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सिस्टम बदलना सरकार के बूते का नहीं, गांवों को आगे आना होगा : सुदेश महतो

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सिस्टम बदलना सरकार के बूते का नहीं, गांवों को आगे आना होगा : सुदेश महतो

सिटी पोस्ट लाइव, रांची: आजसू सुप्रीमो सुदेश कुमार महतो ने कहा कि जिस सिस्टम ने गांवों की बड़ी आबादी को याचक बना दिया है, उसे बदलना सरकार के बूते का नहीं। इसलिए गांव के ग्रामीण आगे बढ़कर बोलें | राजनेताओं के सामने और अफसरों के मुंह पर। यही वक्त का तकाजा है। गांवों के लोगों को महज वोटर बनाकर छोड़ दिया गया है। तब वोटर पांच साल का इंतजार नहीं करे। हर दिन जवाब दे। हर दिन का हिसाब ले। सुदेश महतो बुधवार को स्वराज स्वाभिमान यात्रा के तीसरे चरण में लोहरदगा के विभिन्न गांवों में चौपाल में बोल रहे थे। चौपाल के दौरान कुंदो गांव में 70 साल की एक बुजुर्ग महिला की पीड़ा सुनकर सुदेश महतो भावुक हुए और कहा कि इन हालात को जानने महसूस करने के लिए सरकार चलाने वाले और लोकसेवक जो घोषित तौर पर दाता बने बैठे हैं, उन्हें गांव के चौपाल में आना होगा, लेकिन इसके लिए वे तैयार नहीं है। उन्होंने कहा कि जनमत तैयार करने और सिस्टम आम आदमी बदल सकता है। यही चेतना जगाने वे यात्रा पर निकले हैं। सरकारें आती जाती रहेंगी, नेता चुनाव जीतते-हारते रहेंगे, सिस्टम नहीं बदला, तो अवाम मुश्किलों के बीच फंसी रहेगी। कुंदो की चौपाल में ग्रामीणों ने बताया कि 70 साल की बुजुर्ग महिला के पेंशन के लिए पांच दफा आवेदन भरा गया, लेकिन आदेश नहीं निकला। गांवों की चौपाल में महतो ने कहा कि अब रास्ता सिर्फ एक है। गांव के लोगों को अपनी आवाज मजबूत करनी होगी। अपनी लड़ाई लड़नी होगी। जब हम और हमारे लोग अलग राज्य की लड़ाई जीत सकते हैं, तो अफसर शाही, दारोगा राज क्यों नहीं बदल सकते।
महतो ने आज कहा कि लोहरदगा वीरों की धरती रही है। इसी आवाज को बड़ा करने और लड़ाई के लिए आम लोगों को बीच साहस भरने के लिए ही वे इस यात्रा पर निकले हैं। महिला समूहों से उन्होंने अपील की है कि वे सिर्फ पांच दस रुपये जमा नहीं करें, हक अधिकार की बात भी आंख मिला कर करें। हमें यकीन है कि गांव के लोग आंख और जुबान खेलने लगे, तो राजनीति की चाल बदलने के साथ सत्ता तथा सिस्टम में बैठे पावरफुल लोगों का रवैया भी बदलेगा। इसलिए अब कहीं से लड़ाई की शुरुआत होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि पंचायत के फैसले गांव की गलियों में दम तोड़ जाते हैं। इसी तस्वीर के लिए पंचायती राज व्यवस्था की परिभाषा नहीं लिखी गई थी और न ही पंचायत चुनाव कराये गये थे। सरकार अफसरों की जिम्मेदारी तय करे और राजनेता तथा दल इस भ्रम को छोड़ दें कि न राजनीति का मतलब चुनाव भर है। सत्ता का केंद्र गांव होगा। इसके लिए हर आम आदमी को लड़ाई का भागीदार बनना ही होगा। पदयात्रा में डॉ देवशरण भगत, राजेंद्र मेहता, नीरू शांति भगत, सुबोध प्रसाद आदि शामिल थे।

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