39 साल पहले 6 जून को ट्रेन हादसे से दहला था कोसी, दुनिया का दूसरा और भारत का पहला सबसे बड़े रेल हादसा, एक हजार से अधिक लोगों की गई थी जान, रूह को थर्राने वाली घटना की आज है 39 वीं बरसी, हादसे के बाद इलाके लोगों ने जमकर की थी लूटपाट.
सिटी पोस्ट लाइव, स्पेशल रिपोर्ट : 6 जून कोसी इलाके के लिए बेहद मनहूस और काला दिन है। आज से 39 वर्ष पूर्व पूर्वोत्तर रेल के सहरसा-मानसी रेलखंड के धमारा-बदला घाट स्टेशन के बीच रेलपुल संख्या 51 पर दुनिया का दूसरा और भारत का सबसे बड़ा रेल हादसा हुआ था। 6 जून 1981 की वह काली तारीख भारत के इतिहास में दर्ज हो गया है। 39 साल पहले हुए उस रेल हादसे को याद करने के बाद आज भी रूह कांप जाती है। यह हादसा देश का सबसे बड़ा और विश्व का दूसरा सबसे बड़ा रेल हादसा था, जिसमें एक हजार से ज्यादा लोग काल कलवित हो गए थे। उस समय छोटी लाईन पर ही ट्रेन चलती थी। मानसी से सहरसा की ओर आ रही यात्रियों से खचाखच भरी नौ डिब्बों की छोटी लाईन की इस ट्रेन में सभी यात्री अपने-अपने कामों में निर्भीक होकर व्यस्त और तल्लीन थे। इसी वक्त अचानक से ट्रेन जोर-जोर से हिलने लगी। यात्री जब तक कुछ समझ पाते तब तक ट्रेन पटरी और ट्रैक छोड़ते हुए उफनाती और फुंफकार भरती हुई बागमती नदी में समाकर विलीन हो गयी।
उस वक्त इकट्ठी की गई जानकारी के मुताबिक एक हजार से अधिक यात्रियों की मौत हुई थी। हद तो इस बात की है कि इलाके के लोग जो हादसे के बाद वहां पहुंचे, तो उन्होनें यात्रियों की जान बचाने की जगह जमकर लूटपाट की और लोगों को मरने छोड़ दिया। यही नहीं जब मौके पर प्रशासन और सेना के जवान को बुलाया गया, तो उन्होनें भी घायलों को नदी में डूबने देना ही मुनासिब समझा। सरकारी आंकड़े के मुताबिक करीब 550 लोगों की मौत हुई जो फर्जी आंकड़े हैं। 39 वर्ष हुए भारत के सबसे बड़े रेल दुर्घटना के कारणों पर यदि गौर करें तो इस रेल दुर्घटना के समय जिंदा बचे लोग कहते हैं कि छह जून 1981 शनिवार की देर शाम जब मानसी से सहरसा के लिए सवारी गाड़ी चली तो पुल नंबर 51 पर पहुंचने से पहले ही जोरदार आंधी और बारिश शुरू हो गई थी। बारिश की बूंदे खिड़की के अंदर आने लगी, तो अंदर बैठे यात्रियों ने ट्रेन की खिड़की को बंद कर दिया। खिड़की बन्द होने की वजह से हवा का एक ओर से दूसरी ओर जाने के सारे रास्ते बंद हो गये। तेज आंधी और तूफान के भारी दबाव के कारण ट्रेन की बोगी पलट कर नदी में जा गिरी। मानसी से सहरसा जा रही 416 डाउन ट्रेन की सात बोगियां नदी की गहराई में समा गयीं। जिस वक्त यह हादसा हुआ उस वक्त ट्रेन यात्रियों से खचाखच भरी थी। ट्रेन की स्थिति ऐसी थी कि ट्रेन की छत से लेकर ट्रेन के अंदर सीट से पायदान तक लोग भरे हुए थे। जानकार बताते हैं कि उस दिन जबरदस्त लगन(शादी का दिन) भी था और जिस वजह से अन्य दिनों के मुकाबले यात्रियों की भीड़ ज्यादा थी। मानसी से ट्रेन सही सलामत यात्रियों से खचाखच भरी आगे बढ़ रही थी। शाम तीन बजे के लगभग ट्रेन बदला घाट पहुंची। थोड़ी देर वहां रुकने के पश्चात ट्रेन धीरे-धीरे धमहरा घाट की ओर प्रस्थान की। ट्रेन कुछ ही दूरी तय की थी कि मौसम बेहद खराब होने लगा और उसके बाद तेज आंधी और तूफान शुरू हो गया। थोड़ी ही देर बाद बारिश ने भी तगड़ी रफ्तार पकड़ ली।यात्रियों ने फटाफट अपने बॉगी की खिड़की को तत्क्षण बंद कर लिए। तब तक ट्रेन पुल संख्या 51 पर पहुँच गयी। पुल पर चढ़ते ही ट्रेन एक बार जोर से हिली। ट्रेन के हिलते ही ट्रेन में बैठे यात्री डर से काँप उठे। कुछ अनहोनी होने के डर से ट्रेन के घुप्प अँधेरे में सभी ईश्वर को याद करने लगे। तभी एक जोरदार झटके और धमाके के साथ ट्रेन ट्रैक से उतर कर हवा में लहराते हुए धड़ाम से बागमती नदी में गिरकर समा गयी। इस चीत्कार भरे हादसे को ना तो कोसी इलाका कभी भुला सकता है और ना ही समूचा देश।
पीटीएन न्यूज मीडिया ग्रुप के सीनियर एडिटर मुकेश कुमार सिंह की “विशेष”रिपोर्ट
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