गैर यादव ओबीसी भाजपा के साथ, क्या करेगें नीतीश कुमार?
भूमिहारों का रिवर्स स्विंग, मटियामेट हुई नीतीश की साख, अब नीतीश को कितना भाव देगें तेजस्वी ?
सिटी पोस्ट लाइव : कुढ़नी विधानसभा सीट पर हुए उप चुनाव का नतीजा उम्मीद के विपरीत आया है.यहाँ से एनडीए की जीत ने सीएम नीतीश कुमार को जोर का झटका धीरे से दिया है. इस रिजल्ट से जहां बीजेपी का मनोबल सातवें स्थान पर पहुंच गया है वहीं, जेडीयू को जबाब देते नहीं बन रहा. सवाल ये उठता है कि तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने अपनी जीती हुई कुढ़नी विधानसभा की सीट जेडीयू को क्यों दे दी.अनिल सहनी (Anil Sahni) अयोग्य ठहराए गए तो उन्होंने ये सीट नीतीश कुमार को दी.
नीतीश कुमार ने मनोज कुशवाहा (Manoj Kushwaha) को मैदान में उतार दिया. दरअसल तेजस्वी यादव ये देखना चाहते थे कि क्या वाकई 18 परसेंट वोट भी नीतीश के साथ है या पलटूराम की छवि ने वाकई उनकी राजनैतिक साख को खाक मिला दिया है. आज नतीजा सामने है. भाजपा के केदार गुप्ता जीत गए हैं. सबक तेजस्वी यादव को भी मिला है. मुसलमान-यादव राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के साथ है पर बिहार के तिकोण में किसी दो कोण के मिलने पर क्लीन स्विप का गणित बिगड़ गया है और शक नीतीश कुमार के वोट बैंक पर है. भारतीय जनता पार्टी के केदार गुप्ता की जीत महज 3000 वोटों से हुई है पर महागठबंधन को बड़ा सबक दे गई है.
कुढ़नी प्रचार की कमान खुद नीतीश कुमार ने संभाली थी. तेजस्वी यादव ने तो बीमार पिता का हवाला दिया और कई बार पुरानी गलतियों के लिए माफी भी मांगी. सीटिंग विधायक आरजेडी के अनिल सहनी हैं. फर्जी ट्रेवल बिल के चक्कर में विधायकी चली गई. लेकिन न सहानुभूति काम आई और न ही 25000 मल्लाहों का वोट बैंक. जाति के गणित से 2015 में अलग पड़े भाजपा को लालू यादव और नीतीश कुमार ने पटखनी दी थी लेकिन कुढ़नी के रिजल्ट से सारे सोशल इंजीनियरिंग को तार-तार कर दिया है. मनोज कुशवाहा यहां से 2010 में जीत चुके थे. 2015 में जब लालू-नीतीश साथ आए तब भी यहां से भाजपा के केदार गुप्ता ने मनोज कुशवाहा को मात दी थी. लेकिन महागठबंधन को 2017 में तोड़ने वाले नीतीश कुमार जब भाजपा के साथ वापस आए तो 2020 की सीट शेयरिंग में पेच फंसा. यहां से भाजपा जीत चुकी थी, लिहाजा सीट उसके पाले में गई. तब नीतीश कुमार ने मनोज कुशवाहा से मीनापुर से चुनाव लड़ने का ऑफर दिया जहां कुशवाहा वोट काफी है. लेकिन वो नहीं माने और चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया.
माना जाता है कि पिछड़ों में कुर्मी और कोइरी (लव-कुश) का वोट बैंक नीतीश कुमार को नहीं छोड़ सकता. कुर्मी चेतना रैली से बिहार के राजनीतिक क्षितिज पर छाने वाले नीतीश कुमार के पास क्या आज लव-कुश वोट भी इंटैक्ट नहीं है? मतलब क्या 8 से 10 परसेंट का कोर वोट बैंक भी छिटक गया है? ये सवाल कुढ़नी का परिणाम सामने आने के बाद उठ रहा है. मनोज कुशवाहा की दिलचस्पी इस सीट पर इसलिए रही है क्योंकि यहां सबसे ज्यादा 40 हजार वोटर कुशवाहा है. अगड़ी जातियों में भूमिहार अकेले लगभग 35 हजार है लेकिन बाकी जातियों को मिलाएं तो सवर्ण वोट बैंक लगभग 45 हजार है जिसे भाजपा का कोर वैट बैंक मान जाता है. कुशवाहा के बाद वैश्य वोट 30 हजार से ज्यादा है. चौथे नंबर पर 23 हजार यादव और फिर लगभग 20 हजार मुसलमान वोटर है.
