सिटी पोस्ट लाइव : चाचा पशुपति कुमार पारस की बगावत और लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) में हुई टूट का चिराग पासवान (chirag paswan) के राजनीतिक भविष्य पर क्या असर पड़ेगा? क्या चिराग अपनी पार्टी बचा पायेगें? किसके साथ जायेगें एलजेपी के कोर वोटर? ये तमाम सवाल हैं, जो आज लोगों के जेहन में उठ रहे हैं. सिटी पोस्ट लाइव आपको इन तमाम सवालों का जबाब देने की कोशिश करेगा.
चचा की बगावत के बाद अलग-थलग पड़े चिराग पासवान ने जिस तरह से संघर्ष का माद्दा दिखाया है,इस संकट से उबरने में उनकी मदद कर सकता है. एलजेपी के विभाजन और इसके पीछे बिहार के सीएम नीतीश कुमार और बीजेपी की तथाकथित भूमिका की रिपोर्ट के आधार ये कहा जा सकता है कि चिराग ने जिस तरह का आत्म-विश्वास इस संकट की घड़ी में दिखाया है, उन्हें बहुत लाभ हो सकता है. चिराग ने बुधवार को कहा कि बागियों से निपटने के लिए वे लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हैं, इसके साथ ही उन्होंने पिता (रामविलास पासवान) द्वारा स्थापित की गई पार्टी पर अपना दावा जताया.
पासवान वोटबैंक, जिसे रामविलास पासवान ने केंद्रीय मंत्रिमंडल में रहते हुए तैयार किया गया, अभी भी बरकरार है और पूरी तरह से चिराग के साथ है. बिहार के वोटरों में 6 फीसदी के आसपास हिस्सा रखने वाले पासवान वोटर जानते हैं कि चिराग को पार्टी में अलग थलग किया जा रहा है लेकिन जहां तक प्रदर्शन की बात है तो वे रामविलास पासवान के स्वाभाविक उत्तराधिकारी होंगे जिन्होंने उन्हें पार्टी का नेतृत्व करने के लिए चुना था. सूत्र बताते हैं कि ‘पासवानों’ के साथ दलित भी चिराग के पक्ष में ‘बड़ा फैक्टर’ हैं.
कथित तौर पर नीतीश कुमार से मदद लेने के मामले में दलित, रामविलास पासवान के छोटे भाई पशुपति से नाराज बताए जा रहे हैं क्योंकि नीतीश के लगभग कभी भी पासवान से अच्छे रिश्ते नहीं रहे. एलजेपी में बगावत और इसका ब्यौरा आने के तुरंत बाद एक वीडियो फिर वायरल हो गया. 24 सितंबर के इस वीडियो में, नीतीश एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में रामविलास पासवान की हालत से अनभिज्ञ थे, जबकि ‘सीनियर पासवान’ उस समय अस्पताल में भर्ती थे. चिराग ने शिकायत भी की थी कि संवेदना जताने के लिए नीतीश ने पासवान परिवार से मुलाकात भी नहीं की. बीजेपी के नेता भी मानते हैं कि अहम पासवान वोटर, चाचा पशुपति के बजाय चिराग को ही तरजीह देंगे. बॉलीवुड एक्टर के रूप में नाकाम पारी खेल चुके जूनियर पासवान यानी चिराग बेहतर वक्ता हैं और उन्हें अपने चाचा के मुकाबले अधिक लोकप्रिय माना जाता है. दूसरी ओर पशुपति वर्षों तक ‘लोप्रोफाइल’ ही रहे हैं.
इसके साथ ही दलितों को शराब पर प्रतिबंध जैसी नीतीश कुमार की नीतियो से खफा माना जा रहा है. शराबबंदी नीति के उल्लंघन में पिछले कुछ वर्षों में करीब चार लाख लोगों को अरेस्ट किया गया है, इसमें से 70 फीसदी दलित समुदाय से है. ये अपने खिलाफ आबकारी कानून के तहत दर्ज मामलों के कानूनी केस के खर्च को लेकर परेशान हैं. वो संकट की घड़ी में चिराग के साथ खड़े नजर आयेगें. चिराग अगर वर्ष 2024 के आम चुनाव में खुद को नीतीश कुमार और बीजेपी, दोनों के विरोधी के रूप में पेश करने में सफल रहे तो उन्हें बहुत लाभ हो सकता है.
बीजेपी नेताओं ने चिराग की कल की टिप्पणी का जिक्र करते हुए इसकी व्याख्या पीएम मोदी के खिलाफ कमेंट के तौर पर की. अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में चिराग ने बगावत में बीजेपी की भूमिका को लेकर पूछे गए सवाल को ‘डक’ कर दिया और कहा कि यह पार्टी का अंदरूनी मामला है और वे इसके लिए दूसरों को टारगेट नहीं कर करेंगे. लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने बगावत के बाद पशपुति पारस को छह में से पांच सांसदों के नेता के रूप में मान्यता प्रदान कर दी. छठे सांसद चिराग पासवान हैं. बिहार में पिछले वर्ष चुनाव के पहले चिराग ने खुद को ‘वफादार हनुमान’ और पीएम मोदी को ‘राम’ बताया था. इसे लेकर पूछे गए एक सवाल का चिराग ने बखूबी जवाब दिया. जब चिराग से पूछा गया कि क्या ‘हनुमान’ को ‘राम’ की मदद की जरूरत है, तो पासवान ने कहा, ‘यदि हनुमान को राम की मदद लेनी पड़े तो वह हनुमान जी कितने अच्छे है और राम कितने अच्छे हैं.’
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