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नियोजित शिक्षकों से डरी सरकार, शिक्षा मंत्री बोले- भगवान करे कि शिक्षकों के पक्ष में आये सुप्रीम कोर्ट का फैसला

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नियोजित शिक्षकों से डरी सरकार, शिक्षा मंत्री बोले- भगवान करे कि शिक्षकों के पक्ष में आये सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सिटी पोस्ट लाइव : एक तरफ बिहार सरकार नियोजित शिक्षकों को सामान कार्य के लिए सामान वेतन दिए जाने के विरोध में सुप्रीम कोर्ट चली गई. वहीं अब सुप्रीम कोर्ट का निर्णय  शिक्षकों के पक्ष में आने की संभावना को देखते हुए नया  राग अलापने लगी है.बिहार के शिक्षा मंत्री कृष्णनंदन वर्मा ने कहा है कि नियोजित शिक्षकों के मामले में सुप्रीम कोर्ट का जो भी निर्णय होगा, राज्य सरकार मानेगी. उन्होंने कहा कि हम प्रार्थना करेंगे कि समान काम समान वेतन मामले में सुप्रीम कोर्ट में शिक्षकों के पक्ष में फैसला आये. वर्मा ने कहा कि चाहे सुप्रीम कोर्ट जो फैसला दे, या फिर बिहार सरकार जो निर्णय करे, नियोजित शिक्षकों के वेतन में बढ़ोतरी तय है.

सासाराम में शिक्षकों के एक कार्यक्रम में पहुंचे शिक्षा मंत्री के इस बयान को सियासत से जोड़कर देखा जा रहा है. दरअसल, बिहार सरकार आगामी चुनाव को ध्यान में रखते हुए बिहार के लगभग साधे तीन लाख नियोजित शिस्खाकों और उनके परिवार को नाराज नहीं करना चाहती. गौरतलब है कि नियोजित शिक्षकों के मामले पर 25 दिनों की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने बीते 3 अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय मनोहर सप्रे एवं उदय उमेश ललित की खंडपीठ लगातार इस मामले की सुनवाई कर रही थी. अब बिहार के करीब चार लाख नियोजित शिक्षकों को कोर्ट के फैसले का बेसब्री से इंतजार है.

गौरतलब है कि कुछ खबरिया चैनलों के साथ अखबारों और न्यूज़ पोर्टल ने गलत खबर दे दी थी कि फैसला 10 अक्टूबर को आएगा. जबकि सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाने की तारीख तय नहीं किया है. सिटी पोस्ट लाइव ने भी आपने पाठकों को खबर दी थी कि कोर्ट ने फैसला सुनाने की तारीख अभी तय नहीं की है. माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रवक्ता अभिषेक कुमार ने भी सिटी पोस्ट लाइव की खबर पर मुहर लगाते हुए कहा कि 10 अक्टूबर को फैसला आने की खबर कहां से चली, यह उनकी समझ में भी नहीं आया. उन्होंने कहा कि इसमें फैसला आने में अभी कम से कम महीने-डेढ़ महीने का वक़्त तो .

गौरतलब है कि 3 अक्टूबर को हुई मामले की अंतिम सुनवाई में पहले सरकार के वकीलों ने रिज्वाइन्डर पेश किया था, जिसका शिक्षक संघ की ओर से वरिष्ठ वकील पूर्व सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार, प्राथमिक शिक्षक संघ की ओर वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल तथा विजय हंसरिया के द्वारा जोरदार काउंटर किया गया था. इस दौरान शिक्षकों का पक्ष रखते हुए वकीलों ने साक्ष्य सहित कोर्ट को बताया था कि नियोजित शिक्षकों के परिश्रम से बिहार की साक्षरता में सर्वोच्च वृद्धि हुई है. तत्कालीन राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल इस वजह से बिहार सरकार को पुरस्कृत कर चुकी हैं. इन शिक्षकों के परिश्रम के बल पर 6-14 आयु वर्ग के 98% बच्चों का नामांकन विद्यालय में सम्पन्न हो चुका है.

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के उक्त दो जजों की बेंच से मांग की थी कि बिहार सरकार की विशेष अनुमति याचिका खारिज करते हुए पटना हाई कोर्ट के आदेश को ही अक्षरश: लागू कराया जाए. साथ ही नियुक्ति तिथि से समान वेतन का निर्धारण किया जाए जबकि आर्थिक लाभ इस मामले में प्रथम याचिका के दायर वर्ष 2009 से दी जाए. सुप्रीम कोर्ट का फैसला शिक्षकों के पक्ष में आने की उम्मीद है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के दौरान ये कहकर कि शिक्षकों के वेतन में असमानता नहीं चलेगी, साफ़ कर चूका है ,उसका फैसला क्या होगा.

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