पेट की खातिर सिसक रहा बचपन, बच्चे दिखाते हैं हैरतअंगेज करतब
सिटी पोस्ट लाइव : पापी पेट का सवाल है। भूख मिटाने की गरज से सरकार की बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ योजना की ना केवल हवा निकल रही है बल्कि यह योजना सभ्य समाज को आईना भी दिखा रहा है। हम तो यह भी कहेंगे कि भारतीय व्यवस्था को यह तस्वीर तमाचे भी जड़ रहा है। दरअसल यह मामला सुपौल जिले का है, जहां छत्तीसगढ़ की दो मासूम और नाबालिक बेटियां तमाशे दिखाकर एक तरफ अपनी रोजी रोटी का जुगाड़ कर रही है तो दूसरी तरफ केंद्र सहित सभी सरकारों को कटघरे में भी खड़े कर रही है। हम सुपौल जिले के सिमराही बाजार के एनएच 106 सड़क के किनारे की तस्वीर लेकर हाजिर हुए हैं, जहां महज 4 साल और 12 साल की दो बेटियां भारतीय सिस्टम पर सवालिया निशान लगा रही हैं। यूं तो यह दोनों छत्तीसगढ़ के रहने वाली है लेकिन अपनी पेट और परिवार के सदस्यों की सांसो को महफूज रखने के लिए घूम-घूम कर करतब दिखा रही हैं।
हद की इंतहा तो यह है कि तमाशे की शक्ल में लोग इस मजबूर कर्तव्य के मजे ले रहे हैं। पूछने पर बच्चियां और उनकी बेबस मां कहती हैं की पापी पेट का सवाल है जिस वजह से करतब दिखाकर वे दो पैसे कमा रही हैं। वहीं तमाशा देखने का तो अलग ही मजा होता है। परेशान जिंदगी में थोड़ा सुकून भरने में के लिए लोग इस मजबूर बाल कर्तव्य का भरपूर आनंद ले रहे हैं। देश की आजादी के इतने वर्षों बाद भी ना तो गरीबी हटाई जा सकी और ना ही बच्चियों के लिए तरह-तरह के स्लोगन वाले नारों को ही ईमानदारी से शक्ल ही दिया जा सका है। हैरत की बात यह है कि छत्तीसगढ़ में जब जिंदगी महफूज नहीं लगी, तभी यह परिवार वहां से बिहार कूच करने के लिए मजबूर और विवश हुआ। जाहिर तौर पर,गरीबी हटाओ और आरक्षण का लाभ देकर हासिये पर लुढ़के लोगों को समाज की मुख्यधारा में लाने का सात दशक का सरकारी प्रयास बेमानी साबित हुआ है। सच है कि पेट की भूख मिटाने के लिए इंसान किसी हद से गुजर सकता है।
पीटीएन न्यूज मीडिया ग्रुप के सीनियर एडिटर मुकेश कुमार सिंह की “विशेष” रिपोर्ट
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