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त्रिनिदाद देश में अब भी सबसे प्रभावशाली है भारतीय : प्रो. जयराम

महाराजा जयंती पर आइना-ए-तिरहुत का पुन: प्रकाशन

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#citypostlive दरभंगा : महाराजाधिराज डॉ. कामेश्वर सिंंह के जन्म दिवस के अवसर पर कल्याणी निवास में महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फाउंडेशन के तत्वावधान में व्याख्यान का आयोजन किया गया। ए. एन. सिन्हा, सामाजिक विज्ञान शोध संस्थान के पूर्व निदेशक  डॉ. डीएम दिवाकर की अध्यक्षता में संपन्न हुए इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए टाटा इंस्टिच्युट आॅफ सोशल साइंसेज, मुम्बई के पूर्व प्राचार्य, समाजशास्त्री प्रो. एन. जयराम ने कहा कि त्रिनिदाद में वर्तमान समय में भारतीय सबसे प्रभावशाली है। उन्होंने कहा कि 30 मई 1845 को फतह अल रजÞाक नामक जहाज से 227 भारतीय मजदूरों का पहला जत्था त्रिनिदाद पहुंचा था। उन्होंने बताया कि 31 अगस्त 1961 तक त्रिनिदाद इंग्लैण्ड का उपनिवेश था। प्रो. जयराम ने विस्तृत रूप से जानकारी दी कि पहला जत्था जो प्रवासियों का पहुंचा था, उनमे से एक का पौत्र वासुदेव पांडेय 9 नवम्बर 1995 को रिपब्लिक आॅफ त्रिनिदाद एण्ड टोबैको का प्रधानमंत्री बना। उन्होंने बताया कि त्रिनिदाद पहुंचने वाले मजदूरो को बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश से गन्ने की खेती के लिए लाया गया था। जिन्हें गिरमिटिया मजदूर कहा जाता था। वस्तुत: एग्रीमेंट के आधार पर जो लोग काम करते हैं। उन्हें क्षेत्रिय भाषा में गिरमिटिया कहा जाता है। उन्होंने बताया कि 178 वर्षों में इन गिरमिटिया मजदूरों की स्थाई प्रव्रजन ने इस देश में एक अलग सामाजिक-सास्कृतिक संरचना को जन्म दिया। उन्होंने बताया कि आज त्रिनिदाद में 37.6 प्रतिशत जनसंख्या इन्हीं गिरमिटिया प्रवासियों की है। इस अवसर पर कामेश्वर सिंह बिहार हैरिटेज सिरीज के अंतर्गत आइना-ए-तिरहुत पुस्तक का द्वितीय संस्करण प्रकाशित किया गया। कार्यक्रम के प्रारंभ में आगत अतिथियों का स्वागत पद्मश्री मानस बिहारी वर्मा ने किया। धन्यवाद ज्ञापन प्रो. रामचंद्र झा और पुस्तक परिचय डॉ. मंजर सुलेमान ने किया।

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