मिथिलांचल में सावन में मधुश्रावणी पूजा, काफी दिलचस्प है परम्परा.
दीपक की जलती बाती को पत्नी के घुटने पर रखता है पति, जितना बड़ा फफोला उतना ज्यादा प्यार.
सिटी पोस्ट लाइव : बिहार के मिथिलांचल में सावन कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि से शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि तक मधुश्रावणी पूजा चलती है. इस साल 18 जुलाई सोमवार से 31 जुलाई तक चलेगा. मिथिलांचल का नवविवाहित जोड़ा इस पूजा में भाग लेता है. मिथिला की लड़कियों को शादी के बाद पहले सावन पर इस पूजा को करना होता है.पूजा के लिए कई नियम है, इसमें बिना नमक के 13 दिनों तक प्रसाद लेकर माता पार्वती और शिव के साथ नागवंश की पूजा की जाती है.
प्रथम सोमवार 18 जुलाई को मोना पंचमी के साथ मनसा देवी का पूजन एवं स्त्रियों के लिए खासकर नवविवाहिताओं का विशेष पर्व मुधश्रावणी पूजा का भी शुभारंभ हुआमिथिला के लिए मधु श्रावणी पूजा काफी अहम होती है. शादी के पहले साल नव विवाहित जोड़ा के लिए यह पूजा खास होती है.। इसमें नव विवाहिता मायके में रहकर पूजा करती है, पूजा के दौरान होने वाला पूरा खर्च पति या विवाहिता के ससुराल वालों का होता है.पूजा में दक्षिण और पुरोहित का वस्त्र भी ससुराल के पैसे का होता है. हालांकि कुछ महिलाएं देश के अन्य प्रदेशों के साथ विदेशों में भी मधु श्रावणी की पूजा करती है. शादी के पहले साल बिहार से बाहर होने पर उसी स्थान से उपासना की जाती है.
मधु श्रावणी पूजा में कोई पुरुष पुरोहित नहीं होता है. घर की बुजुर्ग महिलाएं ही पुरोहित का काम करती हैं. वह 13 दिन पूजा कराती हैं. हर दिन अलग-अलग कथा कहानी होती है। पूजा का विधान भी हर दिन अलग-अलग होता है.महिला पुरोहितों को पुरुष पुरोहितों की तरह पूजा के समापन पर दक्षिणा और वस्त्र दिया जाता है. पूजा के पहले दिन मान के बड़े दो पत्तों पर मिट्टी या आटे का नाग नागिन बनाकर उस पर 13 दिनों तक पूजा होती है.
मिथिलांचल में यह काफी प्राचीन परंपरा है। मान्यता के मुताबिक पूजा के अंतिम यानि 13वें दिन सावन शुक्ल तृतीया तिथि को पति पत्नी की आंखों को पान के पत्ते से बंद कराता है और फिर दीपक की जलती हुई रुई या कपड़े की बाती से पत्नी के घुटनों को जलाता है.ऐसी मान्यता है कि छोटे से जलने में जितना बड़ा फफोला बनता है, पति-पत्नी में प्यार भी उतना ही गहरा होता है। मिथिलांचल में आज भी इस परंपरा का निर्वहन लोग करते हैं.नवविवाहिताएं मधु श्रावणी की पूर्व संध्या पर मंदिर के आस पास कुंआ पार्क और अन्य स्थानों से तरह तरह के पुष्प और पत्तों को तोड़कर लाती हैं. रात भर रखकर उसे बासी किया जाता है फिर दूसरे दिन भगवान को चढ़ाया जाता है.
मान्यता है कि बासी फूल और पत्ते चंद्रमा की किरण से ठंडे होते हैं जिसके चढ़ाने के बाद शिव और पार्वती के साथ नागवंश प्रसन्न होते हैं. माना जाता है कि 13 दिन बासी फूल चढ़ाने से जीवन की सभी व्याधि और विघ्न को भगवान शंकर ले लेते हैं. इसके बाद निरोगी काया के साथ सुहाग की उम्र होती है. उपासना के अंतिम दिन पति पत्नी को शादी की तरह ही सिंदूर लगाता है, जैसे शादी के दिन लगता है/ बस रंग का अंतर होता है, मधु श्रावणी के सिंदूर का रंग लाल होता है.
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