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“विशेष पड़ताल” : ठंड के कहर से ब्रेन हैमरेज और लकवा के शिकार हो रहे लोग

बिहार के किसी जिले में अलाव की व्यवस्था नहीं

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“विशेष पड़ताल” : ठंड के कहर से ब्रेन हैमरेज और लकवा के शिकार हो रहे हैं लोग

सिटी पोस्ट लाइव “विशेष पड़ताल” : बिहार में अभी कड़ाके की ठंड पड़ रही है। लगातार पारा गिरता ही जा रहा है। कयास लगाया जा रहा है कि इसबार ठंड पुराने कई साल के रिकॉर्ड को तोड़ेगी। जाहिर तौर पर आमलोगों के लिए यह चिंता का विषय है। पूरे बिहार के सरकारी और गैर सरकारी अस्पतालों से हमने आंकड़े उपलब्ध किये हैं जिसके मुताबिक 1300 से अधिक लोग इस कड़ाके की ठंड में ब्रेन हैमरेज से पीड़ित हैं। कुछ मरीज लकवाग्रस्त भी हो गये हैं। ज्यादातर मरीज उम्र दराज हैं और औसतन 50 से 55 इनकी उम्र है। लकवा ग्रस्त वे मरीज हैं जो ब्रेन हैमरेज के बाद समय पर अस्पताल नहीं आये और समय पर जिनका ईलाज नहीं हो सका। कुछ मरीज डायबिटीज और हाई बीपी से पीड़ित हैं।

दिल्ली एम्स से आये और पारस अस्पताल में अपनी सेवा दे रहे न्यूरो फिजिशियन डॉक्टर अभिषेक कुमार का कहना है कि ठंड के मौसम में खासकर बुजुर्गों में रक्त का संचार तेजी से कम हो जाता है। इस मौसम में खून के थक्के बन जाते हैं। यही खून के थक्के ब्रेन हैमरेज की नलियों को फाड़ देते हैं। इसके अलावा जिन मरीजों को ब्लड प्रेशर और डायबिटीज की बीमारी होती है, उनमें ब्रेन स्ट्रोक का खतरा चार गुना अधिक बढ़ जाता है। ऐसे में ठंड में विशेषकर बुजुर्ग मरीजों को अधिक सावधानियां बरतने की जरूरत है। पटना के सीएनएस अस्पताल के डायरेक्टर डॉक्टर अनुज कुमार सिंह, जो न्यूरो सर्जन हैं,उनका कहना है कि इस ठंड में ब्रेन में ब्लड क्लॉटिंग बड़ी मात्रा में होता है, जो जानलेवा है। अधिक उम्र के लोगों के साथ कम उम्र के लोगों के लिए भी भीषण ठंड ब्रेन हैमरेज और लकवा का कारण बन सकता है। उन्होंने साफ लहजे में कहा कि सर्दी में अधिक समय तक शरीर को रखना, बेहद नुकसानदेह है ।लोगों को गर्म कपड़े, कम्बल और गर्म घर में रहने की जरूरत है।

ऐसे में सरकार के द्वारा विभिन्य जिलों के कलेक्टर और सम्बंधित अधिकारियों को अलाव की व्यवस्था करने का कोई निर्देश जारी नहीं किया गया है। सरकार में बने लोग,विभिन्य राजनीतिक दलों के नेता और सरकारी बाबू-हाकिम से लेकर धनाढ्य लोग सारी सुविधाओं से लैस रहते हैं लेकिन अधिकांश संख्यां ऐसे लोगों की है,जो मुफलिसी के मारे और फटेहाल हैं। सड़कों पर जो यायावर की तरह रहते हैं। जो रोजमर्रा की जिंदगी बड़ी मुश्किल से संभालते हैं और जिनका कोई ठौर-ठिकाना नहीं है, ऐसे लोगों के लिए सरकार कब संवेदनशील होगी? फाईल पर कबतक कम्बल बंटेंगे और अलाव जलेंगे? अभी बिहार के सभी जिलों के लोग सर्दी में तड़प रहे हैं लेकिन उनके लिए अलाव और कम्बल की कोई व्यवस्था नहीं है। सोई हुई सरकार और मरे हुए तंत्र को आखिर कौन जगायेगा ?वैसे भी गरीबों की मौत पर भी सिर्फ राजनीति ही करनी है। वोटगिरी के चक्कर में राजधर्म आज गौण हो चुका है।

पीटीएन न्यूज मीडिया ग्रुप के सीनियर एडिटर मुकेश कुमार सिंह की “विशेष पड़ताल”

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