एक साधारण घरेलू महिला के आक्रामक नेता और फैमिली ‘मेंटर’ बनने की कहानी
सिटी पोस्ट लाइव : बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने बुधवार और गुरुवार को जिस तरह से नीतीश सरकार को सदन के अंदर एक के बाद एक मुद्दों पर घेरने की कोशिश की ,उससे ये तो साफ़ हो गया कि अब राबडी देबी एक घरेलू महिला नहीं बल्कि एक राजनीति की माहिर खिलाड़ी बन चुकी हैं. बिहार में बढ़ रहे अपराध और सीबीआई से केंद्र सरकार की साठगाँठ के के मुद्दे पर राबडी देबी ने जिस तरह से विधान परिषद में सीएम नीतीश कुमार को जमकर जबाब दिया.राबड़ी देवी ने कहा कि अपराध बिहार में हो रहा है और बिहार के मुख्यमंत्री इंग्लैंड और अमेरिका के अपराध की बात करते हैं. राबड़ी देवी के ऐसे तेवर के बाद बुधवार को नीतीश कुमार को बैकफुट पर आना पड़ा और कहना पड़ा, ‘आप हमारी भाभी हैं हम आपको कुछ नहीं बोल सकते.’
मंगलवार को आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और दोनों बेटों, तेजस्वी यादव और तेजप्रताप यादव की अनुपस्थिति में आरजेडी विधायक दल की बैठक का नेतृत्व राबडी देबी ने ही किया.इस बैठक में वो एक गूंगी गुडिया नहीं बल्कि एक आक्रामक नेता के रूप में नजर आयीं. उन्होंने अपने संबोधन से कार्यकर्ताओं और पार्टी नेताओं में जोश भी भर दिया. हाल के दिनों में जो रूप राबड़ी देवी का सामने आया है उससे साफ़ है कि एक घरेलू महिला के आवरण को उतार फेंकने में वो कामयाब रही हैं और एक परिपक्व राजनीतिज्ञ बन गई हैं.
पिछले दो दशक से राबड़ी देवी राजनीतिकरूप से सक्रीय हैं. लालू प्रसाद यादव की अर्धांगिनी होने के साथ प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री हैं और बिहार विधान परिषद में प्रतिपक्ष की नेता भी हैं .सबसे ख़ास बात अपनी ईन सभी भूमिका का निर्वाह वो बखूबी कर रही हैं. घर परिवार भी संभाल रही हैं और राजनीति भी कर रही हैं.राबड़ी देवी जब मुख्यमंत्री बनी थीं वो एक घरेलू परंपरा और पारिवारिक बोझ से दबी हुई एक साधारण महिला थीं. 25 जुलाई, 1997 को जब उन्होंने पहलीबार सीएम पद की शपथ ली थी तो लोग राबड़ी देवी का मजाक उड़ाते थे और उन्हें सीएम बनाने को लेकर तंज कसते थे.लेकिन आज वहीँ राबडी देबी अलग रंग रूप में नजर आ रही हैं.
आज राबड़ी देवी जब नीतीश कुमार और पीएम मोदी पर निशाना साधती हैं तो सबकी बोलती बंद हो जाती है. पति जेल में हैं. खुद बेटे और पुरे परिवार के साथ मुकदमे में फंसी हैं लेकिन उन्हें सीबीआई, ईडी या फिर पीएम मोदी से बिलकुल डर नहीं लगता. उनका गुस्सा ‘सियासत की गॉडमदर’ की तरह दिखता है. जब-जब पार्टी को उनकी जरूरत पड़ी है वह हमेश उम्मीदों पर खरी उतरी हैं. जब पहली बार लालू यादव को चारा घोटाला मामले में जेल जाना पड़ा था तो वह सीएम बनी थीं. 2017 में आरजेडी अध्यक्ष के जेल जाने के बाद वह एक बार फिर अपनी भूमिका में लौट आईं. अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को उत्साहित करने वाली नेत्री बनकर उभरी हैं.
दरअसल 2017 में जब तेजस्वी यादव को आरजेडी की कमान सौंपे जाने की बात शुरू हुई तो पार्टी के वरिष्ठों में बेहद नाराजगी थी. उन सबको एकजुट रखने की चुनौती के बीच तेजस्वी यादव की लीडरशिप को स्थापित करने की चुनौती एक साथ थी. लालू यादव की अनुपस्थिति में राबड़ी देवी ने ये काम बखूबी निभाया भी है. हालांकि बिहार की राजनीति को जानने वाले इसे अलग नजरिये से भी देखते हैं. उनका मानना है कि जब भी लालू प्रसाद नहीं रहते हैं तो राबडी देबी मेंटर की भूमिका में नजर आने लगती हैं.बिहार में कानून व्यवस्था को लेकर राबडी देबी अपनी पार्टी के लिए पॉलिटिकल स्कोर लेने में जुटी हैं.
तेजप्रताप तलाक प्रकरण से परिवार की साख को बेहद नुकसान पहुंचा है. लालू प्रसाद भी जेल में हैं और आरजेडी में भी खेमेबाजी का अंदेशा है. तेजप्रताप यादव का अगला रुख क्या होगा इसपर भी सबकी नजरें हैं. लेकिन इतना साफ है कि राबड़ी देवी पार्टी और परिवार, दोनों के लिए मेंटर की भूमिका बखूबी निभा रही हैं.बीते दो दशक में जो लोग राजनीतिक रूप से राबड़ी देवी की क्षमताओं पर संदेह करते थे, वे गलत साबित हुए हैं. वह लालू यादव की अनुपस्थिति में परिवार के मुखिया होने की भूमिका बखूबी निभा रही हैं.एक गूंगी गुडिया समझी जानेवाली राबडी देबी एक फायर ब्रांड नेता के रूप में उभर कर सामने आई हैं.
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