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लालू यादव बाजीगर या जादूगर, 70 साल की उम्र में कितना है दम जानिए

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लालू यादव बाजीगर हैं या जादूगर, 70 साल की उम्र में कितना है दम जानिए

सिटी पोस्ट लाइव : जिस तरह से जवानी की कमाई बुढापे में काम आती है उसी तरह से लालू यादव की जवानी के दिनों की राजनीति के क्षेत्र में की गई मेहनत आज बुढापे में भी उनकी सबसे बड़ी ताकत बनी हुई है. लालू यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव ने उनकी राजनीतिक विरासत को बखूबी संभाल तो रखा है लेकिन आज भी उनकी ताकत लालू यादव में ही निहित है. तेजस्वी ओजस्वी भाषण देते हैं, अपने विरोधियों को जबाब देने में उनकी सानी नहीं है और अपनी अलग पहचान बनाने में भी वो कामयाब हुए हैं लेकिन जन-समर्थन का सबसे बड़ा आधार आज भी लालू यादव ही बने हुए हैं.लालू यादव चारा घोटाले में सजायाफ्ता हो चुके हैं. पिछले कई महीनों से बीमार हैं. ठीक से चल फिर और खा पी भी नहीं पा रहे. आज की तारीख में बिना डॉक्टर की देखरेख के उनका जीवन एक पल में संकट में पड़ सकता है फिर भी राजनीति के सेंटर स्टेज पर वहीँ बने हुए हैं.

तेजस्वी यादव ने महागठबंधन का कुनबा बढ़ा जरुर लिया है. कई नए राजनीतिक साथी भी बना चुके हैं लेकिन इस बड़े राजनीतिक कुनबे को संभालने में आज भी लालू यादव ही अहम् भूमिका निभा रहे हैं. दोस्तों से दोस्ती निभाने और दुश्मनों को भी साथ लेकर चलने का राजनीतिक गुर जो लालू यादव में है, उसे आज भी उनकी पार्टी के दुसरे नेताओं में नहीं है. जिन दोस्तों लालू यादव को जेल पहुंचाने में अहम् भूमिका निभाई, उन्हें भी गले लगाने में लालू यादव कभी नहीं हिचकिचाए. लालू यादव की बढती राजनीतिक ताकत से भले प्रतिद्वंदी खुश न हों लेकिन उन्हें दिल से कभी अपना दुश्मन नहीं बना पाए. शिवानन्द तिवारी हों या फिर ललन सिंह या फिर नीतीश कुमार जिन्होंने लालू यादव को चारा घोटाले में जेल भेंजवाले में अहम् भूमिका निभाई उन्हें भी गले लगाने से लालू यादव ने कभी परहेज नहीं की.नीतीश कुमार के साथ चुनाव लड़े, ललन सिंह के मंत्री बनने की मुखालफत नहीं की और शिवानन्द तिवारी को आज भी अपने साथ रखे हुए हैं.

दरअसल, लालू यादव की राजनीतिक सफलता का राज भी यहीं है कि सत्ता में रहते हुए उन्होंने दोस्ती तो बदनामी की हद तक निभाई लेकिन दुश्मनों को कभी सबक नहीं सिखाया.अपने  इसी मन-मिजाज और दोस्ताना स्वभाव की वजह से लालू यादव आज भी सबसे लोकप्रिय नेता बने हुए हैं.70 साल का यह बुढा बुजुर्ग बीमार नेता लालू यादव अस्पताल में रहते हुए भी राजनीति के सेंटर स्टेज में बने हुए हैं. ट्विटर के जरिए लोगों से आज भी जुड़़े हुए हैं और अपने विरोधियों को जबाब दे रहे हैं.महागठबंधन की रूपरेखा तय करने वाले लालू अस्पताल में भर्ती हैं. लेकिन उनके महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनसे मिलने महागठबंधन के बड़े-बड़े नेताओं को रिम्स जाना पड़ रहा है. आज भी सीट शेयरिंग का पेंच लालू ही सुलझा रहे हैं. लालू यादव अस्पताल से महागठबंधन की निगरानी कर रहे हैं.

सोमवार को लालू यादव ने ट्वीट के जरिए अपने विरोधियों पर निशाना साधा. शायराना अंदाज में लिखा—“अभी ग़नीमत है सब्र मेरा,अभी लबालब भरा नहीं हूं,वह मुझको मुर्दा समझ रहा है, उसे कहो मैं मरा नहीं हूं”.

लालू यादव के इस ट्वीट के कई मायने हैं. इस ट्वीट के जरिए लालू यादव ने एकतरफ केंद्र सरकार पर तंज कसा है वहीँ 2019 में होने वाले चुनाव को लेकर अपने विरोधियों को सावधान भी कर दिया है. विरोधियों को भी पता है कि सजा काट रहे लालू चुनावों में अपनी अहम भूमिका निभा सकते हैं.अगर जमानत पर बाहर आ गए तो सारा खेल बिगाड़ सकते हैं.

दरअसल, जनता की नब्ज और राजनीतिक मुद्दों पर जो पकड़ लालू यादव की है, वह और किसी की नहीं.जब पहलीबार लालू यादव जेल जाने लगे तो उन्होंने किचेन संभाल रही अपनी उस पत्नी राबडी देबी के हाथ में पार्टी की कमान और मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी जिनका राजनीति से दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं था. अपनी पत्नी राबड़ी को किचन से निकालकर बिहार की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाकर जेल में रहते हुए भी भी हमेशा  बिहार की सत्ता की चाबी अपने पास रखी. अपने दोनों हाई-प्रोफाइल सालों साधू सुभाष यादव की राजनीतिक महत्वकांक्षा से भविष्य में उत्पन्न होनेवाली चुनौती को भांपते हुए उन्हें अपने घर और पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया.हमेशा किचेन के काम में व्यस्त रहनेवाली राबडी देबी  आज जब विरोधियों पर निशाना साधती हैं तो देखते ही बनता है.

