पलायन बनी नियति, पलायन करते लोगों की टीस भरी जिन्दगी पर, परदेश जाने की जल्दी देहरे भये परदेश,
कोसी इलाके से रोजाना 20 हजार से अधिक लोगों का हो रहा है पलायन, शर्म करो सरकार
सिटी पोस्ट लाइव : सरकार चाहे लाख दावे कर लें, लाख विकास के ढोल-ताशे पीट ले लेकिन कोसी क्षेत्र से गरीब तबके के लोगों का पलायन यहाँ की नियति बन चुकी है। घर का चूल्हा जलाना हो, अपनों के पेट की भूख मिटानी हो तो घर छोड़कर दूसरे प्रान्तों में जाकर रोजी-रोजकार के लिए जतन करने ही होंगे। कोसी कछार का यह इलाका भूख, बीमारी और बेकारी की नयी ईबारत लिख रहा है। केंद्र की पहले नरेगा और अब की मनरेगा योजना हो या फिर गरीबों के हितार्थ केंद्र अथवा राज्य की कोई भी सरकारी योजना हो उसका लाभ आजतक वाजिब लाभुकों तक नहीं पहुँच सका है। आखिर कमाएंगे नहीं तो खायेंगे क्या? बूढ़े माँ-बाप की जरूरतें और इलाज के साथ-साथ बीबी बच्चों की जिन्दगी का सवाल।पलायन इस इलाके के लोगों की जिन्दगी बन गयी है। दुर्गापूजा, दीवाली,छठ, ईद-बक़रीद का पर्व हो लेकिन मजबूर लोग पेट की खातिर और अपने घर चलाने की गरज से परदेश जाने को मजबूर हैं। तकरीबन 20 हजार लोगों का रोजाना इस इलाके से दूसरे प्रांत के लिए पलायन होता है। देखिए किस तरह से सहरसा स्टेशन पर पलायन का जन सैलाब उमड़ा है।हर किसी को जाना है लेकिन बस एक ट्रेन जनसेवा एक्सप्रेस है जो सहरसा से अमृतसर तक जाती है। इस ट्रेन को पलायन एक्सप्रेस भी कहते हैं। हद बात तो यह है की लोग इसी खास ट्रेन पर भेड़-बकरी की तरह जान जोखिम में डालकर अपने घर आते भी हैं और यहाँ से पलायन करके जाते भी हैं। वैसे कुछ गाड़ियां बढ़ी हैं लेकि वे सभी गाड़ियां बड़े तबके के लोगों के लिए हैं।
अगर सरकारी योजनाओं का लाभ गरीबों को मिलता और इस इलाके में रोजगार के समुचित अवसर मिलते तो इस इलाके का नजारा ही कुछ और होता। लेकिन आलम यह है की घर का चूल्हा कहीं खामोश ना हो जाए यानि पेट की आग बुझाने और घर के लोगों की जिन्दगी चल सके इसके लिए इस इलाके के लोग परदेश जाकर कमाने को विवश हैं। हम आपको सहरसा स्टेशन लेकर आये हैं। कोसी प्रमंडल के तीन जिले सहरसा, मधेपुरा और सुपौल इलाके के गरीब और कमजोर तबके के लोग इसी स्टेशन से परदेश का सफ़र तय करते हैं। देखिये यह नजारा है सहरसा रेलवे स्टेशन का। यहाँ पहले तो लोग टिकट लेने के लिए मारामारी करते हैं फिर ट्रेन में लटक-फटक कर यात्रा करते हैं। अपने गाँव को अलविदा कहकर ये लोग यहाँ पर यत्र-तत्र पड़े लोग देखिए किस तरह से एक तरफ जनसेवा एक्सप्रेस के आने का इन्तजार कर रहे हैं तो दूसरी तरफ ट्रेन पर चढ़ने के लिए मारामारी हो रही है।देखिये कोई कुछ खाकर अपने पेट की वक्ती भूख मिटा रहा है। पूछने पर ये लोग फट पड़ते हैं और अपनी मज़बूरी बताते हैं। कहते हैं की वे मज़बूरी में परदेश कमाने जा रहे हैं। अपने घर के इलाके में एक तो उन्हें काम नहीं मिलता है, अगर कभी-कभार काम मिला भी तो सही मजदूरी नहीं मिलती है। बड़े करमजले हैं ये गरीब लोग। घर आते हैं तो गाड़ी में खड़े होकर,लटक-झटक कर जान-जोखिम में डालकर और जाते भी हैं तो इसी तरह से। ट्रेन एक है और आने-जाने वाले बेसुमार। अगर इस जानलेवा सफर में कोई घायल हो गया या किसी की मौत हो गयी तो उसे देखने-सुनने वाला कोई नहीं है। हद बात यह है सात-आठ दिन स्टेशन पर गुजारने के बाद ट्रेन में जगह मिलती है। ट्रेन में जगह नहीं मिलने पर यात्री, किसी तरह से स्टेशन पर ही अपना समय गुजारते हैं।आखिर में हम तो यही कहेंगे की दुनिया में हम आये हैं तो जीना ही पड़ेगा, जीवन हैं अगर जहर तो उसे पीना ही पड़ेगा।आखिर कब इन गरीब-मजलूमों पर अल्लाह मेहरबान होगा। दोजख में इनकी बेईमान बनी जिन्दगी कब खुशियों से सराबोर हो पाएंगी? आखिर कब बहुरेंगे इनके दिन? सत्तासीनों के दम पर कुछ भी उम्मीदें पालना अब सरासर जुल्म होगा। कहते हैं की ऊपर वाला बड़ा रहम दिल होता है तो फिर वह भी क्यों इन तकलीफ के मारों के लिए फिक्रमंद नहीं है। राज्य और केंद्र की सरकारें,देखों इन किस्मत के मारों को और तरस खाओ इनपर। इन्हीं के वोटों से आपका सिंहासन और घर गुलजार है। उड़न खटोले पर भी आप इन्हीं के दम से सपाटे मारते हो। मर चुकी इंसानियत को जिंदा करो हुक्मरानों। अपने हृदय का कठोर द्वार खोलो सियासतदां। जीना यहां,मरना यहां…इसके सिवा जाना कहां…
सहरसा से संकेत सिंह की स्पेशल रिपोर्ट