City Post Live
NEWS 24x7

UNICEF की नौकरी से POLITICAL CAREER शुरू करने तक का प्रशांत किशोर का सफरनामा

- Sponsored -

- Sponsored -

-sponsored-

UNICEF की नौकरी से POLITICAL CAREER शुरू करने तक का प्रशांत किशोर का सफरनामा

सिटी पोस्ट लाइव : आज से जेडीयू के साथ जुड़कर अपनी राजनीतिक पारी की शुरुवात करनेवाले प्रशांत का सफरनामा बेहद रोचक है. प्रशांत किशोर ने इंजीनियरिंग की पढाई करने के बाद यूनिसेफ में नौकरी की. यहाँ उन्होंने  ब्रांडिंग का जिम्मा संभाला.. साल 2011 में प्रशांत किशोर भारत लौटे तो उनकी पहचान गुजरात के चर्चित आयोजन ‘वाइब्रैंट गुजरात’ से हुई. वो न केवल इस आयोजन से जुड़े बल्कि इस आयोजन की ब्रांडिंग का जिम्मा भी खुद संभाला.. 2011 में इस सफल आयोजन के बाद प्रशांत किशोर वहां के तत्कालीन  सीएम नरेंद्र मोदी के काफी करीब आ गए. इसका फायदा उन्हें 2014 के चुनाव में मिला.2014 के लोकसभा चुनावों से पीके की पहचान एक चुनावी रणनीतिकार के रूप में बनी. इस चुनाव में उन्होंने बीजेपी के लिए काम किया. यहीं से चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के पॉलिटिकिल करियर का आगाज हो गया था. अमित शाह के साथ अनबन के बाद तीन साल पहले वो नीतीश कुमार से जुड़ गए. जेडीयू के लिये चुनावी प्रचार की रणनीति बनाने वाले प्रशांत किशोर ने आज जेडीयू का ही दामन थाम लिया है. भारत की राजनीति में चुनावी रणनीतिकार के नाम से मशहूर पीके उर्फ प्रशांत किशोर इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी नाम का संगठन चलाते. यह संगठन  चुनाव में पार्टियों की जीत सुनिश्चित करने के लिए काम करती है.41 साल के प्रशांत किशोर का जन्म 1977 में बिहार के बक्सर जिले में हुआ हालांकि वो मूल रूप से रोहतास जिला के रहने वाले हैं. उनके पिता डॉ. श्रीकांत पांडेय बक्सर के जानेमाने चिकित्सक हैं. मां इंदिरा पांडे हाउस वाइफ हैं. बक्सर के अहिरौली रोड में उनका मकान है.  प्रशांत किशोर दो भाई है जिनमें से बड़े भाई अजय किशोर का खुद का कारोबार है. प्रशांत किशोर की दो बहनें भी हैं. प्रशांत किशोर की शुरुआती पढ़ाई-लिखाई बिहार में ही हुई है. उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा बक्सर से ही पास की. इंटर पटना से पास करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए वो बाहर चले गए.

2014 के लोकसभा चुनाव में प्रचार के लिये ‘चाय पर चर्चा’ और ‘थ्री-डी नरेंद्र मोदी’ का कंसेप्ट देकर बीजेपी को अप्रत्याशित जीत दिलाने वाले प्रशांत किशोर अगर इसबार जेडीयू को फिर से मजबूती के साथ सत्ता में लाने में कामयाब रहते हैं तो उनका ग्राफ और बढ़ जाएगा. वैसे  साल 2015 में बिहार विधानसभा के चुनाव में प्रशांत किशोर ने एनडीए को छोड़ कर महागठबंधन के लिए काम किया और यहां भी वो जीत दिलाने में सफल रहे.लेकिन कांग्रेस को उत्तर-प्रदेश चुनाव में वो उबार नहीं पाए थे.अब देखना ये है कि प्रशांत किशोर जेडीयू को किस मुकाम तक पहुंचा पाते हैं. अब जेडीयू की सफलता असफलता पर ही उनका राजनीतिक करियर डिपेंड करेगा.

-sponsored-

- Sponsored -

-sponsored-

Comments are closed.