City Post Live
NEWS 24x7

विशेष : क्या सच में किसानों की हुई कर्ज माफी, सच्चाई खंगालने की है जरूरत

- Sponsored -

-sponsored-

- Sponsored -

विशेष : क्या सच में किसानों की हुई कर्ज माफी, सच्चाई खंगालने की है जरूरत

सिटी पोस्ट लाइव “विशेष” : मध्यप्रदेश, छतीसगढ़ और राजस्थान में नई सरकार के गठन होते ही किसानों की कर्ज माफी की घोषणा ने बेशक देश वासियों को सुखद एहसास कराया है। दलगत भावना से ऊपर उठकर देखें, तो वाकई यह एक बेहतरीन फैसला कहा जा सकता है। लेकिन हम जो अपने पाठकों के बीच सच परोसने जा रहे हैं, उसे पढ़कर आप सभी आहत होंगे और सकते में भी आएंगे। सबसे पहले यह जानने की जरूरत है कि पूर्ववर्ती सरकार के समय सरकारी और गैर सरकारी बैंक से कर्ज लेने वाले किसान,क्या वाजिब में कर्ज के उपयुक्त पात्र थे ? क्या ऐसे किसानों को कर्ज दिए गए थे, जिन्हें सच में कर्ज की जरूरत थी? आप सच्चाई जानिए की वास्तविक में जिन किसानों को कर्ज की जरूरत थी, ज्यादा संख्या में वे किसान कर्ज का लाभ नहीं ले सके।

सरकारी हाकिम तक गरीब, लाचार और बेबस किसानों की ज्यादा पहुँच और पकड़ नहीं थी। अधिकतर ऐसे लोगों ने कर्ज लिए जो सक्षम और पहुँच वाले किसान थे। बहुतों ऐसे लोगों ने ऋण लिए हैं, जो किसानी करते भी नहीं हैं। जमीन के फर्जी कागजात, या फिर जमीन के कागजात लगाकर अधिकतर ऋण लिए गए हैं। ऋण देते समय उचित पात्र का चयन नहीं किया गया था। किसान ऋण के नाम पर जमकर धांधली की गई है। अधिकारी से लेकर बिचौलिए ने खूब खेल खेले हैं। ऐसे में ऋण माफी की घोषणा से ऐसे लोगों की बल्ले-बल्ले है, जो किसान ना होते हुए भी ऋण लेने में कामयाब हुए और आज उन्हें यह सरकारी तोहफा मिला है।

किसान के कर्ज माफी के नाम पर यह किसानों के साथ फर्जीवाड़ा है। आप तीनों प्रदेशों में किसानों की सूची की की किसी तटस्थ जांच एजेंसी से जांच करवा कर देखें, तो आपको असली लूटतंत्र का तमाशा खुलकर दिखेगा। वाजिब में किसानों की सही चिंता किसी ने नहीं की है। असली किसान आज भी महाजन के कर्ज में डूबे हैं। बैंक की जगह ज्यादातर छोटे असली किसान महाजन से कर्ज लेने को ही विवश रहते हैं। आने वाले समय में किसानों की आत्महत्या की खबरें आती रहेंगी लेकिन सरकार इस सच को सामने नहीं करेगी कि असली की जगह नकली किसानों के कर्ज को माफ किया गया है। बिहार में भी फर्जी तरीके से हजारों लोगों ने किसान मद के ऋण ले रखे हैं। जिसका काला चिट्ठा हमारे पास मौजूद है।

घुसतंत्र के सामने सारे नियम और कायदे फीके हैं। यहाँ नजराने और प्रसाद पर ऋण दिए जाते हैं। किसी भी अखबार, खबरिया चैनल, या फिर बेब के सूरमाओं ने इस विषय को नहीं उकेरा है। हम अपने इस आलेख के माध्यम से विभिन्य सरकारों को यह बताना चाहते हैं कि आप जब किसानों को ऋण देने की मंसा रखते हैं, तो तटस्थ और पारदर्शी तरीके से ठोक-बजाकर किसानों की सही सूची बनवाएं, फिर उसके बाद उन्हें ऋण मुहैया कराया जाए। अगर ऐसा नहीं हुआ,तो कभी भी सरकारी ऋण का लाभ सही और जरूरतमंद किसान नहीं ले सकेंगे। फर्जी ऋण की माफी से किसानों के आत्महत्या करने का सिलसिला कभी भी नहीं रुकेगा।अगर अन्नदाता किसानों की सच्ची चिंता है,तो सही पात्र तक पहुंचना जरूरी है।

पीटीएन न्यूज मीडिया ग्रुप से सीनियर एडिटर मुकेश कुमार सिंह की “विशेष” रिपोर्ट

- Sponsored -

-sponsored-

- Sponsored -

Comments are closed.