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राम मंदिर को लेकर सुशिल मोदी का SC पर हमला, JDU ने कहा कोर्ट पर सवाल उठाना गलत

करोड़ों लोगों की आस्था से जुड़ा है राम मंदिर, कोर्ट को इससे खिलवाड़ का अधिकार नहीं

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नीतीश सरकार के डिप्टी सीएम का बड़ा बयान, राम मंदिर पर जल्द फैसला सुनाये कोर्ट

सिटी पोस्ट लाइव : भारत को एकता के सूत्र में बांधने वाले महान नेता सरदार वल्ल्भ भाई पटेल की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में बिहार के उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने पहलीबार राम मंदिर पर बड़ा बयान दे दिया है. सुशील कुमार मोदी ने कहा कि राम मन्दिर से करोड़ों लोगों की भावना से जुड़ा है. न्यायपालिका या कार्यपालिका को लोगों की भावना से खिलवाड़ का अधिकार नहीं है. सुशील कुमार मोदी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को राम मंदिर पर फैसला टालना नहीं चाहिए. इस मामले पर जल्द-जल्द फैसला करना चाहिए.

सुशील कुमार मोदी ने कहा कि जब कर्नाटक में सरकार गठन के लिए सुप्रीम कोर्ट रात के 1 बजे अपना फैसला सुना सकता है,  तो वह करोड़ों लोगों की भावना की अनदेखी कैसे कर सकता है. यह मामला 150 साल से कोर्ट में लटका है. इसके बाद भी सुप्रीम कोर्ट को इस केस पर सुनवाई के लिए समय नहीं है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तो 2010 में ही मंदिर निर्माण को लेकर फैसला दे दिया था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट कह रहा है कि अभी इस केस की सुनवाई को लेकर कोई जल्दीबाजी नहीं है. सुशील मोदी ने कहा कि मै मांग करता हूं कि कोर्ट करोड़ों लोगों की भावना का सम्मान करें. मस्जिद तो कहीं भी बन सकती है. नमाज कहीं भी पढ़ी जा सकती है.

गौरतलब है कि हमेशा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राय से इतेफाक रखने वाले सुशील मोदी ने पहलीबार ऐसा बयान दिया है, जो शायद नीतीश कुमार को नागवार लगेगा. मुख्यमंत्री पहले ही कह चुके हैं कि बीजेपी  से मेल तो हुआ है लेकिन राम मंदिर, धारा 370 जैसे संवेदनशील मुद्दों पर उनका स्टैंड अलग है. इन मुद्दों पर वे बीजेपी  के साथ नहीं हैं. सुशील कुमार मोदी नीतीश सरकार में डिप्टी सीएम हैं. अब उन्होंने राम मंदिर बनाये जाने की वकालत कर नीतीश कुमार की चुनौती को और भी बाधा दिया है .पहले से गिरिराज सिंह और अश्वनी चौबे राम मंदिर को लेकर कड़े बयान दे चुके हैं. लेकिन यह पहला मामला है जब बिहार सरकार के किसी मंत्री ने राम मंदिर को लेकर बीजेपी के हार्डकोर लाइन पर लेकर इतना बड़ा बयान दिया है.जेडीयू के प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा कि कोर्ट की सक्रियता पर सवाल उठाना एक गंभीर मामला है.कोर्ट को अपने हिसाब से कम करने देना चाहिए .

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