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सहरसा : सोशल मीडिया पर फजीहत के बाद देर शाम शहीद आशीष के घर पहुंचे बड़े अधिकारी

उग्रतारा महोत्सव में देर रात तक सभी नाच-गाने और ठुमके में थे जकड़े

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सहरसा : सोशल मीडिया पर फजीहत के बाद देर शाम शहीद आशीष के घर पहुंचे बड़े अधिकारी

सिटी पोस्ट लाइव, सपेशल : 12 अक्टूबर की काली रात सब इंस्पेक्टर आशीष सिंह की मौत की रात थी। खगड़िया के दियारा इलाके से नौगछिया इलाके में दुर्दांत दिनेश मुनि गिरोह का आतंक है। कोसी दियारा का फरकिया इलाके में कभी इंग्लिश चौधरी का आतंक था। वर्ष 2008 में एसटीएफ और खगड़िया के तत्कालीन एसपी विनीत विनायक ने सहरसा, खगड़िया सहित कई जिलों में आतंक का पर्याय बने इंग्लिश चौधरी सहित नौ खूंखार अपराधियों को चारों तरफ से घेराबंदी कर के मौत के घाट उतार दिया था। इंग्लिश चौधरी के सफाए के बाद दियारा में छुटभैये अपराधी ही बचे। वैसे रामानंद यादव गिरोह का वर्चस्व दशकों से कायम है। रामानंद यादव की खासियत यह है कि वह दुर्दांत अपराधी होते हुए भी पुलिस की मदद में खड़ा रहता है। उसकी अदावत नक्सलियों से है और वह नक्सलियों से अक्सर लोहा लेता रहता है। जाहिर तौर पर रामानंद यादव के अपराधी रहते हुए भी उसकी एक अलग सामाजिक छवि है।

इस समाचार विश्लेषण का मकसद सिर्फ और सिर्फ दिलेर सब इंस्पेक्टर आशीष कुमार सिंह की अपराधियों के द्वारा हत्या है। वाकई यह मौत कोई साधारण मौत नहीं है बल्कि यह एक चिर स्मरणीय शहादत है। लेकिन इस शहादत से पहले के कुछ सच को खंगालना जरूरी है। दिनेश मुनि गिरोह का आतंक सहरसा के दियारा, खगड़िया और नौगछिया के दियारा से लेकर शहरी क्षेत्र में था। 12 अक्टूबर की रात बारह बजे से पहले शहीद आशीष कुमार सिंह के मोबाइल पर खून चटोरे अपराधी दिनेश मुनि को लेकर खबर आई। इस खबर को आधार बनाते हुए आशीष कुमार सिंह बेहद कम संख्या बल के साथ अपने थाना परसाहा से दियारा की तरफ कूच कर गए। उनके साथ अत्याधुनिक हथियार नहीं थे। बड़ा सवाल यह है कि दिवंगत आशीष कुमार सिंह ने इस मुहिम की जानकारी जिले के किन-किन आला अफसरों को दी थी? जब घटनास्थल पर वे अपराधियों के समूह से घिर गए, तो क्या उस समय भी उन्होंने बड़े अधिकारियों से कोई मदद मांगी थी? दिवंगत शहीद के मोबाइल को खंगालना जरूरी है।

