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माटी के लाल लालू यादव के राजनीतिक सफ़र की अद्भुत कहानी .

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सिटी पोस्ट लाइव :लंबे अर्से से बिहार की राजनीति से प्रत्यक्ष रूप से दूर आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाले के दुमका कोषागार से अवैध निकासी के मामले में जमानत मिल गई है.न्यायिक हिरासत के दौरान वो लगातार बीमार भी रहे, फिर भी सियासत में हमेशा छाये रहे.जेल और अस्पताल के चक्कर लगाते लगाते जीवन ख़त्म हो गया लेकिन लालू यादव का करिश्मा अभी भी कायम है. 11 जून 1948 को गोपालगंज के फुलवरिया गांव में एक किसान परिवार में जन्मे लालू प्रसाद यादव ने  जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति आंदोलन में एक बेहद सक्रिय कार्यकर्ता की भूमिका निभाकर अपनी एक अलग पहचान बनाई.

अपने इंदिरा विरोधी तेवर से लालू प्रसाद, पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के करीबी हो गए. लेकिन समय के साथ साथ उन्होंने सोनिया गांधी का दिल भी जीत लिया.वो सोनिया गांधी के करीबी और बहुत प्रिय नेता हो गए. उन्हें सोनिया गांधी ने रेल मंत्री बनाया. पहले कांग्रेस का प्रबल विरोध फिर कांग्रेस के सबसे प्रिय बन जाने की कहानी लालू यादव की राजनीतिक सुझबुझ का प्रमाण है.

लालू प्रसाद छपरा से चुनाव लड़े और  आपातकाल के कारण कांग्रेस के खिलाफ माहौल होने की वजह से जीत भी गए. बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिन्हा ने  लोकसभा चुनाव लड़ने में लालू प्रसाद की बहुत मदद की. लालू प्रसाद लोकसभा में सबसे युवा सदस्यों में से एक बन गए. सिर्फ दस साल के भीतर लालू प्रसाद यादव बिहार की राजनीति में एक ताकतवर नेता बन गए. पूर्व मुख्यमंत्री राम सुंदर दास को हरा कर वे सन् 1990 में बिहार के मुख्यमंत्री बन गए. इसके पहले 1989 में लालू यादव बिहार राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता बने. सन 1990 में 23 सितंबर को लाल कृष्ण आडवाणी की बिहार में रथयात्रा के दौरान लालू प्रसाद ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. सन 2004 से सन 2009 तक केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार में वे रेल मंत्री रहे.

जनता दल से पटरी नहीं बैठी तो 1997 में लालू प्रसाद यादव ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नाम से एक अलग राजनैतिक दल बना लिया. सात साल तक वे बिहार के मुख्यमंत्री रहे और ‘चारा घोटाला’ में गिरफ्तारी तय होने के बाद मुख्यमन्त्री पद से उन्होंने इस्तीफा दे दिया और अपनी पत्नी राबड़ी देवी को बिहार का मुख्यमंत्री बना दिया. लालू प्रसाद मुख्यमंत्री बनते ही अपनी छवि गढ़ने में तत्पर हो गए. शराब ठेकों पर छापा मरवा कर उनका लाइसेंस रद्द करना उनके लिए मामूली बात थी. बड़े अफसरों का क्लास लगाकर लोगों का दिल जीत लेते थे. 1996 के जनवरी महीने में पश्चिम सिंहभूम में एनिमल हसबैंडरी विभाग के दफ्तर पर एक छापा पड़ा. इसमें जब्त दस्तावेज़ सार्वजनिक हो गए. भूसा के बदले में बिहार सरकार के खज़ाने से अनाप-शनाप बिल पास कराया गया था. आरोप तो यह भी था कि गाय को जिस वाहन से एक जगह से दूसरी जगह ले जाया गया वह स्कूटर का नंबर था और उसे ट्रक के रूप में दिखा दिया गया था. इस आरोप में कितनी सच्चाई है, जांच करने वाले जानें. तो इसी कारण इसका नाम पड़ा चारा घोटाला.

लालू प्रसाद पर जानवरों के चारे के नाम पर चाईबासा ट्रेज़री से 37.70 करोड़ रुपया निकालने का आरोप लगा था. पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र और लालू प्रसाद यादव पर इस चारा घोटाला का आरोप था. करीब सत्रह साल तक यह ऐतिहासिक मुकदमा चलने के बाद चारा घोटाला मामले में रांची स्थित केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की अदालत ने 3 अक्टूबर 2013 को लालू प्रसाद के पांच साल की कारावास की सजा सुनाई. पच्चीस लाख रुपए का जुर्माना भी लगा. दो महीने बाद वे जमानत पर जेल से बाहर आ गए. चारा घोटाले के साथ ही और भी कई केस उन पर चलने लगे. ये सभी भ्रष्टाचार के मामले हैं. जमानत तो हुई लेकिन फिर किसी न किसी मामले में वे जेल जाते रहे.

चारा घोटाले में फंसने के बाद लालू प्रसाद लगातार केंद्रीय जांच एजेंसियों के राडार पर हैं. आरोप लगा कि एक गरीब परिवार के लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार के पास बहुत अधिक बेनामी संपत्ति है. यह आरोप कितना सच है, यह जांच एजेंसियां जानें. लेकिन इस मामले को तत्कालीन विपक्ष के नेता सुशील मोदी ने लगातार उठाया. उन्होंने कहा कि लालू प्रसाद यादव की गरीबी से उठ कर 500 करोड़ की प्रॉपर्टी का मालिक बनने तक की कहानी में इतने मसाले हैं कि इस पर एक फिल्म बन सकती है.

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