गोपाष्टमी के अवसर पर पर तेघड़ा गौशाला में गायों की सामूहिक पूजा अर्चना की गई
सिटी पोस्ट लाइव : बेगूसराय जिले के तेघड़ा गौशाला की एक अलग ही अपनी पहचान है, जहां बिहार के राज्यपाल सह भारत के वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने पटना से जाने से पहले अपनी एक गाय तेघड़ा गौशाला को दान दिया था. कार्तिक मास के शुक्ल अष्टमी को तेघड़ा गौशाला में गोपाष्टमी धूमधाम से मनाई जाती है. इस क्रम में गुरुवार को गायों को नहला धुलाकर सजाया गया, जिसके बाद महिलाओं ने पूजा अर्चना की. तेघड़ा गौशाला के अध्यक्ष अनुमंडल पदाधिकारी डॉ निशांत, अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी आशीष आनंद और गौशाला के सचिव शिवकुमार केजरीवाल ने गौशाला पहुंचकर, गौ माता को चना गुड़ खिलाकर विधिवत् पूजा अर्चना की.
तेघड़ा गौशाला में गोपाष्टमी के अवसर पर सुबह से ही महिला पुरुषों की गौ पूजन के लिये भीड़ लगीं रही. बताते चलें कि तेघड़ा गौशाला में एक से एक नस्ल के सौ से अधिक संख्या में गाय बछड़ा है, जिसकी देखरेख अच्छी तरह से होने की सूचना पर बिहार के तत्कालीन राज्यपाल रामनाथ कोविन्द ने अपने पटना के आवास को छोड़ने से पहले अपनी एक गाय तेघड़ा गौशाला को देख रेख करने के लिये दिये थे. तेघड़ा गौशाला में बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने दो बार पहुंचकर तेघड़ा गौशाला में गायों को देखने पहुंचे थे. जिसके बाद उन्होंने पशु चारा बैंक का विधिवत् उद्घाटन किया था.
गौशाला के सचिव शिवकुमार केजरीवाल ने बताया कि- गोपाष्टमी महोत्सव गोवर्धन पर्वत से जुड़ा उत्सव है। गोवर्धन पर्वत को द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक गाय व सभी गोप-गोपियों की रक्षा के लिए अपनी एक अंगुली पर धारण किया था. गोवर्धन पर्वत को धारण करते समय गोप-गोपिकाओं ने अपनी-अपनी लाठियों का भी टेका दे रखा था, जिसका उन्हें अहंकार हो गया कि हम लोगों ने ही गोवर्धन को धारण किया है. उनके अहं को दूर करने के लिए भगवान ने अपनी अंगुली थोड़ी तिरछी की तो पर्वत नीचे आने लगा. तब सभी ने एक साथ शरणागति की पुकार लगायी और भगवान ने पर्वत को फिर से थाम लिया.
उधर देवराज इन्द्र को भी अहंकार था कि मेरे प्रलयकारी मेघों की प्रचंड बौछारों को मानव श्रीकृष्ण नहीं झेल पायेंगे परंतु जब लगातार सात दिन तक प्रलयकारी वर्षा के बाद भी श्रीकृष्ण अडिग रहे, तब आठवें दिन इन्द्र की आँखें खुली और उनका अहंकार दूर हुआ. तब वे भगवान श्रीकृष्ण की शरण में आए और क्षमा माँगकर उनकी स्तुति की. कामधेनु ने भगवान का अभिषेक किया और उसी दिन से भगवान का एक नाम ‘गोविंद’ पड़ा. वह कार्तिक शुक्ल अष्टमी का दिन था. उस दिन से गोपाष्टमी का उत्सव मनाया जाने लगा.
बेगूसराय से सुमित कुमार की रिपोर्ट
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