सहरसा : कैलू यादव के हत्यारे ने कोर्ट में किया सरेंडर, पुलिस की बची नाक
सिटी पोस्ट लाइव : आजकल सहरसा में एक ट्रेंड चल पड़ा है। पहले हत्या करो,फिर कोर्ट में सरेंडर कर दो। हत्यारे पुलिस के हाथ आते ही नहीं हैं। इस माह 23 नवम्बर को सहरसा के अति व्यस्ततम इलाके कचहरी ढ़ाला पर दिनदहाड़े सूरज यादव ने चाकू से ताबड़तोड़ हमले कर के कैलू यादव को मौत के घाट उतार दिया था। बता दें कि मृतक कैलू यादव सामाजिक रसूखदार थे और उनके नाम पर प्रसिद्ध कैलू चौक है। सूरज यादव ने कैलू यादव की पीठ, गर्दन और सर पर करीब एक दर्जन बार चाकू गोदकर उन्हें गम्भीर रूप से जख्मी कर दिया था, जिनकी मौत सदर अस्पताल में घटना के कुछ समय बाद ही ईलाज के दौरान हो गयी थी। सूरज यादव के सरेंडर करने से पुलिस का काम बेहद हल्का हो गया है और पुलिस ने इससे जमकर राहत की सांस ली होगी।वैसे इस हत्याकांड के कुछ और आरोपी हैं लेकिन वे महज नाम के हैं। मुख्य आरोपी सूरज यादव था, जिसने पुलिस का काम आसान कर दिया है। अब अदालत उसे जमानत देती है कि सजा, इसपर धूंध बरकरार है।
हम अपने पाठकों को यह बताना जरूर चाहेंगे कि इस इलाके में जब हत्या जैसी जघन्य घटना घटती है, तो उसके मुख्य आरोपी को पुलिस कतई नहीं पकड़ पाती है। मुख्य आरोपी कोर्ट में सरेंडर कर सीधा जेल पहुँचता है। इसी साल 18 जून को दिनदहाड़े सहरसा जिला मुख्यालय के कोसी चौक पर मन्नू सिंह की हत्या हुई थी। यह बेहद हाई प्रोफाईल हत्याकांड था। इस हत्याकांड के शूटर बाबू शर्मा, बबन शर्मा और रजनीश यादव ने कोर्ट में सरेंडर किया था।14 नवम्बर को दिनदहाड़े कारोबारी उमेश साह के घर में घुसकर गोली मारकर हत्या करने वाला गब्बर मल्लिक ने भी कोर्ट में ही सरेंडर किया था। इसके अलावे भी कई और ऐसे मामले हैं,जो पुलिसिया कारवाई पर सवाल खड़े कर रहा है। जब अपराधी हत्या जैसी वारदात कर ही रहे हैं और गिरफ्तारी की जगह वे कोर्ट में ही सरेंडर कर रहे हैं, तो आखिर फिर पुलिस की क्या जरूरत है? पुलिस को आत्ममंथन करने की जरूरत है।पुलिस की जरूरत पर अब बहस और विमर्श की जरूरत है।
पीटीएन न्यूज मीडिया ग्रुप के सीनियर एडिटर मुकेश कुमार सिंह की रिपोर्ट
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