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मेडिकल विद्यार्थियों के लिए बहुत बड़ी चुनौती, सरकार स्वास्थ्य के क्षेत्र पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान दे : मोहम्मद इम्तियाज

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सिटी पोस्ट लाइव : क्रिब्स गु्रप ऑफ हॉस्पिटल के चेयरमैन व संस्थापक मोहम्मद इम्तियाज ने परिचर्चा में भाग लेते हुए कहा कि इस महामारी में मेडिकल के विद्यार्थियों के लिए बहुत बड़ी चुनौती पेश की है। कोर्स के शुरुआत में तो वो ऑनलाइन पढ़ाई कर लेंगे। लेकिन जैसे ही सेकेंड ईयर में जाएंगे उन्हें प्रैक्टिकल और लैब की जरूरत होगी। बिना प्रैक्टिकल और लैब के मेडिकल की पढ़ाई संभव नहीं है। ऐसे में कोई रास्ता निकालना होगा। दूसरा एक महत्वपूर्ण पहलू है कि जो शिक्षक ऑनलाइन पढ़ा रहे हैं उनका कांसेप्ट स्पष्ट होना चाहिए। इम्तियाज ने कहा कि क्लास रूम की पढ़ाई एक दोस्ताना माहौल बनाता है। क्लास रूम की पढ़ाई में कई चीजें विद्यार्थी देखते और सीखते हैं। लेकिन जब कुछ नहीं है तो ई-लर्निंग ही सहारा है। ई-लर्निंग अच्छा है, लेकिन उसके अनुसार संसाधन मुहैया कराया जाए। क्योंकि देश में ऐसे बहुत सारे परिवार ऐसे हैं जो दो वक्त का खाना भी सही नहीं जुटा पाते हैं। लेकिन मेरा यही संदेश है कि इच्छा शक्ति को बनाए रखें। सरकार स्वास्थ्य के क्षेत्र पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान दे। क्योंकि यह एक सेक्टर है जिसमें अभी तक प्रतिकूलता नहीं देखी गई है।

गुणवत्तापूर्ण कांटेंट बहुत जरूरी: प्रो. एनवीएम राव

बिट्स पिलानी के प्रो. एनवीएम राव ने परिचर्चा में कहा कि इस महामारी में ऑनलाइन का क्लास का एक अवसर मिला है। जबर्दस्ती ही सही, लेकिन ई-लर्निंग बढ़ा है। ऐसे में छात्र और शिक्ष के लिहाज से काफी बदलाव देखा जा रहा है।
ऑनलाइन क्लास में गुणवत्तापूर्ण कांटेंट बहुत जरूरी है। लेकिन साथ ही ई-लर्निंग के लिए इंटरनेट की पहुंच भी बहुत जरूरी है। विद्यार्थी परेशान हैं, क्योंकि ई-लर्निंग कांटेंट बहुत कम है। प्रो. राव ने डिजिटल डिवाइ पर कहा कि बहुत सारी कंपनियां ऑफर कर रहीं है। उन्होंने कहा कि ऑनलानइ लर्निंग पर विश्वविद्यालय भी काम कर रहा है। विद्यार्थियों को कांटेंट सिर्फ डाउनलोड करना है। वैसे इस क्षेत्र में अचानक निवेश नहीं हो सकता है और न ही एक दिन में बड़ा बदलाव संभव है। डिजिटल मार्केटिंग एक नया क्षेत्र उभर कर आया है। इसमें कई तरह के अवसर हैं। जैसे- कांटेंट राइटिंग आदि।

छात्र अपना लक्ष्य तय रखें: डाॅ. ए.आर. खान

सिविल सर्विस की तैयारी कराने के लिए मशहूर डॉ. ए.आर. खान ने परिचर्चा में कहा कि हमलोग अलग दौर से गुजर रहे हैं। पहले फिजिकल क्लास होते थे। अब तरीका बदल गया है। हर दौर के बाद एक चुनौती आती है। विद्यार्थी अपने गंतव्य को तय रखें और अपने जरूरत की जानकारी निकालें। अभी हमलोग एक नए माध्यम की ओर बढ़ रहे हैं। ऑनलाइन में पढ़ाई आसानी से पहुंच जाती है। लेकिन आपको यह पता लगाना होगा कि कौन-सा चाहिए। हमें सिक्के के दूसरे पहलू को देखने के लिए खुद को उस ओर ले जाना होगा। तब बहुत सारी संभावनाएं नजर आएंगी। अपनी समस्या का खुद समाधान निकालें।

अगले एक -दो वर्ष में चीजें ठीक हो जाएंगी: निशांत प्रकाश
नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के शिक्षक निशांत प्रकाश ने कहा कि वर्तमान दौर सिर्फ हमारे लिए ही नया नहीं है, बल्कि सरकार के लिए भी यह नई है। हम आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। पिछले वर्ष ऑनलाइन परीक्षा के कुछ प्रयास हुए थे। लेकिन इस पर 12वीं और 10 वीं की परीक्षा रद्द कर दी गई। हालांकि उम्मीद है कि एक-दो वर्ष में स्थितियां ठीक हो जाएंगी। आज सॉफ्ट स्कील का जमाना है। हालांकि ऑनलाइन की खामी है कि इसमें मूल्यांकन नहीं हो पाता है। बावजूद आज ऑनलाइन हकीकत है। अब सभी ने इसे स्वीकार भी कर लिया है। मेरा सरकार से अनुरोध है कि निजी क्षेत्र को इसमें समर्थन करें और नियम का आसान बना कर रखें। ऑनलाइन क्लास में बहुत ज्यादा संसाधन नहीं चाहिए। यह सस्ता भी है।