लालू यादव भारतीय राजनीति के उन चंद नेताओं में से एक हैं, जिन्होंने कभी भी BJP से समझौता नहीं किया. देश के महत्वपूर्ण दल अलग-अलग समय में BJP के साथ गठबंधन बनाकर सरकार चला चुके हैं,BJP को अपना समर्थन दे चुके हैं. लेकिन लालू ने कभी BJP के सामने घुटने नहीं टेके ना ही कभी उसका समर्थन किया., शायद यही वजह है कि लालू यादव और उनकी पार्टी की छवि देश के सबसे बड़े सेक्यूलर नेता और पार्टी की बनी हुई है. माया-मुलायम जैसे वो नहीं हैं जो बदली राजनीतिक परिस्थियों के हिसाब से अपना स्टैंड बदलते रहते हैं. यहीं वजह है कि लालू यादव की पहचान एक ऐसे नेता की बनी है जो कभी सांप्रदायिक ताकतों के साथ समझौता नहीं कर सकता.

लालू ने ही भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के राम रथ को बिहार में रोका था और उन्हें गिरफ्तार कर नजरबंद भी किया था. आडवाणी के रथ को रोककर अल्पसंख्यकों के सबसे बड़े चहेते नेता बन गए. अपनी इस सेक्यूलर राजनीति की कीमत भी लालू यादव को चुकानी पडी .चारा घोटाला, , रेलवे टेंडर घोटाला, मिट्टी घोटाला जैसे कई घोटालों में फंसे .उनका पूरा परिवार केस मुकदमों में फंसा. लालू यादव और उनके परिवार सत्ता में आने के साथ ही लगातार संकटों में फंसा हुआ है. लेकिन लालू यादव उनकी हस्ती कोई आजतक मिटा नहीं पाया. कई घोटालों में फंसने के वावजूद भी लालू यादव और उनकी पार्टी की जनता के बीच स्वीकार्यता बनी हुई है. लालू यादव ने सत्ता में रहते हुए अपना एक ऐसा राजनीतिक समीकरण बनाने में कामयाब रहे हैं जो हमेशा उनके अनुकूल बना रहा. कई घोटालों में फंसने और जेल जाने के वावजूद भी अल्पसंख्यक और यादव उनके साथ भावनात्मकरूप से जुड़े हुए हैं. लालू जेल में रहें या बाहर उनकी राजनीतिक ताकत में कभी कमी नहीं आई.

2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान देश में मोदी लहर थी.लोकसभा चुनाव में एनडीए ने बिहार की 40 में से 31 सीटें जितने में कामयाब हो गई.एनडीए में एलजेपी और आरएलएसपी शामिल थी और RJD ने कांग्रेस से गठबंधन कर चुनाव लड़ा था. नीतीश कुमार की पार्टी  अकेले चुनाव मैदान में थी.इस चुनाव के बाद एनडीए को मिली अप्रत्याशित जीत के बाद विपक्ष की एकजुटता की नीवं पडी थी. एक साल बाद बिहार में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान लालू ने महागठबंधन के जरिये नीतीश कुमार और कांग्रेस को अपने साथ लेकर लोकसभा चुनाव की जीत से उत्साहित एनडीए को बिहार में चारों खाने चित कर दिया था.

लालू ने नीतीश को मुख्यमंत्री बनाया और अपने पुत्रों तेजप्रताप और तेजस्वी को नीतीश की सरकार में अहम पद दिलाकर उन्हें राजनीति में उतार दिया. दोनों का निर्देशन करते रहे और अपने छोटे बेटे को अपनी जगह राजनीति में स्थापित कर दिया. लालू किंग से फिर किंगमेकर बन गए और अपने बयानों के तीर से केंद्र की एनडीए सरकार को बेधते रहे. लेकिन अचानक बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साथ छोड़ फिर से BJP का दामन थाम लिया .24 घंटे के अन्दर बिहार का राजनीतिक समीकरण बदल गया. बिहार में राजनीतिक भूचाल आ गया.बिहार में सबसे ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज करने वाली RJD को विपक्ष में बैठना पड़ा और एनडीए की सरकार बन गई.

इस साल लोकसभा चुनाव और फिर अगले साल विधानसभा का चुनाव होना है.ऐसे  में लालू यादव की कमी महागठबंधन को खल रही है.तेजस्वी यादव भी बहुत अच्छा कर रहे हैं लेकिन लालू यादव की कमी की भरपाई कर पाना किसी के लिए संभव नहीं है. अब एकबार फिर लालू यादव की पार्टी और राजनीति में पहला कदम रखने वाले उनके बेटे तेजस्वी यादव की अग्नि परीक्षा है. लालू यादव की जमानत का महागठबंधन में शामिल दल भी इंतजार कर रहे हैं क्योंकि सीटों पर लालू की ही अंतिम मुहर लगनी है. कई मामलों में उन्हें जमानत मिलनी है और अगर उन्हें जमानत नहीं भी मिलती है तो भी वो राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित कर सकते हैं. BJP की धर्म की राजनीति को वे जाति की राजनीति से काट सकते हैं. तो क्या इस बार भी लालू जेल से किंगमेकर की भूमिका निभा पायेगें, ये देखना दिलचस्प होगा.चुनौती बड़ी इसलिए भी है क्योंकि BJP को इसबार एकबार फिर से नीतीश कुरामिन मिल चूका है. BJP-और नीतीश कुमार की जोड़ी भी टेस्टेड है और इसे मात देना आसान काम नहीं है.

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