सिटी पोस्ट लाइव : एससी/ एसटी एक्ट के विरोध में आहूत भारत बंद के दौरान सवर्णों ने अनोखे अंदाज में विरोध प्रदर्शन किया. एसटी/एसी एक्ट के विरोध में और गरीब सवर्णों को आर्थिक आधार पर आरक्षण दिए जाने की मांग को लेकर सवर्णों ने कहैं रेल-सड़क मार्ग जाम किया तो कहीं खीर बनाते नजर आये. इतना ही नहीं कई जगहों पर सर मुंडाया तो कोई दंडवत होकर मार्च करता नजर आया . हर जगह प्रदर्शन का तरीका अलग अलग. कहीं प्रदर्शनकारी शांत थे तो कहीं बहुत हिंसक. दरभंगा और आरा में बंद समर्थक दलितों से भीड़ गए तो मुजफ्फरपुर में जाप के अध्यक्ष मधेपुरा सांसद के काफिले पर जानलेवा हमला कर दिया. हमला इतना भयानक कि पप्पू यादव बच्चों की तरह घंटो रोते बिलखते नजर आये.
दरभंगा के युवाओं ने अनोखा प्रदर्शन किया. अखिल भारतीय सवर्ण सेना के कार्यकर्ताओं ने दंड प्रणाम करते हुए सिनुआर से लहेरियासराय तक विरोध मार्च निकाला. इस मार्च में बड़ी संख्या में युवा शामिल हुए. उन्होंने गेरुआ वस्त्र पहन रखे थे और दंड प्रणाम करते हुए भूमि पर लोट कर आगे बढ़ रहे थे. इनमें से कई युवाओं ने मौन व्रत भी धारण कर रखा था.
वहीं बेगूसराय में बंद समर्थकों ने विरोध प्रदर्शन के दौरान सड़क पर इकट्ठा होकर चूल्हा जलाया और खीर बनाई. इस दौरान काफी संख्या में लोग जुटे और सबने हंगामे के बीच सबके लिए खीर बनाकर वितरित किया. पुलिस भी ये नजारा देख रही थी. नवादा में प्रदर्शनकारियों ने सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते हुए अपना सिर मुंडवा लिया. इस दौरान प्रदर्शनकारी बेदह आक्रोशित दिखे. उन्होंने केंद्र सरकार से लेकर बिहार सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की. आक्रोशित लोगों ने नवादा सांसद गिरिराज सिंह को भी आड़े हाथों लेते हुए उनके खिलाफ मुर्दाबाद के नारे लगाए. लोगों की मांग है कि इस एक्ट के संशोधन पर सरकार फिर से विचार करे.
एससी/एसटी एक्ट केंद्र सरकार के लिए गले का फांस बन गई है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पहले तो दलितों ने देशव्यापी आंदोलन किया और सरकार को झुकना पड़ा अब सवर्णों ने सरकार के खिलाफ आंदोलन का ऐलान कर दिया है. सवर्ण समुदाय सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करवाने को लेकर देशव्यापी आंदोलन कर रहे हैं. सवर्णों की मांग है कि एससी एसटी एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया था उसे लागू किया जाए. बीजेपी की समझ में अब ये नहीं आ रहा कि वह दलितों और सवर्णों दोनों को एकसाथ कैसे खुश रखे. सवर्णों की बात वह मान लेती है तो दलित वोट बैंक खिसक जाने का खतरा और अगर नहीं मानती है तो हमेशा से अपने समर्थक रहे सवर्णों को खो देने का डर .
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