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ईन शिक्षकों को मौत चाहिए, लेकिन न मौत नसीब है और ना ही जीने को रोटी

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सिटी पोस्ट लाइव : 333 दिन 1832 शिक्षक .इनकी कहानी भी अजब-गजब की है. ये बिहार सरकार के वैसे कॉन्ट्रैक्ट पर बहाल कंप्यूटर शिक्षक हैं, जिन्हें 5 साल दिन  रात खटाने के बाद बिहार सरकार ने बाहर का रास्ता दिखा दिया. अपनी नौकरी वापस पाने के लिए ये शिक्षक भूखे प्यासे पिछले 333 दिनों से पटना के गर्दनीबाग में धरने पर बैठे हैं.333 दिन आन्दोलन चलाने के बाद भी आजतक इनकी आवाज सरकार तक नहीं पहुंची है या फिर सरकार को इनकी परवाह  नहीं.

पटना के गर्दनीबाग में धरना पर बैठे ईन शिक्षकों की हालत अब बिगड़ने लगी है. आज एक शिक्षक की अचानक तबियत खराब हो गई.उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा. अभी पिछले 10 जुलाई को एक प्रदर्शनकारी शिक्षक की मौत हो भी हो चुकी है. लगभग एक साल से धरने पर बैठे ये शिक्षक अब मरने लगे हैं फिर भी कोई सुनवाई नहीं .इन शिक्षकों का कहना है कि  पांच साल काम करवाने के बाद सरकार ने इन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया. दोबारा नियुक्ति के लिए सीएम नीतीश कुमार से मिलकर ज्ञापन दे चुके हैं.शिक्षामंत्री से कईबार आश्वासन मिल चूका है लेकिन नतीजा वहीँ धाक के पात .

अब ये शिक्षक थक हारकर आंदोलन के दौरान इच्छा मृत्यु तक की गुहार लगा चुके हैं. उन्होनें राज्यपाल, मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री को पत्र भी लिखकर इच्छा मृत्यू की इच्छा जताई है, लेकिन ये सबकुछ सत्ता के शीर्ष पर बैठे प्रभुओं को एक ड्रामा ही लग रहा है. कभी ये धरनास्थल पर सब्जी बेच कर तो कभी बूट पॉलिश कर विरोध जाता रहे हैं लेकिन कोई फायदा नहीं. संघ के महासचिव विनोद कुमार सिन्हा का कहना है कि ईन शिक्षकों के पास कोई और रास्ता नहीं है.इस्लियेवो अपनी मानगो को लेकर धरना पर बैठे ही अपनी जान देने को विवश हैं.

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