बिहार में बह रही है परिवर्तन की बयार, लेकिन अब भी है परिवर्तन के पुरोधा का इंतज़ार

City Post Live - Desk

सिटी पोस्ट लाइव : विश्व में प्रथम लोकतन्त्र के प्रयोग का साक्षी रहा बिहार आगामी महीनों में एक बार पुनः उसी लोकतंत्र के महापर्व (चुनाव) में सम्मिलित होने जा रहा है। 2020 का विधानसभा चुनाव कई मायनों में बिहार की जनता के लिए खास है , यह खास है उन युवाओं के लिए जो एक बेहतर भविष्य का सपना संजोये निरन्तर रोजगार के अवसरों को तालाश रहे हैं। यह चुनाव उन मजदूरों के लिए भी खास महत्व रखता है जो कोरोना के फलस्वरूप पलायन करके अपने घरों में लौटे हैं। कुल मिलाकर अगर मैं यह कहूँ की 2020 का चुनाव भविष्य के पन्नों में बिहार का स्थान निर्धारित करने वाला चुनाव है तो यह अतिशयोक्ति नही होगी। वर्तमान समय मे बिहार के राजनीतिक परिदृश्य की बात करे तो बिहार की जनता के पास मुख्यतः दो विकल्प हैं , एक तो सत्ताधारी गठबंधन के रूप में नीतीश कुमार और दूसरी ओर महागठबंधन के नेता के रूप में तेजस्वि यादव।

अगर नीतीश कुमार की बात करे और खासकर नीतीश कुमार के पिछले 15 वर्षों के कार्यकाल पर प्रकाश डालें तो हम पाएँगे की कई क्षेत्रों में नीतीश सरकार के द्वारा उल्लेखनीय कार्य किये गए है , जैसे बिजली, सड़क और लॉ एंड ऑर्डर । मुख्य रूप से ये तीन ही क्षेत्र ऐसे है जिसमे नीतीश सरकार की ऊर्जा कार्य के रूप में परिलक्षित होती है। बाकी नीतीश सरकार की अन्य महत्वाकांक्षी योजनाएं चाहे वह गली – नली हो या नल- जल योजना इन योजनाओं का मुल्यांकन आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर करना जल्दबाजी ही होगी क्योंकि भ्रष्टाचार और सरकारी धन के बंदरबांट का बिहार से पुराना संबंध रहा है और गाहे बगाहे इन योजनाओं में होने वाले भ्रष्टाचार की खबरें अख़बारों की सुर्खियां बनती रही हैं। स्वास्थ्य , शिक्षा और रोजगार जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर नीतीश सरकार का कार्य संतोषप्रद तो बिल्कुल नहीं कहा जा सकता है शायद यही कारण है कि इन विषयों पर विपक्ष की आवाज और जनता की राय एक सी होती प्रतीत होती है।

नीतीश कुमार को नजदीक से जानने वाले बताते है कि वे प्रशासन में ज्यादा हस्तक्षेप नहीं करते है जबतक की बहुत ज्यादा आवश्यक ना हो अर्थात जो जैसे चल रहा है चलने दो की नीति , कई मामलों में तो ये सरकार के लिए एक सकारात्मक प्रतिबिंब का निर्माण करती है तो वहीं दूसरी ओर इस नीति से जोखिम वाले निर्णय लेने से बचने की मंशा भी परिलक्षित होती है।  शायद यही कारण है कि बिहार की जनता को अब नीतीश कुमार में भविष्य का बिहार बनाने का विजन या दूरदर्शिता नही दिखता है। और यही कारण है कि इस बार बिहार में परिवर्त्तन की बयार बह रही है लेकिन इस बयार को जो तूफान का रूप दे दे , बिहार अपने उस परिवर्तन के पुरोधा को ढूंढ रहा है।

मैं यहाँ ढूंढ रहा हूँ शब्द इसलिए प्रयोग कर रहा हूँ क्योंकि नीतीश कुमार को सामने से टक्कर देने वाला जो मुख्य चेहरा है वह चेहरा है तेजस्वि यादव का और तेजस्वी यादव के साथ विडंबना यह है की पिछले 15 वर्षों के राजद के जंगलराज का भूत अब भी उनका पीछा छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। शायद यही कारण है कि बिहार की जनता आज भी उन्हें सत्ता की चाभी सौपने में ससंकित है।
इन दोनों प्रमुख चहरों के अलावा और भी छोटी बड़ी कई पार्टियां है कई चेहरे है , कुछ नए तो कुछ पुराने लेकिन वे बिहार को नेतृत्व प्रदान करने की क्षमता से कोशों दूर दिखाई देते हैं। ये नेता बिहार की राजनीति को प्रभावित तो कर सकते हैं लेकिन बिहार की जनता जिस परिवर्तन के पुरोधा को ढूंढ रही है वो पुरोधा बनने का क़ुव्वत इनमे दृष्टिगोचर नहीं होता है।

परिवर्तन से परे और आदर्शों का दामन छोड़ कर अगर हम बिहार की वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य की बात करें तो हम पाते हैं कि बिहार की राजनीति विगत कई वर्षों से त्रिकोणात्मक आकर लिए हुए है , अर्थात तीन प्रमुख राजनीतिक दल त्रिभुज के तीनों कोनों पर विराजमान हैं , और एक प्रमेय तो आप सबने पढ़ा ही होगा कि किसी भी त्रिभुज की दो भुजाएं अगर आपस में मिल जाती हैं तो वह तीसरी भुजा से बड़ी हो जाती है। मतलब स्पष्ट है कि नीतीश कुमार आगामी विधानसभा चुनावों में मुख्यमंत्री के सबसे प्रबल , शशक्त और मजबूत उम्मीदवार के रूप में अब भी अपनी उम्मीदवारी पेश कर रहे हैं। उनकी एक ईमानदार , और सुशासन देने वाले नेता की छवि उनके राज्य के अगले मुख्यमंत्री बनने का रास्ता और भी आसान बना देती है। इन सबके बावजूद अगर नीतीश कुमार बिहार के अगले मुख्यमंत्री बनते है तो यह जीत नीतीश कुमार की जीत या भाजपा की जीत नहीं कही जाएगी बल्कि यह जीत बिहार के राजनीतिक विकल्पहीनता की जीत होगी।

अनुराग मधुर की रिपोर्ट

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