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कोरोना से जंग हारने वाले बाहुबली मोहम्मद शहाबुद्दीन का कैसा रहा राजनीतिक जीवन

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सिटी पोस्ट लाइव : राष्ट्रीय जनता दल के पूर्व सांसद और लालू प्रसाद के करीबी माने जाने वाले मोहम्मद शहाबुद्दीन अब इस दुनिया में नहीं रहे. बाहुबली शहाबुद्दीन 21 अप्रैल को कोरोना संक्रमित होने के बाद उन्हें दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल में भर्ती कराया गया था. उनकी तबियत ज्यादा ख़राब होने के कारण वे डॉक्टर की निगरानी में थे. जिसके बाद उनका आज निधन हो गया है. उनके निधन से सिवान में उनके चाहने वालों के बीच शोक की लहर दौर गई है. मोहम्मद शहाबुद्दीन का जन्म 10 मई 1967 को सीवान जिले के प्रतापपुर में हुआ था. उन्होंने अपनी शिक्षा दीक्षा बिहार से ही पूरी की थी. राजनीति में एमए और पीएचडी करने वाले शहाबुद्दीन का जीवन राजनीति और अपराध के बीच गुजरा और अंत ऐसा जिसके बारे में किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था.

बाहुबली शहाबुद्दीन के राजनीतिक जीवन के बारे में आपको बताएं तो  1980 में डीएवी कॉलेज से ही राजनीति में आ गए. इतना ही नहीं अपराध और राजनीति से इनका भाई-भाई वाला नाता रहा. 1986 के बाद से इन पर अनेक आपराधिक मामले दायर हुए। यह सीवान की सीट से चार बार संसद सदस्य एवं दो बार विधायक चुने गए। 2004 में इन्होंने जेल से चुनाव लड़ा और जीता। पुलिस द्वारा इनके विरुद्ध गवाह नहीं पेश कर पाने के कारण इन्हें बाइज़्ज़त बरी कर दिया गया। 2005 में शहाबुद्दीन को दिल्ली में गिरफ्तार कर लिया गया।  2009 में इन्हें चुनाव लड़ने से वंचित कर दिया गया। 11 सितंबर 2016 के दिन इन्हें जेल से बाहर निकाला गया। 30 सितम्बर 2016 को सर्वोच्च न्यायालय ने जमानत रद्द कर दी।

बता दें राजनीति भी उन्होंने कॉलेज के दिनों से शुरू कर दी थी. भारतीय कम्‍युनिस्ट पार्टी (भाकपा माले) तथा भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ लड़ाई के बाद से पहचाने जाने लगे. उनके खिलाफ पहली बार 1986 में हुसैनगंज थाने में आपराधिक केस दायर हुआ जिसके बाद उनके खिलाफ लगातार केस दर्ज होते चले गए. जिसके कारण वे देश की क्रिमिनल हिस्‍ट्रीशीटर की लिस्‍ट में शामिल हो गए.

1990 में मो. शहाबुद्दीन लालू प्रसाद की राष्‍ट्रीय जनता दल के युवा मोर्चा में शामिल हो गए. वे सीवान विधानसभा क्षेत्र से 1990 और 1995 में जीत हासिल कर राज्‍य विधानसभा के सदस्‍य बने. वे 1996 में जनता दल के टिकट पर सीवान लोकसभा सीट से चुनाव जीते जिसके बाद उन्‍हें एचडी देवगौड़ा सरकार में गृह मंत्रालय का राज्‍यमंत्री बनाया गया जिसमें राज्‍य की कानून व्‍यवस्‍था बनाए रखने की जिम्‍मेवारी दी गई थी. मीडिया द्वारा उनके आपराधिक रिकॉर्ड के लगातार दिखाए जाने के बाद उन्‍होंने अपने पद से इस्‍तीफा दे दिया.

बता दें आतंक का दूसरा नाम भी शहाबुद्दीन कहे जाते थे. 2000 के दशक तक सीवान जिले में शहाबुद्दीन एक समानांतर सरकार चला रहे थे. उनकी एक अपनी अदालत थी. जहां लोगों के फैसले हुआ करते थे. ताकत के नशे में चूर मोहम्मद शहाबुद्दीन इतना अभिमानी हो गए थे कि वह पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को कुछ नहीं समझते थे. आए दिन अधिकारियों से मारपीट करना उनका शगल बन गया था. यहां तक कि वह पुलिस वालों पर गोली चला देते थे. मार्च 2001 में जब पुलिस राजद के स्थानीय अध्यक्ष मनोज कुमार पप्पू के खिलाफ एक वारंट तामील करने पहुंची थी तो शहाबुद्दीन ने गिरफ्तारी करने आए अधिकारी संजीव कुमार को थप्पड़ मार दिया था. और उनके आदमियों ने पुलिस वालों की पिटाई की थी.

लेकिन कहते हैं न जब पाप का घड़ा भर जाता है तो एक दिन उसका फूटना तय है. ऐसा साल 2004 में हुई तेजाब कांड की वारदात के बाद हुआ. बता दें ये वो साल था जो अपराध की किताब का सबसे काला दिन माना जाता है. शहाबुद्दीन ने गिरीश और सतीश नाम के दो भाइयों को एसिड से नहला कर हत्या करवा दी. इतना ही नहीं इस घटना के एक मात्र गवाह की भी बीच सड़क गोली मारकर हत्या कर दी गई. लेकिन अपने बेटों को खोने वाले चंदा बाबू ने लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ी और शहाबुद्दीन को जेल भिजवाने में सफल रहे.

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