आशीष ने मरने से पहले एक अपराधी को ढ़ेर किया था जबकि एक अपराधी जख्मी भी हुआ था। इस मुठभेड़ में पुलिस का एक जवान भी जख्मी है। इस मामले में आशीष के साथ गए पुलिस जवानों के बयान को भी सार्वजनिक करना आवश्यक है। दिवंगत शहीद के शव को पहले पसराहा थाना लाया गया। घटनास्थल से लाश पसराहा थाना कैसे लायी गयी,यह जानकारी भी अभीतक सार्वजनिक नहीं की गयी है। 13 अक्टूबर की रात में मृतक का शव उनके गाँव सहरसा जिले के सरोजा लाया गया। सरोजा गाँव सहित इलाके के कई गाँव के लोग सैंकड़ों की तायदाद में शव के इंतजार में थे। राज्य मुख्यालय के एडीजी एस. के.सिंघल ने घोषणा करी है की आशीष की शहादत को जाया नहीं होने दिया जाएगा। दियारा में लगातार सर्च ऑपरेशन और कॉम्बिंग ऑपरेशन होगा जिसमें दिनेश मुनि सहित सभी अपराधियों का खात्मा किया जाएगा। बीएमपी के डीजी गुप्तेश्वर पांडेय ने सभी पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी सहित कर्मचारियों से अपना एक दिन का वेतन शहीद आशीष के परिजनों को देने का मनुहार किया है। बहुत जिलों से इस मसले पर मुहरबन्दी की खबर है।14 अक्टूबर की सुबह में दिवंगत शहीद आशीष का दाह-संस्कार हुआ जिसमें 6 साल से कुछ ज्यादा उम्र के बड़े बेटे ने अपने पिता को मुखाग्नि दी। यह वह पल था जब सभी की आंखें नम और गीली थीं। इस दाह-संस्कार में राज्य के आपदा मंत्री दिनेश चंद्र यादव शामिल हुए लेकिन हद और बेशर्मी की इंतहा देखिए कि सहरसा जिला और कोसी प्रमंडल का मुख्यालय है लेकिन इस जांबाज शहीद की अंतिम विदाई में प्रमंडल और जिला के कोई वरीय पुलिस और प्रशासन के अधिकारी नहीं पहुंचे। सभी अधिकारी 13 की रात में उग्रतारा महोत्सव में नाच और गाने में इतने विभोर थे कि उस आनंद में एक शहीद की शहादत फीकी पड़ गयी और ठुमके और रसीले गीतों के घनघोर शोर में शहादत दब गई।आखिरकार दिवंगत शहीद आशीष कुमार सिंह पंचतंत्र में विलीन हो गए। लेकिन बड़े अधिकारियों के द्वारा शहीद के घोर अपमान की खबरें सोशल मीडिया की सुर्खियां बनी रहीं। इसका नतीजा यह निकला कि कल यानि 14 अक्टूबर की देर शाम सहरसा की महिला जिलाधिकारी मोहतरमा शैलजा शर्मा, डीडीसी राजेश कुमार सिंह सहित कई और पदाधिकारी दिवंगत के घर पहुंचे और शहीद के परिजनों को ढांढ़स बंधाया। सहरसा एसपी राकेश कुमार अभी अवकाश पर हैं। ये अधिकारीगण काफी देर तक वहां रुके। जाहिर तौर पर मृतक के परिजन को आगे कुछ लाख रुपये की आर्थिक मदद और परिवार के किसी सदस्य को योग्यतानुसार कोई सरकारी नौकरी मिलेगी। लेकिन आशीष इस दुनिया में फिर से लौटकर नहीं आएंगे।ये कैसा राजकीय सम्मान, शहीद के अंतिम संस्कार में पहुंचा सिर्फ एक डीएसपीइसी कड़ी में एक घटना का उल्लेख बेहद लाजिमी है। 8 दिसंबर 1998 को सहरसा के बनमा इटहरी प्रखंड के हराहरी नोनहा टोला के जफर बासा में टिके खूंखार अपराधी जाहिद कमांडो और उसके साथियों को रात्रि में सहरसा के जांबाज और दिलेर डीएसपी सतपाल सिंह ने घेर लिया था। लेकिन अपराधियों के पास अत्याधुनिक हथियार थे। सतपाल सिंह के साथ करीब 12 की संख्या में पुलिस जवान थे। जबरदस्त मुठभेड़ हो रही थी। सतपाल सिंह और जवानों की गोलियां कम पड़ने लगी थी। सतपाल सिंह ने तत्कालीन सहरसा एसपी अनिल किशोर यादव सहित मधेपुरा और खगड़िया एसपी को त्राहिमाम संदेश भेजकर मदद की गुहार लगाई लेकिन रातभर सतपाल सिंह तक कोई मदद नहीं पहुंची और नतीजा यह हुआ कि सारे जवान भाग खड़े हुए और सतपाल सिंह मारे गए।

आशीष कुमार सिंह की दिलेरी का एक नमूना यह भी है कि एक बार उनके पाँव में अपराधियों ने गोली मार दी थी। लेकिन क्षत्रिय खून का उबाल देखिए की वह अपराधियों से लोहा लेने में फिर से नहीं चूके और आखिरकार अपनी जान गंवा दी। हम राज्य मुख्यालय के बड़े अधिकारियों से आग्रह करते हैं कि शहीद आशीष के मोबाइल के सीडीआर की जांच भी जरूरी है, उसकी जांच कराई जाए। इससे भी कई राज खुलने की संभावना है। लेकिन जिस राज्य और देश में प्रजातंत्र के नाम पर मूर्खों का शासन हो, वहां ऐसे मसले पर कुछ दिनों तक बहस चलती है और फिर सभी कुछ खत्म। सिटी पोस्ट लाइव परिवार दिवंगत के प्रति गहरी संवेदना प्रकट करते हुए अमर श्रद्धांजलि अर्पित करता है। हम दिवंगत के परिवार के साथ सिद्दत से खड़े हैं।

पीटीएन मीडिया न्यूज ग्रुप के सीनियर एडिटर मुकेश कुमार सिंह का समाचार विश्लेषण………

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