मेन और थर्ड फ्रंट की लड़ाई में विपक्षी एकता का बंटाधार.
विपक्ष दो ध्रुवों में बंटकर मुकाबला करेगा तो फायदे में विपक्ष नहीं बल्कि एनडीए रहेगा.
सिटी पोस्ट लाइव :बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्ष की एकता मजबूत करने के मिशन पर निकल चुके हैं.लेकिन सबके जेहन में एक ही सवाल है कि क्या कांग्रेस के नेत्रित्व में सारा विपक्ष एकजुट हो पायेगा या फिर थर्ड फ्रंट बनाकर विपक्ष मोदी की मुश्किल और भी आसान कर देगा?ये सवाल इसलिए भी लाजिमी हैं क्योंकि पिछले कई सालों के दौरान विपक्षी एकता की जितनी भी कोशिशें हुई, उनमें बीजद और वाईएसआर कांग्रेस ऐसे दल हैं जिन्हें विपक्ष अपने साथ लेने के लिए तैयार नहीं कर पाया है.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सक्रियता के बाद एक बार फिर नये सिरे से विपक्षी एकता की संभावनाओं को बल तो मिला है, लेकिन ऐसा लगता है कि विपक्षी एकता दो ध्रुवों की ओर बढ़ रही है. एक तरफ जहां तीसरे मोर्चे की संभावनाएं टटोली जा रही हैं, कांग्रेस को साथ लेकर यूपीए को मजबूत करने की कोशिशें होती भी दिख रही हैं.ऐसे में यक्ष प्रश्न यह है कि क्या आम चुनावों से पहले कांग्रेस सहित विपक्षी दलों का एक मजबूत गठबंधन बनेगा या फिर कांग्रेस के बगैर कोई तीसरा मोर्चा आकार लेगा. यदि ऐसा नहीं हुआ तो क्या विपक्ष दो ध्रुवों में बंटकर ही एनडीए का मुकाबला करेगा.ऐसा हुआ तो फायदे में विपक्ष नहीं बल्कि एनडीए रहेगा.
नीतीश कुमार की कांग्रेस एवं अन्य दलों के वरिष्ठ नेताओं के साथ आरंभ हो रही मुलाकातें महत्वपूर्ण हैं. कांग्रेस को साथ लेकर चलने की कोशिश दिख रही है.। उनकी कोशिश केंद्र से लड़ने के लिए विपक्षी दलों का महागठबंधन बनाने की है. यह एक राजनीतिक रूप से परिपक्व पहल है क्योंकि अभी भी कांग्रेस सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है. उसे साथ लिए बगैर विपक्ष एनडीए के खिलाफ कोई विकल्प खड़ा नहीं कर सकता है.
लेकिन ये भी सच है कि विपक्ष को एकजुट करने की कोशिशों में जुटे टीआरएस, तृणमूल कांग्रेस, आप आदि दल कांग्रेस को साथ लेकर चलने में सहज नहीं हैं. इन दलों की कोशिश एक गैर कांग्रेसी तीसरे विकल्प की है. तीनों दलों को कांग्रेस का साथ इसलिए भी ठीक नहीं लगता क्योंकि वे अपने राज्यों में कांग्रेस से लड़ते आ रहे हैं. सही मानें तो कांग्रेस भी टीआरएस, तृणमूल और आप को लेकर बहुत आश्वस्त नहीं है. कई अन्य दलों की स्थिति भी अभी स्पष्ट नहीं है. मौका आने पर सपा कांग्रेस की बजाय तीसरे मोर्चे में जाने को प्राथमिकता दे सकती है क्योंकि कांग्रेस के साथ वह पहले गठबंधन कर चुकी है, जो बेअसर रहा.
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