मंडल पार्ट-2 की राजनीति को आगे बढ़ा रहे हैं तेजस्वी यादव, क्या है चुनौतियाँ?
सिटी पोस्ट लाइव : इसबार का लोक सभा चुनाव जैसे जैसे करीब आ रहा है, बिहार की राजनीति मंडल-कमंडल पर केन्द्रित होती जा रही है. जिस तरह से अपनी ‘आरक्षण बढ़ाओ- बेरोजगारी हटाओ’ यात्रा के दौरान लालू यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव जातिगत जनगणना को सार्वजनिक करने, जनसँख्या के आधार पर आरक्षण की सिमा बढाने की मांग कर रहे हैं, उससे तो यहीं लगता है कि वो अपने पिता के मंडल की राजनीति को ही आगे बढाने की कोशिश कर रहे हैं.
तेजस्वी अपनी इस यात्रा के अज्रिये एक बार फिर आरक्षण के नाम पर आरजेडी की उसी राजनीतिक जमीन को फिर से मजबूत करने में जी-जान से जुटे हैं जिसकी बदौलत उनके परिवार का शासन लगातार 15 वर्षों तक बिहार में रहा है. केन्द्र सरकार के गरीब सवर्णों को आरक्षण के प्रावधान लागू किए जाने के फैसले का विरोध कर तेजस्वी यादव ने ये संकेत साफ़ दे दिया था कि एक बार फिर 1990 के दशक की उसी राजनीति को वो हवा देना चाहते हैं जिसका प्रयोग लालू यादव ने सफलतापूर्वक कर चुके हैं.
‘भूरा बाल साफ करो’… 1990 के दशक के इसी नारे की वजह से लालू यादव अपराजेय बन गए थे. इसी नारे की बदौलत वो लगातार बिहार की सत्ता पर 15 वर्षों तक काबिज रहे. ‘भूरा बाल’- यानि भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और लाला (कायस्थ ), यानि सवर्ण जातियों के विरुद्ध यादवों, मुस्लिमों, पिछड़ों और दलितों को गोलबंद कर समाज में नफरत की आग लगाकर सत्ता में बने रहने का सबसे जोरदार जातीय समीकरण. इस दौरान का राजनीतिक समीकरण ‘MY’ यानि ‘मुस्लिम-यादव’ इक्वेशन अभेद बन गया था.अब बदले दौर में आरजेडी की कमान युवा तेजस्वी यादव के हाथों में है. वह जातिगत आधार पर सियासी गणित की नई गोलबंदी तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं. 13 प्वाइंट रोस्टर का मुद्दा हो या फिर पिछड़े-दलित आरक्षण की सीमा 69 प्रतिशत किए जाने की वकालत हो, ये सब उसी की कवायद है.
गरीब सवर्णों के आरक्षण का विरोध कर और पिछड़े दलितों की हिस्सेदारी बढ़ाने की मांग कर आरजेडी फिर से मंडल कमीशन के दौर की राजनीति वापस लाने की कोशिश में है. इसी जातीय गोलबंदी की बदौलत लालू यादव ने अपनी राजनीतिक जमीन काफी मजबूत कर ली थी. आजतक उसी की फसल वो काट रहे हैं.आरजेडी को लगता है कि उसने 2015 में जिस तरह आरक्षण पर मोहन भागवत के बयान को मुद्दा बनाया, और उसे भुनाकर बिहार में दोबारा सत्ता पर काबिज हो गई.उसी तरह एकबार फिर से मंडल की राजनीति को मजबूत कर वह सत्ता पर काबिज हो सकती है.
राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के उपेन्द्र कुशवाहा, हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के जीतनराम मांझी और विकासशील इंसान पार्टी के मुकेश सहनी को साथ लाकर RJD अपने आपको जातिगत आधार पर और मजबूत करने की कोशिश में है.तेजस्वी यादव कई बार खुद को दलितों-पिछड़ों का नेता बता चुके हैं . तमिलनाडु की तर्ज पर बिहार में भी 69 प्रतिशत आरक्षण की मांग कर रहे हैं.लेकिन उनकी चुनौती ये है कि नीतीश कुमार सर्वसमाज के नेता के तौर पर खुद को स्थापित कर चुके हैं.अपनी छवि एक ऐसे नेता की बना चुके हैं जिसकी पकड़ अति-पिछड़ों और दलितों में बहुत ज्यादा मजबूत है लेकिन फिर सवर्ण विरोधी नेता की छवि नहीं है.जिस तरह की राजनीति तेजस्वी यादव कर रहे हैं नीतीश कुमार सवर्ण समाज की मज़बूरी बन जायेगें.
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