कोल्हान विश्वविद्यालय को ट्राइबल सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनाने का प्रस्ताव
सिटी पोस्ट लाइव : कोल्हान विश्वविद्यालय को ट्राइबल सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा देने का प्रस्ताव तैयार कर लिया गया है। झारखंड के साथ कोल्हान में आदिवासी समुदाय की बड़ी आबादी को केंद्र में रखकर तैयार किए गए प्रस्ताव में कहा गया है कि 2009 को रांची यूनिवर्सिटी से अलग कर झारखंड सरकार ने कोल्हान विवि की स्थापना की थी। वर्तमान में केयू में 19 अंगीभूत कॉलेज सहित 45 संबद्ध कॉलेज हैं। यह पूर्ण रूप से आदिवासी बहुल इलाका है और यहां पढ़नेवाले अधिकतर विद्यार्थी आदिवासी हैं। ऐसे में केयू का ट्राइबल सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दावा सबसे मजबूत है।
प्रस्ताव से ओडिशा और पश्चिम बंगाल के आदिवासी छात्रों को भी फायदा
केंद्रीय यूनिवर्सिटी के पोषित इलाके का क्षेत्रफल दिखाते हुए कहा गया है कि प्रस्ताव से ओडिशा और पश्चिम बंगाल के आदिवासी छात्रों को भी फायदा होगा। 2011 की जनगणना का हवाला देते हुए जिले की आबादी में महिलाओं (खासकर आदिवासी) की संख्या और कम साक्षरता दर का भी उल्लेख किया गया है। हालांकि, ट्राइबल यूनिवर्सिटी में सभी जाति व समूह के विद्यार्थी शिक्षा ले सकेंंगे। प्रस्ताव को मंजूरी मिली तो यह झारखंड का पहला और देश का दूसरा ट्राइबल विश्वविद्यालय होगा। अभी देश में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक, मध्य प्रदेश के बाद देश का दूसरा केंद्रीय ट्राइबल विवि बनेगा।
योजना का मकसद :
- मुख्य रूप से भारत की जनजातीय आबादी को उच्च शिक्षा और अनुसंधान की सुविधाएं प्रदान करना।
- आदिवासी कला में शिक्षण और अनुसंधान सुविधाओं, परंपरा, संस्कृति, भाषा, औषधीय प्रणाली, सीमा शुल्क, वन आधारित आर्थिक गतिविधियों, वनस्पति, जीव और जनजातीय क्षेत्रों के प्राकृतिक संसाधनों का अध्ययन कर उसका प्रसार करना।
- विशेष रूप से सांस्कृतिक अध्ययन और आदिवासी समुदायों पर अनुसंधान करने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों और संगठनों के साथ सहयोग करना।
- आदिवासी केंद्रित विकास के मॉडल तैयार करने के लिए रिपोर्ट और मोनोग्राफ प्रकाशित और जनजातियों से संबंधित मुद्दों पर सम्मेलनों और सेमिनारों का आयोजन करने के लिए और विभिन्न क्षेत्रों में नीतिगत मामलों को जानकारी उपलब्ध कराना।
- सक्षम जनजातीय समुदायों के सदस्यों को बढ़ावा देने का प्रबंध विश्वविद्यालय के माध्यम से करने के साथ ही उन्हें उच्च शिक्षा तक पहुंचाना।
- अनुशासनात्मक अध्ययन और शोध में नए विचारों को बढ़ावा देने के लिए उपयुक्त कदम उठाने के साथ ही सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक रूप से पिछड़े अनुसूचित जनजातियों लिए अधिक अवसर उपलब्ध कराना।