ई-लर्निंग के लिए ऑडियो पहुंच भी काफी हैः अभ्यानंद

बिहार के पूर्व पुलिस महानिदेशक और अभ्यानंद सुपर-30 के संस्थापक अभ्यानंद ने कहा कि ई-लर्निंग या ऑनलाइन पढ़ाई के लिए स्मार्ट फोन जरूरी नहीं है। यदि विद्यार्थियों तक सिर्फ ऑडियो पहुंच हो जाए तो भी पढ़ाई हो सकती है। ऑडियो कांफे्रंस से भी पढ़ाई हो सकती है। मैं तो लैंडलाइन पर ही भौतिकी पढ़ाता रहा हूं। वो सभी बच्चों तक डिजिटल पहुंच नहीं होने के सवाल पर यह बातें कहीं। अभ्यानंद रविवार को एडवांटेज केयर वर्चुअल डायलॉग सीरीज के नौवें एपिसोड में बोल रहे थे। परिचर्चा का विषय था, ‘पोस्ट-कोविड काल में कौशल विकास और ई-लर्निंग‘। पैनलिस्ट के रूप में अभ्यानंद ने कहा कि जरूरत है कि कान के माध्यम से पढ़ाई गई चीजों का विजुलाइजेशन हो। उन्होंने कहा कि महामारी विद्यार्थियों के लिए अच्छा है। उन्हें खाना खाना और पढ़ना है। अन्य कार्यों में समय नहीं बर्बाद हो रहा है। हां, कांटेंट सर्च करने में जरूर समय लगता है। ऐसे में शिक्षक को चाहिए कि वो बच्चों को कांटेंट का स्क्रीन शॉट या लिंक भेज दें। हालांकि आज के समय में कुछ भी फैमिलियर नहीं लग रहा है। सभी को परेशानी हो रही है। लेकिन इस दौर में विद्यार्थियों का समय बर्बाद नहीं हो रहा है।

हमारे यहां डिजिटल डिवाइड है: दीपाक्षी महेन्द्रू

शिक्षा जगत से जुड़ी दीपाक्षी महेंद्रू ने परिचर्चा में कहा कि ऑनलाइन का मतलब सिर्फ किताब का पीडीएफ अपलोड करना नहीं है। इसमें कई बिंदु हैं, जैसे-विद्यार्थी कितनी आसानी से नया तरीका तक पहुंच बनाता है, शिक्षक की क्षमता विकसित कर पा रहे हैं या नहीं। क्योंकि हमारे यहां 25 से लेकर 55 वर्ष तक के भी शिक्षक होंगे। फिर समाज में डिजिटल डिवाइड है। अर्थात बड़े संख्या के पास इंटरनेट या स्मार्ट फोन की पहुंच नहीं है। ऐसे में क्या हम रेडिया या टीवी आदि के माध्मम से पढ़ाई करा रहे हैं। दीपाक्षी ने कहा कि पढ़ाई में निरंतर बदलाव हो रहा है। विद्यार्थी जो चीजें सेकेंड ईयर में पढ़े थे, चैथे वर्ष में उनमें बदलाव आ जाता है। ऐसे में आपको लगातार पढ़ाई करती रहनी होगी। विद्यार्थियों को चाहिए कि कैसे वो अपने क्षेत्र में टॉप में बने रहें।

हई फाउंडेशन और एडवांटेज केयर ने शुरू किया अस्पताल: डाॅ. ए. ए. हई

प्रख्यात सर्जन डॉ. ए. ए. हई के नेतृत्व में संचालित हई फाउंडेशन और एडवांटेज केयर मिलकर अररिया में अस्पताल शुरू किया है। उन्होंने ने बताया कि अभी यह छह बेड का अस्पताल है। लेकिन डेढ़ माह में यह 30 बेड का कर दिया जाएगा। काम प्रगति पर है। अभी कोविड मरीजों का मुफ्त में इलाज होगा। बाद में सामान्य मरीजों को भी देखा जाएगा और भर्ती किया जाएगा।

कोविड की समस्या ने एडवांटेज केयर की स्थापना के लिए प्रेरित कियाः खुर्शीद अहमद

‘‘तपती धूप में लोग ऑक्सीजन के लिए भटक रहे थे। लोगों को एंबुलेंस नहीं मिल रहा था ताकि वो अपने परिजनों को अस्पताल ले जाएं। यदि अस्पताल पहुंच गए तो बेड नहीं मिला। ऐसे में लोगों आशा के साथ मुझे फोन करते थे। रमजान के दौरान मुझे हर रोज 30 से 40 कॉल आते थे। सभी एक ही गुजारिश होती थी ऑक्सीजन सिलेंडर दिलवा दो, एंबुलेंस का इंतजाम करवा दो या अस्पताल में बेड दिलवा दो। लोगों की इन्हीं समस्याओं ने मुझे कुछ करने के लिए प्रेरित किया और अंततः मैंने लोगों की सहायता के लिए एडवांटेज केयर की स्थापना की।‘‘
उन्होंने कम-से-कम तीन दर्जन लोगों की जान कोविड की दूसरी लहर के दौरान बचाई। खुर्शीद अहमद कहते हैं कि लोगों के दर्द से एडवांटेज केयर निकला। अल्लाह ने ये सब कराया। अल्लाह ने सलाहियत दी है तो आगे भी लोगों की सेवा करेंगे।
खुर्शीद अहमद ने बताया कि बिट्स पिलानी के साथ हमारा टाईअप हुआ है। जिसमें उनके कैम्पस से 15 बच्चे हर साल एडवांटेज केयर में रिसर्च और इंटर्नशीप करने के लिए बिहार आयेंगे।

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