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पटना : ऐतिहासिक वनदेवी मंदिर की अलौकिक कहानी, हर मनोकामना होती है पूरी

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पटना : ऐतिहासिक वनदेवी मंदिर की अलौकिक कहानी, हर मनोकामना होती है पूरी

सिटी पोस्ट लाइव : राजधानी पटना से 30 किमी दूर बिहटा के राघोपुर मिश्रीचक में स्थित ऐतिहासिक वनदेवी मंदिर की ख्याति दूर दूर तक फैली है.  भक्तों में ये मान्यता है की इस मंदिर में आकर सच्चे मन से माँ से माँगने वाले हर भक्त की मुराद जरूर पूरी होती है. यूँ तो इस मंदिर में हर रोज भक्तों की भीड़ लगती है. लेकिन हर साल नवरात्र में यहाँ आने वाले भक्तों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है.

इस मंदिर के इतिहास की बात करें तो लगभग तीन सौ वर्ष पूर्व माँ विंध्यावासिनी के पिंड का अंश लाकर उनके भक्त व सिद्ध पुरुष विद्यानंद जी मिश्र ने इनकी स्थापना करायी थी. उस दौरान मिश्रीचक में काफी जंगल था इसलिये इनका नाम वनदेवी रखा गया. ऐसे तो इस मंदिर को लेकर कई किवदंतियां हैं, लेकिन जो सबसे प्रचलित है, उसमें माँ वनदेवी की स्थापना और अपने भक्त की लाज बचाने के लिए वनदेवी का कनखा माई बनना ज्यादा मशहूर है.बताया जाता है की विद्यानंद जी मिश्र  कालांतर में माँ के बड़े भक्त थे. उन्हें लोग अद्भुत सिद्धि के कारण भी आज जानते है. विद्यानंद उनदिनों भी माँ विंध्यावासिनी, वैष्णो देवी और मैहर में जाकर पूजा अर्चना किया करते थे. वृद्धावस्था में जब उन्हें चलने में परेशानी होने लगी तो एक रात माँ विंध्यावासिनी उनके स्वप्न में आई. उन्होंने कहा कि हमारे पिंड का कुछ अंश लेकर चलो मैं तुम्हारे साथ चलूँगी.

विद्यानंद इस स्वप्न के बाद विंध्याचल गए और पिंड का अंश लेकर बिहटा के मिश्रीचक स्थित जंगल में पहुँचे. जहाँ एक जगह पर उनकी स्थापना कर प्रतिदिन पूजन करने लगे. उनदिनों बनारस के एक सन्यासी विद्यानंद की परीक्षा लेने के लिए भेड़ों का झुंड लेकर पहुँचा था. विद्यानंद वनदेवी मंदिर में ध्यान में लिन थे. सन्यासी ने अपने भेड़ों से कई सवाल कराकर उनके ध्यान तोड़ने की कोशिश करने लगा. इसपर विद्यानंद ने अपने आगे रखे कलश पर त्रिपुंड से स्पर्श किया तो भेड़ों के सवाल के जवाब उस कलश से निकलने लगा.

सन्यासी को इस पर क्रोध आ गया और उसने कलश पर प्रहार कर दिया. जिससे उसका एक कनखा टूटकर अशोक के वृक्ष पर टंग गया. कहा जाता है की माँ वनदेवी अपने भक्त विद्यानंद के साथ सन्यासी द्वारा की जा रही धृष्टता पर क्रोधित हो गयी और उस टूटे कनखे ने उस सन्यासी को दंड देना शुरू कर दिया. माँ के क्रोध को शांत करने के लिए विद्यानंद ने अपना ध्यान तोड़कर क्षमा की अपील की तब जाकर उस सन्यासी की जान बची.बता दें कि नवरात्र के इस पावन मौके पर वन देवी का विशेष श्रृंगार किया जाता हैं. जिसे देखने और पूजा करने के लिए लोग दूर दराज से आते हैं. नवरात्र में 9  दिन माँ की विशेष आरती भी होती है.  आज सप्तमी पूजा है और आज भी पूजा के लिए माँ वनदेवी मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी है. माँ वनदेवी की पूजा अर्चना करने मात्र से सारी मनोकामना पूरी होती है इसलिए हर दिन श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर माँ के दरबार में पहुँचते है.

निशांत सिंह की रिपोर्ट

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