सिटी पोस्ट लाइव : जार्ज फर्नांडिस से लेकर शरद यादव और बाद में शामिल हुए प्रशांत किशोर और आरसीपी सिंह की तरह ही उपेन्द्र कुशवाहा की JDU से विदाई होगी.JDU के विदा होने वाले नेता पहले नेतृत्व के निर्णयों पर प्रश्न खड़े करते हैं. कुछ दिन बहस चलती है. उसके बाद नेता अपनी इच्छा से विदा हो जाते हैं. इसी रीति से दल के संस्थापकों में रहे जार्ज फर्नांडिस से लेकर शरद यादव और बाद में शामिल हुए प्रशांत किशोर और आरसीपी सिंह विदा हुए.
JDU संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा लाइन में हैं. समता पार्टी के संस्थापक जार्ज फर्नांडिस और JDU के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव ये दोनों अब नहीं रहे.इनकी भी असहमति के कारण ही पार्टी से विदाई हुई थी.पार्टी का टिकट नहीं मिलने के कारण जार्ज 2009 में लोकसभा का चुनाव निर्दलीय लड़ गए थे. मुजफ्फरपुर में उनकी जमानत भी नहीं बच पाई थी. हालांकि, उसी साल वे संक्षिप्त अवधि के लिए जदयू के राज्यसभा सदस्य भी बने. उसके बाद जार्ज कभी जदयू की मुख्यधारा में शामिल नहीं हुए.
नेतृत्व से असहमति के कारण शरद यादव की राज्यसभा सदस्यता समाप्त करवा दी गई थी. वे JDU में रहते हुए नेतृत्व के निर्णयों को चुनौती दे रहे थे. वर्तमान अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह का भी बीच में नेतृत्व से मतभेद हुआ था. 2010 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने जदयू के विरोध में प्रचार किया था.वह डेढ़ साल बाद फिर पार्टी की मुख्यधारा में शामिल हुए. समता पार्टी और जदयू के नेताओं के अलगाव और पुनर्मिलन की लंबी सूची है. सांसद वशिष्ठ नारायण सिंह भी उसमें शामिल रहे हैं. उपेंद्र कुशवाहा दो बार अलग हुए। दो बार शामिल हुए. अब वे अलग होते हैं तो यह तीसरा अलगाव होगा.
उपेंद्र कुशवाहा के JDU में बने रहने की संभावना इसलिए अभी नहीं नजर आ रही है, क्योंकि कुछ महीने पहले पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह इसी तरह के परिदृश्य से दो-चार हुए थे. उन्होंने नीतीश को अपना नेता कहा था. राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह ऊर्फ ललन सिंह के नेतृत्व के प्रति अविश्वास प्रकट किया था. उपेंद्र भी ठीक इसी रास्ते पर चल रहे हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की टिप्पणी भी पहले जैसी है कि लोग आते हैं. कुछ बनते हैं और चले जाते हैं.
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