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प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान को लग रहा है पलीता, यत्र-तत्र मल-मूत्र कर रहे हैं त्याग

मर्यादा और संस्कार इंसानों का छोड़ रहे हैं साथ

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नैतिक मूल्यों का हो रहा है क्षरण, मर्यादा और संस्कार, इंसानों के छोड़ रहे हैं साथ, स्वच्छ वृत्तियों के लिए उन्नत संस्कार की होती है जरूरत, प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान को लग रहा है पलीता, लोग यत्र-तत्र मल-मूत्र का कर रहे हैं त्याग, कैसे होगा स्वच्छ अपना राज्य और समूचा देश

सिटी पोस्ट लाइव : देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर मोदी ने भारत को स्वच्छ बनाने का ना केवल संकल्प लिया है बल्कि सभी राज्य सरकारों से इस मिशन को सफल बनाने के लिए मनुहार भी किये हैं। लेकिन बिहार एक ऐसा राज्य है,जहां नियम-कानून, संविधान और सरकारी निर्देश-अपेक्षा सभी कुछ ठेंगे पर है। लोग खुले में शौच और पेशाब ना करें इसके लिए ग्रामीण इलाके तक में शौचालय के निर्माण युद्ध स्तर पर हो रहे हैं लेकिन लोग अभी भी मानसिक रूप से खुद को तैयार नहीं कर पा रहे हैं।

ग्रामीण इलाके को तो छोड़िए शहरी इलाके में तथाकथित सभ्य और गरीब परिवार के लोग अभी भी अंधेरे में बाहर में ही शौच करना बेहतर समझ रहे हैं। पेसाब तो दिन हो या रात आप किसी भी इलाके से गुजर जाईये आपको बैठकर या फिर खड़े होकर पेसाब करते लोग आपको आसानी से मिल जाएंगे। हद तो यह है कि रिहायशी इलाके में भी लोग पेसाब को कुछ समय तक नहीं रोक पाते हैं और कहीं भी शुरू होकर त्राण पाते हैं। हम कुछ तस्वीर के जरिये सभ्य लोगों की लाचारी और बेचारगी नहीं बल्कि वे मानसिक रूप से कुंठित हैं, इसको बताने की कोशिश कर रहे हैं। आप तस्वीर के जरिये खुद देखिए की ये कहां मूत्र का परित्याग कर रहे हैं। क्या यह जायज है? क्या इसी से स्वच्छ भारत की परिकल्पना साकार होगी? क्या सारी जिम्मेवारी सरकार और सिस्टम की ही है? क्यों नहीं हम जागरूक हो पा रहे हैं? कुछ चीजें संस्कार में ढ़ालने की जरूरत है, जिससे हम बचकर निकलना चाहते हैं। अगर सही में हम स्वच्छ राज्य और स्वच्छ देश चाहते हैं, तो इसकी शुरुआत हमें खुद से और अपने घर से करनी होगी। आप भला तो जग भला।ठीकरा औरों के सर ना फोड़ें, जिम्मेवारी खुद से उठाएं और स्चच्छता का खुद से प्रहरी और झंड़ेदार बनें।

सहरसा से संकेत सिंह की रिपोर्ट

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