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दागी नेताओं पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, हर जिले में विशेष अदालतों का होगा गठन

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दागी नेताओं पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, हर जिले में विशेष अदालतों का होगा गठन

सिटी पोस्ट लाइव : उच्चतम न्यायालय ने वर्तमान एवं पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों पर सुनवाई के लिए बिहार और केरल के प्रत्येक जिले में विशेष अदालतों के गठन का मंगलवार को निर्देश दिया है. प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति केएम जोसफ की पीठ ने दोनों राज्यों के प्रत्येक जिले में विशेष अदालतों के गठन के दिशा-निर्देश देने के साथ ही 14 दिसंबर तक पटना तथा केरल उच्च न्यायालयों से अनुपालन रिपोर्ट पेश करने को भी कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने इन सेशन कोर्ट से सांसदों और विधायकों के मामलों को प्राथमिकता के आधार पर सुनवाई करने का भी निर्देश जारी किया है. आपको बता दें कि एक साल के अंदर इन सेशन कोर्टों में दागी विधायकों और सांसदों के लंबित मामलो का तेजी से निपटारा किया जाएगा.

 शीर्ष अदालत ने कहा है कि सांसदों/विधायकों के खिलाफ मामलों की सुनवाई के लिए दो राज्यों के जिलों में जरूरत के अनुसार अदालतों का गठन किया जा सकता है. शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि विशेष अदालतें जब सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों की सुनवाई करेंगी तो उनकी की प्राथमिकता में उम्र कैद के मामले होंगे. इससे पहले एमिकस क्यूरी ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने जवाब में बताया था कि देश भर में दागी नेताओं के खिलाफ कुल 4122 आपराधिक मुकदमे अदालतों में चल रहे हैं. एमीकस क्यूरी के विजय हंसरिया और स्नेहा कलिता ने राज्यों और हाई कोर्ट से प्राप्त आंकड़ों के आधार रिपोर्ट को जारी किया था.

गौरतलब है कि सितम्बर में भी इस मामले पर सुनवाई की गई थी, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने दागी नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि केवल चार्जशीट के आधार पर जनप्रतिनिधियों पर कार्रवाई नहीं की जा सकती. कोर्ट ने निर्देश दिया है कि चुनाव लड़ने से पहले उम्मीदवार अपना आपराधिक रिकॉर्ड चुनाव आयोग के सामने घोषित करें. साथ ही सरकार इस मामले में कानून बनाने का काम करे. वहीं दो नवम्बर को कोर्ट ने सुनवाई के दौरान सुनवाई के दौरान हंसारिया ने कहा कि दागी सांसद व विधायकों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मुकदमे से निपटने के लिए स्पेशल कोर्ट बनाने से बेहतर यह होगा कि हर जिले में एक सत्र न्यायालय और एक मजिस्ट्रेट कोर्ट को विशेष तौर ऐसे मामलों के निपटारे लिए सूचीबद्ध कर दिया जाए. जिससे कि निर्धारित समय के अंदर मुकदमे का निपटारा संभव हो सके.

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