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डाइवर्सिटी डे 2018 : दलित आंदोलनों के इतिहास में भोपाल सम्मलेन का महत्व

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डाइवर्सिटी डे 2018 : दलित आंदोलनों के इतिहास में भोपाल सम्मलेन का महत्व

सिटी पोस्ट लाइव : स्वाधीनोत्तर भारत के दलित आंदोलनों के इतिहास में भोपाल सम्मलेन (12-13 जनवरी, 2002) का एक अलग महत्व है, जिसमें 250 से अधिक शीर्षस्थ दलित बुद्धिजीवियों ने शिरकत किया था. उसमें दो  दिनों के गहन विचार मंथन के बाद 21 सूत्रीय ‘भोपाल घोषणापत्र’ जारी हुआ था जिसमें अमेरिका की डाइवर्सिटी नीति का अनुसरण करते हुए वहां के अश्वेतों की भांति ही भारत के दलितों(एससी-एसटी)को सप्लायर, डीलर, ठेकेदार इत्यादि बनाने का सपना दिखाया गया था. किन्तु किसी को भी यकीन नहीं था कि डाइवर्सिटी नीति भारत में लागू भी हो सकती है.पर, भोपाल घोषणापत्र जारी करते समय किये गए वादे के मुताबिक, एक अंतराल  के बाद 27  अगस्त 2002 को, दिग्विजय सिंह ने अपने राज्य के छात्रावासों और आश्रमों के लिए स्टेशनरी, बिजली का सामान, चादर, दरी, पलंग, टाटपट्टी, खेलकूद का सामान इत्यादि का नौ लाख उन्नीस हज़ार का क्रय आदेश भोपाल और होशंगाबाद के एससी/एसटी के 34 उद्यमियों के मध्य वितरित कर भारत में ‘सप्लायर डाइवर्सिटी’ की शुरुवात कर दी थी.

दिग्विजय सिंह की उस छोटी सी शुरुआत से दलितों में यह विश्वास पनपा था कि यदि सरकारें चाहें तो सदियों से उद्योग-व्यापार से बहिष्कृत किये गए एससी/एसटी को उद्योगपति-व्यापारी बनाया जा सकता है.फिर क्या था ! देखते ही देखते डाइवर्सिटी लागू करवाने  के लिए ढेरों संगठन वजूद में आ गए जिनमें आरके चौधरी का बीएस-4 भी था.बाद में इसी उद्देश्य से उत्तर भारत के दलित लेखकों ने 15 मार्च,2007 को ‘बहुजन डाइवर्सिटी मिशन’(बीडीएम) संगठन की स्थापना किया,जिसका संस्थापक अध्यक्ष बने  लेखक एच.एल . दुसाध .

जिन दिनों बीडीएम के निर्माण के लिए लेखकों से विचार-विमर्श की प्रक्रिया चल रही थी उन्ही दिनों डॉ. संजय पासवान ने डाइवर्सिटी पर एक बड़ा सम्मलेन आयोजित करने का मन बनाया.उसके लिए दलित आंदोलनों की कई महत्त्वपूर्ण तिथियों की उपेक्षा कर उस दिन को चुना, जिस दिन मध्य प्रदेश में लागू हुई थी ‘सप्लायर डाइवर्सिटी’. 2006 के 27 अगस्त को उस सम्मलेन का आयोजन ‘वंचित प्रतिष्ठान’ और ‘एमेटी दलित सिनर्जी फोरम’ द्वारा दिल्ली के ‘इंडिया इंटरनेशनल सेंटर’ में हुआ.

जिसमें दिग्विजय सिंह और भारत में डाइवर्सिटी के सूत्रपात्री चंद्रभान प्रसाद सहित पदमश्री डॉ.जगदीश प्रसाद, प्रो.वीरभारत तलवार, पत्रकार अभय कुमार दुबे, चर्चित दलित साहित्यकार डॉ.जय प्रकाश कर्दम, एमेटी विवि के एके चौहान और मैनेजमेंट गुरु अरिंदम चौधरी जैसे जाने-माने बुद्धिजीवियों ने शिरकत किया था. उस आयोजन का नाम दिया गया था ‘डाइवर्सिटी डे’. बाद में जब 15 मार्च, 2007 को बीडीएम की स्थापना हुई, बहुजन डाइवर्सिटी मिशन से जुड़े लेखकों ने मध्य प्रदेश में लागू हुई सप्लायर डाइवर्सिटी से प्रेरणा लेने के लिए भविष्य में भी ‘डाइवर्सिटी डे’ मनाते रहने का निर्णय लिया. इस तरह बीडीएम के जन्मकाल से ही हर वर्ष 27 अगस्त को देश के जाने-माने बुद्धिजीवियों की उपस्थिति में डाइवर्सिटी डे मनाने को जो सिलसिला शुरू हुआ ,वह आजतक अटूट है.इस बीच डाइवर्सिटी के वैचारिक आन्दोलन के फलस्वरूप उतर प्रदेश, बिहार ,उत्तराखंड इत्यादि में नौकरियों से आगे बढ़कर उद्योग-व्यापार में हिस्सेदारी का दृष्टान्त स्थापित हो चुका है.

विगत कुछ वर्षों से कुछ अत्याज्य कारणों से डाइवर्सिटी डे का आयोजन  नियत तिथि पर नहीं हो पा रहा है. इस बार भी नियत तिथि पर न होकर 13वें ‘डाइवर्सिटी डे’ का आयोजन  4 नवम्बर, 2018, को नगरपालिका कम्युनिटी हॉल ,मऊ, उत्तर प्रदेश  में होने जा रहा है. इस बार भी इसमें हमेशा की तरह  देश  के विभिन्न अंचलों के जाने-माने प्रमुख लेखक, पत्रकार और शिक्षाविद शिरकत रहे हैं. इस बार एच.एल दुसाध सहित जो हस्तियाँ शिरकत कर रही हैं, वे हैं- बुद्ध शरण हंस, डॉ.लाल रत्नाकर, महेंद्र नारायण सिंह यादव, के.नाथ, फ्रैंक हुजुर, विद्या गौतम, डॉ.राम बिलास भारती, अरसद सिराज मक्की, सत्येन्द्र पीएस,भंवर मेघवंशी ( सामाजिक कार्यकर्त्ता , भीलवाड़ा,राजस्थान ), गोरख पासवान, चंद्रभूषण सिंह यादव, विद्यानंद आजाद, आरके यादव, शिवचंद राम, के.सी.भारती, डॉ. जी.सिंह कश्यप, उमेश कुमार रवि, डॉ. अमरनाथ पासवान, डॉ. राजबहादुर मौर्य, डॉ.राहुल राज, डॉ. कौलेश्वर “प्रियदर्शी”,डॉ. नानटून  पासवान, अनूप श्रमिक,  निर्देश सिंह, ज्ञानवती पासवान, डॉ.सीपी आर्या, राजवंशी जे.ए.आंबेडकर, मन्नु पासवान, इकबाल अंसारी, गणेष  रवि,रामाश्रय  बौद्ध (गढ़वा, झारखण्ड), कपिलेश प्रसाद , अरमा कुमारी.

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