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जन्मदिन विशेष – सत्यजीत रे

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सिटी पोस्ट लाइव :भारतीय सिनेमा को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान और ख्याति दिलाने वाले सत्यजित राय एक महान निर्देशक तो थे ही, साथ ही एक अच्छे चित्रकार, कार्टूनिस्ट, कहानी और गद्यकार भी थे | इनके व्यक्तित्व के कई विशिष्ट पहलु थे| अपनी फिल्मो का संगीत निर्देशन सत्यजीत रे स्वयं करते थे और साथ ही छाया-चित्रण एवं एडिटिंग में भी सक्रिय भाग लेते थे|उनकी पहली फिल्म ‘पाथेर पांचाली’ को भारत ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खूब सराहना मिली और कई बड़े अवॉर्ड भी मिले। सत्यजीत रे भारतीय सिनेमा के एकमात्र ऐसे नाम हैं जिन्हें वो सारे अवॉर्ड और सम्मान मिले, जिसे पाना, किसी सपने के सच होने जैसा है।

महज 3 साल की उम्र में उनके सिर से पिता का साया उठ जाने के बाद मां सुप्रभा ने उन्हें बड़े ही लाड़ से पाला। पढ़ने-लिखने में वह एक औसत लेकिन, प्रतिभाशाली छात्र रहे। उनकी कॉलेज की पढ़ाई प्रेसीडेंसी कॉलेज में हुई। स्कूल के समय से ही सत्यजीत रे संगीत और फ़िल्मों के दीवाने हो गए।

ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी ने उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि से विभूषित किया | विश्व प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता चार्ली चेपलिन के बाद वे दुसरी फ़िल्मी हस्ती थे जिन्हें यह सम्मान प्राप्त हुआ | फ्रास की जनक्रांति की द्वितीय शताब्दी के अवसर पर फ्रास के राष्ट्रपति फ्रांस्वा मितरा स्वयं सत्यजित राय को “लीजर ऑफ़ ऑनर” की उपाधि तथा सम्मान प्रदान करने के लिए फ्रास से कलकत्ता पधारे थे |सन 1967 में उन्हें पत्रकारिता और साहित्य की सेवा करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय ख्याति का “मैग्सेसे अवार्ड” प्रदान किया गया था | सन 1971 में उन्हें “आर्डर ऑफ़ युगोस्लाव फ्लेग” सम्मान प्राप्त हुआ|

सत्यजीत को वेस्टर्न फ़िल्मों और संगीत का चस्का लग चुका था और उसके लिए वह सस्ते बाजार में भटका करते थे। कॉलेज से अर्थशास्त्र की पढाई पूरी करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए रे शांतिनिकेतन चले गए और अगले पांच साल वहीं रहे। इसके बाद 1943 में वो फिर कलकत्ता आ गए और बतौर ग्राफिक डिजाइनर काम करने लगे।इस दौरान उन्होंने कई किताबों के कवर डिजाइन किए जिनमें जवाहर लाल नेहरू की ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ भी शामिल है। यहां पर उन्हें डिजाइन करने में क्रिएटिविटी दिखाने की पूरी छूट थी। उस वक्त किसे पता था कि ये डिजाइनर एक दिन दुनिया में बतौर फिल्मकार भारत का परचम फहराने वाला है।

satyjit ray

विश्व में फ़िल्मी दुनिया का कोई भी व्यक्ति महानता , लोकप्रियता और कला के उस उच्च शिखर पर नही पहुच सका जहा सत्यजित राय ने पहुच कर दिखाया | फ़िल्मी विश्व का यह बहु आयामी व्यक्तित्व कलकत्ता के अस्पताल में पड़ा तीन माह तक अपनी मौत से झुझता रहा | 23 अप्रैल 1992 को अपनी नश्वर देह का त्याग कर उनके प्राण पखेरू विश्व निर्माता के असीम गगन में विलीन हो गये | उनके स्वर्गवास पर भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति ने कहा था “जिस तरह हुगली नदी बंगाल की खाड़ी में मिलकर अनंत सागर में विलीन हो जाती है,उसी प्रकार सत्यजित राय का जीवन अनंत काल के सागर में समा गया है |

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