सिटी पोस्ट लाइव : उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) अब JDU के ज्यादा दिनों के मेहमान नहीं हैं.वो नीतीश कुमार के समर्थन के बहाने नीतीश कुमार पर निशाना साध रहे हैं.नीतीश कुमार भी उनसे छुटकारा पाना चाहते हैं.लेकिन कुशवाहा खुद पार्टी नहीं छोड़ेगें. वो चाहते हैं कि नीतीश कुमार उन्हें खुद पार्टी से निकालें ताकि वो कह सकें कि वो नीतीश कुमार के लिए और JDU को बचाने के लिए लड़ रहे थे. वह चाहेंगे कि पार्टी उनको बाहर का रास्ता दिखाए, जिससे वो साबित कर सकें कि हमने तो पार्टी को मजबूत करने की ही बात करते रहे. अपने नेता पर लगे आरोपों की मुखालफत करते रहे हैं. इसके बावजूद उन्हें पार्टी ने किनारे किया गया. इससे वह अपनी शहादत साबित कर सकेंगे.
नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के प्रति उपेंद्र कुशवाहा का एकतरफा प्रेम काम नहीं आ रहा. वह उनकी छीछालेदर करने वाले आरजेडी नेताओं की मुखालफत करते रहे हैं. वह तर्क देते रहे हैं कि हमारे नेता (नीतीश कुमार) के प्रति कोई अपशब्द कहेगा, उसे बर्दाश्त नहीं करेंगे. इसी क्रम में उन्होंने आरजेडी से भी पंगा ले लिया है. उन्होंने आरजेडी पर आरोप लगाया कि उसके शीर्ष नेतृत्व की आरजेडी से मिलीभगत है. कुशवाहा ने यही बात अपनी पार्टी के लिए कह कर खुद ही संकट मोल लिया है. दिल्ली में अपना हेल्थ चेकअप करा कर पटना पहुंचते ही उन्होंने कहा था कि जेडीयू के शीर्ष नेता बीजेपी के संपर्क में हैं. नीतीश की लगातार तरफदारी करने वाले कुशवाहा यहीं आकर उलझ गए. जेडीयू ने इसे पार्टी विरोधी गतिविधि मान ली है. इसे ही उनके खिलाफ कार्रवाई का पुख्ता आधार बनाने की तैयारी में है.
जेडीयू नेतृत्व का मानना है कि उपेंद्र कुशवाहा अब जितने दिन पार्टी में रहेंगे, वह नुकसान ही पहुंचाएंगे. जदयू के शीर्ष नेताओं के बीजेपी से संपर्क की कुशवाहा की बात को पार्टी इसी की कड़ी मान रही है. कुशवाहा ने आरजेडी से जेडीयू की डील की बाबत सवाल पूछकर भी पार्टी की खटिया खड़ी करने की कोशिश की है. उन्होंने गठबंधन धर्म की परवाह किए बगैर प्रमुख घटक दल आरजेडी पर सवाल उठा कर महागठबंधन में विभेद पैदा करने की कोशिश की है. जेडीयू इसी आधार पर उनसे सफाई मांगेगी. उन्हें शो-कॉज नोटिस भेजा जा सकता है.
उपेंद्र कुशवाहा को अपनी इस स्थिति का अंदाजा है, इसीलिए उन्होंने पहले से ही फुल प्रुफ प्लान तैयार कर लिया है. पार्टी और अपने नेता के हित के बारे में बोल कर कुशवाहा यह साबित करना चाहते हैं कि वह पार्टी के हितैषी हैं. ऐसे में अगर उन्हें पार्टी बाहर का रास्ता दिखाती है तो वे शहीद माने जाएंगे. जेडीयू में भी उनकी शहादत के प्रति सहानुभूति रखने वाले लोग मिल जाएंगे, जो आरजेडी के साथ पार्टी के जाने से असहज महसूस करते हैं. जेडीयू की नीतियों और मान्यताओं से परे जाकर आरजेडी के नेता जिस तरह की बयानबाजी करने में लगे हैं, उससे जेडीयू के नेता असहज हो गए हैं. हालांकि महागठबंधन धर्म की मजबूरी भी वे समझते हैं. यही वजह है कि आपत्तिजनक बयानों पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया देकर वे अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं.
नीतीश कुमार जिस तरह एक गठबंधन से दूसरे में पाला बदलते रहते हैं, उपेंद्र कुशवाहा भी उसी स्टाइल में अब तक चलते रहे हैं. कुशवाहा को सम्मानजनक मुकाम बीजेपी ने ही अब तक दिया है. नरेंद्र मोदी के पहले मंत्रिमंडल में महज तीन सांसदों का नेता होने के बावजूद उन्हें मंत्री बनाया गया था. जेडीयू में अपनी पार्टी के विलय के बावजूद नीतीश कुमार से उन्हें यह सम्मान नहीं मिला है. आरसीपी के किनारे होने के बाद कुशवाहा यह मानने लगे थे कि पार्टी में नीतीश के उत्तराधिकारी वही होंगे. लेकिन महागठबंधन से हाथ मिला कर 2025 का चुनाव तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ने की बात कह कर मुख्यमंत्री ने उनके उम्मीदों पर पानी फेर दिया.
नीतीश के लिए आरजेडी से मोर्चा खोलने के बाद मीडिया ने जब उन्हें डिप्टी सीएम का योग्य उम्मीदवार कहा तो कुशवाहा इतराने लगे. उनके इतराने का आलम यह था कि उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि वे राजनीति में भजन-कीर्तन के लिए नहीं आए हैं. इस कयासबाजी पर नीतीश कुमार ने यह कह कर पानी फेर दिया कि डिप्टी सीएम की बात बकवास है. डिप्टी सीएम तो छोड़िए, अब जेडीयू कोटे से कोई मंत्री भी नहीं बनेगा. तभी से उपेंद्र कुशवाहा के बगावती बयान आने लगे हैं.
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