CONG को नहीं मिलेगीं पसंदीदा सीटें, उसके उम्मीदवारों के नाम पर जरुरी होगी तेजस्वी मुहर
सिटी पोस्ट लाइव : पटना के गांधी मैदान में कांग्रेस की जन आकांक्षा रैली भले सुपर डुपर हित नहीं हुई लेकिन सुपर फ्लॉप शो भी इसे नहीं कह सकते. 28 साल बाद कांग्रेस ने पटना के गांधी मैदान में रैली कर अगर एक लाख की भीड़ जुटाने में कामयाब रही है तो इसका मतलब साफ़ है कि कांग्रेस नेताओं का मनोबल बढ़ा है. कल तक RJD की मर्जी के सहारे राजनीति करनेवाली कांग्रेस पार्टी के नेता अब ये दावा करने लगे हैं कि कांग्रेस के लिए जितनी जरुरी RJD है, उतनी ही RJD को कांग्रेस की जरुरत है. कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष श्याम सुन्दर सिंह धीरज तो अब यहाँ तक दावा करने लगे हैं कि महागठबंधन को सबसे ज्यादा ताकत बख्शने की क्षमता कांग्रेस में है.
वैसे इसी तरह का आत्म-विश्वास पटना की जन- आकांक्षा रैली में भाग लेने पहुंचे छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी दिखाया था. उन्होंने बिहारी अंदाज में ताल ठोकते हुए कहा था कि कांग्रेस पार्टी इसबार बिहार में गार्डा उड़ा देगी. उनका यह आत्म विश्वास कांग्रेस की रैली की सफलता की वजह से नहीं बल्कि इस वजह से है कांग्रेस पार्टी ने उनके नेत्रित्व में छत्तीसगढ़ में 15 साल बाद सत्ता में शानदार वापसी की है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल –क्या आगामी लोकसभा चुनाव में बिहार में भी कांग्रेस कुछ ऐसा कमाल दिखा पायेगी. कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी तो ऐसा ही आत्म-विश्वास जन- आकांक्षा रैली में दिखाई थी.
इसमे शक की गुंजाइश नहीं कि तीन राज्यों में सरकार बनाने के बाद राहुल गांधी का आत्म-विश्वास बढ़ा है और उनके कार्यकर्त्ता और नेता भी जोश में दिख रहे हैं. लेकिन ये भी सच है कि जिन क्षेत्रीय दलों की ताकत की बदौलत वो केंद्र की सत्ता पर काबिज होना चाहते हैं, वहीँ क्षेत्रीय पार्टियाँ उन्हें अपनी ताकत का अहसाश भी करा रही हैं. गांधी मैदान की रैली में तेजस्वी यादव ने राहुल गांधी को PM मैटेरियल तो बता दिया लेकिन यह भी जाता दिया कि क्षेत्रीय दलों को अहमियत नहीं देने से बात बिगड़ सकती है.
ये भी सच है कि बिहार में इधर हाल के दिनों में कुछ दलों के नेताओं ने कांग्रेस का रुख किया है. पार्टी की संगठनात्मक सक्रियता भी बढ़ी है. लेकिन फिर भी ऐसी स्थिति नहीं है कि कांग्रेस पार्टी बिहार में लालू प्रसाद की बैसाखी को छोड़कर अपने बूते दौड़ लगाने को तैयार है.सबसे बड़ी बात ये है कि बिहार के सियासी संग्राम में कांग्रेस और RJD के वोट बैंक एक ही है. जिस दलित-पिछड़े और मुस्लिम ब्राहमण की बदौलत नेता कांग्रेस अबतक राज करती रही है, आज उसी ताकत की बदौलत यानी मुस्लिम-यादव की बदौलत RJD बिहार में खड़ी है. RJD कांग्रेस को फ्रंट फूट पर खेलने का मौका देकर अपने बराबरी पर कांग्रेस को खड़ा करने की राजनीतिक भूल नहीं कर सकती.इसबात का अहसाश राहुल गांधी को भी है. तभी तो जन-आकांक्षा रैली में फ्रंट फूट पर खेलने का एलान करनेवाले राहुल को RJD के साथ मिलकर फ्रंट फूट पर खेलने का घालमेल वाला बयान देना पड़ा है.
जाहिर है RJD जूनियर पार्टनर से ज्यादा बड़ी हैसियत कांग्रेस को नहीं देगी. लालू यादव और तेजस्वी यादव हमेशा कांग्रेस को कमजोर करके रखना चाहेगें. दरअसल,बिहार का सियासी गणित कुछ इस कदर उलझा है कि यहां चाहकर भी कांग्रेस अपने स्तर से कोई बड़ी दावेदारी नहीं कर सकती. जातीय समूहों में अंदर तक बंटे इस प्रदेश के तमाम छोटे-बड़े क्षत्रपों के अपने-अपने प्रभाव क्षेत्र हैं. गिनती की सीटों पर ही सही, जीतनराम मांझी, मुकेश सहनी या फिर हाल तक राजग के साथ रहे उपेंद्र कुशवाहा का अपना प्रभाव है.
महागठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी RJD है. उसी का सबसे ज्यादा जनाधार भी है. महागठबंधन के सभी घटक दलों को उसी के वोट से चुनाव जीतना है. ऐसे में RJD कांग्रेस को ज्यादा अहमियत देकर अपने पैर पर कुल्हाड़ी नहीं मारेगी.सूत्रों के अनुसार महागठबंधन के ज्यादा घटक दल तो यूपी की तरह ही कांग्रेस को छोड़ देने के पक्ष में हैं.लेकिन कांग्रेस के प्रदेश के चुनाव प्रभारी अखिलेश सिंह के साथ लालू यादव के रिश्ते की वजह से अभी भी गठजोड़ की संभावना बनी हुई है. अखिलेश यादव अपनी पार्टी की हैसियत के हिसाब से ही सीट मांग रहे हैं. ऊनकी मांग केवल 10 सीटों की है लेकिन बात 7 पर अटकी हुई है क्योंकि RJD कांग्रेस से कम से कम दो गुना ज्यादा सीटों पर लड़ना चाहती है.
RJD बिहार में हमेशा NDA या फिर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के समक्ष खुद को सबसे सक्षम विकल्प के तौर पर पेश करना चाहेगा. कुल मिलाकर इस बात में कोई संदेह नहीं कि महगठबंधन की ड्राइविंग सीट पर RJD ही रहेगा. अगर कांग्रेस को अबतक RJD ने दुत्कार नहीं लगाईं है तो इसकी असली वजह केवल ये है कि उसको इस बात का भी भलीभांति अहसास है कि कांग्रेस और अन्य घटक दलों को साथ लिए बिना वह NDA के साथ मुकाबला नहीं कर सकता.इसी वजह से महागठबंधन के गुणा-गणित कुछ ज्यादा ही पेचीदा बन गया है.
कांग्रेस को पता है कि यदि राहुल गांधी को महागठबंधन की ओर से प्रधानमंत्री पद का सबसे मजबूत दावेदार के तौर पर पेश करना है तो फिर झोली में सीटें भी चाहिए. दक्षिण में कनार्टक को अपवाद मान लें तो अन्य किसी बड़े राज्य में वह आमने-सामने की लड़ाई में नहीं है. हिंदी पट्टी में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान ही ऐसे बड़े राज्य हैं, जहां वह सर्वाधिक चुनावी लाभ की उम्मीद कर सकती है.उत्तर प्रदेश में जिस तरह मायावती और अखिलेश यादव ने उसे ठेंगा दिखाया है, उसके मद्देनजर चुनावी बिसात पर फिरहाल बिहार उसके लिए सबसे महत्वपूर्ण राज्य बन गया है. इसी वजह से सीटों पर फाइनल बातचीत करने से पहले कांग्रेस पार्टी ने 28 साल बाद पटना के गांधी मैदान में रैली का आयोजन कर RJD को अपनी अहमियत बताने की कोशिश की है. जाहिर है समझौता अगर हुआ तो कांग्रेस भले फ्रंट फूट की खिलाड़ी नहीं होगी लेकिन सीटों के बटवारे पर पहले की तरह पूरी तरह से बैकफूट पर भी नहीं होगी.
तेजस्वी सात फरवरी से प्रदेश में ‘गरीबी हटाओ, आरक्षण बढ़ाओ यात्रा ‘निकालने जा रहे हैं. तेजस्वी यादव की यह यात्रा उन्हीं लोकसभा क्षेत्रों में निकलने जा जा रही है, जहां कांग्रेस की भी मजबूत दावेदारी है. जाहिर है कांग्रेस के साथ समझौता होता भी है तो कांग्रेस को वो सीटें नहीं मिलेगीं, जिसकी मांग वो कर रही है या फिर जिन सीटों को लेकर ही अनंत सिंह, पप्पू यादव, लवली आनंद और रामा सिंह सरीखे बाहुबली नेता कांग्रेस के पीछे घूम रहे हैं.जाहिर है कांग्रेस को जो सीट मिलेगी वह कांग्रेस की पसंद की नहीं होगी और कांग्रेस के जो उम्मीदवार होगें वो तेजस्वी यादव के पसंदीदा होगें. VIP पार्टी के नेता मुकेश सहनी का कांग्रेस की रैली में बोलने से इनकार कर देना और जीतन राम मांझी के प्रवक्ता द्वारा रैली को फ्लॉप बता देने का मतलब साफ़ है कि कांग्रेस को ज्यादा भाव देने के मूड में महागठबंधन के घटक दल नहीं हैं.
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