एक बात तो साफ़ है कि वैश्य वोटर डटकर नरेंद्र मोदी के साथ खड़ा है. केदार गुप्ता खुद इसी जाति से आते हैं. सवर्णों में खास तौर से भूमिहारों की नाराजगी भाजपा से दूर हुई है. 12 अप्रैल को मुजफ्फरपुर के बोचहां विधानसभा क्षेत्र में एक कहानी लिखी गई थी. यहां हुए उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवार बेबी कुमारी के खिलाफ भूमिहारों ने मोर्चा संभाल लिया. अजीत कुमार और सुरेश शर्मा ने भूमिहार फ्रंट बनाकर भाजपा में उपेक्षा का आरोप लगाया और आरजेडी के अमर पासवान को समर्थन दे दिया. तब नीतीश कुमार और भाजपा साथ थी. लेकिन जेडीयू के नेताओं की दिलचस्पी इस चुनाव में ज्यादा थी. वो चाहते थे कि भाजपा हार जाए. दरअसल तब तक नौ अगस्त को रिश्ता खत्म होने की तैयारी शुरू हो चुकी थी. पार्टी खुश थी कि सवर्ण वोटर भाजपा से नाराज है. नतीजा चौंकाने वाला निकला. अमर पासवान जीत गए और अचानक तेजस्वी यादव भूमिहार समाज के सम्मेलनों में नजर आने लगे.
लेकिन कुढ़नी में बड़ा खेला हो गया. पहले तो मुकेश सहनी ने भूमिहार जाति के नीलाभ कुमार को टिकट देकर खेल किया. उन्हें लगा अगर मल्लाह और भूमिहार एक साथ वोट करेंगे तो चांस है. लेकिन नीतीश कुमार के पालाबदल के बाद भूमिहारों का मन परिवर्तन हो चुका था. फ्रंट ने अंदर ही अंदर केदार को समर्थन दे दिया. यही नहीं सन ऑफ मल्लाह भी एक्सपोज हो गए. मल्लाह वोटर मुजफ्फरपुर से भाजपा सांसद अजय निषाद के साथ चले गये..
नीतीश कुमार और उनके सिपहसालार भूमिहार नेता ललन सिंह का दावा रहा है कि सुशासन बाबू का वोट बैंक रेनबो वोट बैंक है. जब भी कोई ये सवाल उठाता कि 2014 में अलग लड़ने पर क्या हुआ तो जवाब मिलता तब भी वोट शेयर 18 परसेंट था. नीतीश कुमार की पार्टी का दावा रहा है कि वो जिसके साथ जाती है उसे बहुमत मिलता है और ऐसा सीएम की लोकप्रियता के कारण होता है. इस लिहाज से नीतीश कुमार कुढ़नी में बुरी तरह एक्सपोज हो गए. लालू से रिश्ता दोबारा साधने के बाद दो और उपचुनाव हुए लेकिन वहां जिसके पास जो सीट थी वही जीता. कुढ़नी में उलटा हो गया. तेजस्वी यादव के लिए भी बड़ा मैसेज है. लालू ने 2015 के विधानसभा चुनाव को मंडल बनाम कमंडल बना दिया था जिसके कारण शुरुआती दो दौर की वोटिंग में भाजपा पिछड़ गई थी. कुढ़नी के नतीजों से साफ है कि गैर यादव ओबीसी भाजपा के साथ टिका हुआ है.
नतीजा सामने आते ही उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि जनता हमारे हिसाब से नहीं चलेगी, हमें जनता के हिसाब से चलना पड़ेगा. उन्हें शायद ये संदेश मिला होगा कि कुशवाहा समुदाय ने भी 100 परसेंट सपोर्ट मनोज कुशवाहा को नहीं किया. इस लिहाज से इस एक सीट के नतीजे ने नीतीश कुमार के वोट बैंक की ताकत की पोल पट्टी खोल कर रख दी है. तेजस्वी यादव को अब आसानी होने वाली है. नीतीश वोट बैंक और सीएम फेस की लोकप्रियता के नाम पर भाजपा के साथ 50-50 सीट शेयरिंग कर ले रहे थे लेकिन अब तेजस्वी क्या ऐसा होने देंगे? अब तो गेम पलट जाएगा.
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