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पूर्वी सिंहभूम में आदिवासियों की आबादी घट रही, मंत्री की अध्यक्षता में बैठक

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पूर्वी सिंहभूम में आदिवासियों की आबादी घट रही, मंत्री की अध्यक्षता में बैठक

सिटी पोस्ट लाइव : पूर्वी सिंहभूम में आदिवासियों की आबादी घट रही है। उद्योगों का फैलता जाल, शहरीकरण, समुदाय में नशा व बढ़ती मृत्यु दर को आबादी घटने का कारण माना जा रहा है। 30 साल पहले टाटा स्टील में आदिवासी मजदूर करीब 29 हजार थे जो घटकर 1900 रह गए। उपायुक्त कार्यालय में शनिवार को ट्राइबल एडवाइजरी कमेटी की उप समिति की बैठक अध्यक्ष सह मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा की अध्यक्षता में आयोजित हुई। भाजपा विधायक लक्ष्मण टुडू ने कहा 108 गांवों की जमीन का अधिग्रहण किया गया। इन गांवों के आदिवासी कहां हैं? इसकी जानकारी नहीं है।

करीब चार घंटे तक चली मंत्री की अध्यक्षता में बैठक

बैठक में आदिवासी समाज के शिक्षाविद्, प्रबुद्ध व्यक्ति व समुदाय के लिए बीच काम करने वालों लोग शामिल हुए। उप समिति के अध्यक्ष सह झारखंड सरकार के मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा की अध्यक्षता में आयोजित बैठक करीब 3.45 घंटे तक चली। इस दौरान डीसी अमित कुमार ने कहा आदिवासी समुदाय की जनसंख्या में अपेक्षा के अनुरूप बढ़ोतरी नहीं हो पाई है। मृत्यु दर का अधिक होना एक बड़ा कारण है। स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्तापूर्ण सुविधा उपलब्ध कराना भी एक बड़ी चुनौती है। स्वास्थ्य में सुधार के लिए नशाबंदी सबसे आवश्यक है। ग्लोबलाइजेशन के बाद से जमशेदपुर शहरी क्षेत्र में आदिवासी समुदाय की जनसंख्या घटी है। उन्होंने कहा बैठक में आए सुझावों पर गंभीरतापूर्वक विचार किया जाएगा।

जिले में आदिवासी समुदाय की 28.5 फीसदी आबादी

बैठक में कहा गया कि देश में आदिवासी समुदाय की संख्या में 8.61 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है, लेकिन झारखंड में 12.04% की कमी आई है। 2011 की जनगणना के आधार पर झारखंड की जनसंख्या 3,29,88,134 है। इसमें 86.45 लाख आदिवासी हैं। पूर्वी सिंहभूम की कुल जनसंख्या 22.93 लाख है। इसमें आदिवासियों की आबादी 6.53 लाख है। यानी 28.5% रह गई, जो 2001 में 33.1 थी। करीब 5% की कमी अाई। जिले की कुल जनसंख्या 22.93 लाख है। इसमें 12 लाख शहरी आबादी है। औद्योगिकीकरण व शहरीकरण के कारण विस्थापन, और पलायन की समस्या आई और शहर में आदिवासियों की संख्या घटती चली गई। टाटा स्टील, टाटा मोटर्स अन्य कंपनियों में नियोजन के कारण बाहर से बड़ी संख्या में लोग आए और शहर में बसते चले गए। ग्रामीण क्षेत्र की करीब 11 लाख आबादी में लगभग 50% जनजातीय जनसंख्या है। जिले में आदिवासियों की आबादी करीब छह लाख है। इस दौरान प्रबुद्धजनों नेे सुझाव दिया कि जनगणना के समय स्थानीय लोगों को शामिल किया जाए। ऐसे लोगों को इस कार्य में नियोजित किया जाए जो स्थानीय भाषा के जानकार हों।

आदिवासी समाज के शिक्षाविदों का कहना था कि साकची, मानगो, कपाली, जुगसलाई घोड़ाचौक से नया बाजार आदिवासी समाज की जमीन पर बसा है। नेशनल हाईवे पर इंजीनियरिंग कॉलेज भी आदिवासियों की जमीन पर है। पोटका के डाटोबेड़ा पहाड़ी का लीज बंदोबस्ती में आदिवासियों के हितों को नजरअंदाज किया गया है। बैठक में विधायक मेनका सरदार, गायत्री कुजूर, लक्ष्मण टुडू, कुणाल षाड़ंगी, टीएसी सदस्य रतन तिर्की, डीडीसी विश्वनाथ महेश्वरी, एनईपी निदेशक रंजना मिश्रा, डीआरडीए की निदेशक उमा महतो, एसएमपी के अपर निदेशक सुनील कुमार, एडीसी सौरव कुमार सिन्हा,डीएलओ दिनेश कुमार रंजन, जिप अध्यक्ष बुलुरानी सिंह, जिप उपाध्यक्ष राजकुमार सिंह, अमिताभ घोष, डेमका सोय, भूमिज समाज के संजय सिंह सरदार उपस्थित थे।

भाजपा विधायक लक्ष्मण टुडू ने कहा टाटा स्टील व दूसरे औद्योगिक घरानों ने आदिवासियों को हित में काम किया होता तो ऐसी स्थिति नहीं आती है। टाटा स्टील की स्थापना के लिए 108 गांवों की जमीन का अधिग्रहण किया गया। जमीन चली गई और आदिवासी समुदाय के लोग कहां हैं? इसकी जानकारी न तो कंपनी प्रबंधन के पास है और न राज्य सरकार के पास। शहर के विकास के कारण भी आदिवासी चले गए। उप समिति के अध्यक्ष नीलकंठ सिंह मुंडा ने कहा जनजातीय समाज की जनसंख्या में कमी किस कारण से आई? इसका रिपोर्ट बनाकर सरकार को सौंपे। उन्होंने टाटा मोटर्स में जनजाति का प्रतिनिधित्व, आजादी के बाद आज तक आदिवासी समुदाय की जन्म और मृत्यु दर का तुलनात्मक अध्ययन करने का निर्देश दिया। उन्होंने जानना चाहा कि आजादी के समय शहर का क्षेत्रफल क्या था और अभी क्या है?

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