सिटी पोस्ट लाइव, रांची: भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने कहा की मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कल राष्ट्रपति की अध्यक्षता में हुई बैठक में राष्ट्रीय शिक्षा नीति का विरोध कर के इस सरकार के आदिवासी मूलवासी विरोधी चेहरे को स्पष्ट दिखा दिया है। प्रतुल ने कहा की मुख्यमंत्री ने स्थानीय भाषा में प्रारंभिक पढ़ाई की नीति पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करते हुए क्षेत्रीय भाषाओं के शिक्षकों की अनुपलब्धता की तथ्यहीन बात कही है। प्रतुल ने कहा की मुख्यमंत्री को इस प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार करना चाहिए था क्योंकि इस से राज्य में नागपुरी, संताली, मुंडारी, कुँड़ुख़, खोरठा, हो आदि क्षेत्रीय और आदिवासी भाषाओं को प्रोत्साहन मिलता। इन भाषाओं का साहित्य भी समृद्घ है और पुस्तकें भी अच्छी संख्या में उपलब्ध है।प्रतुल ने कहा की वर्तमान में इस राज्य में क्षेत्रीय और आदिवासी भाषाओं में ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री लिया हुए 17000 से ज़्यादा युवा मौजूद हैं।इसके बावजूद हेमंत सोरेन इन भाषाओं में शिक्षकों की कमी की बात उठाकर हज़ारों आदिवासी मूलवासी युवाओं को नौकरी से वंचित करना चाहते है।
उन्होंने कहा कि भजपा सरकार स्थानीय और क्षेत्रीय भाषाओं के विकास केलिये कृत संकल्प है। अटल जी की सरकार ने संथाली भाषा को 8वीं अनुसूची में शामिल किया । रेलवे द्वारा संथाली भाषा मे उद्घोषणा भी भाजपा सरकार की ही देन है। प्रदेश की पूर्व भाजपा सरकार ने कुडुख,मुंडारी,हो को भी 8वी अनुसूची में शामिल करने की पहल की थी जिसे हेमंत सरकार को आगे बढ़ना चाहिये। प्रतुल ने कहा की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति झारखंड के जनजातीय समुदाय के हित में भी है क्योंकि अनेक बार इस समुदाय के लोग पढ़ाई को बीच में भी छोड़ देते हैं। अब वह जिस स्तर पर पढ़ाई छोड़ेंगे उसके हिसाब से उन्हें सर्टिफिकेट, डिप्लोमा, डिग्री दिया जाएगा और वह जब भी अपनी पढ़ाई से वापस जुड़ना चाहे तो समय की पाबंदी नही रहेगी। लेकिन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने यहां के जनजाति और मूलवासी समाज को वोट बैंक से ज्यादा कुछ नहीं समझा।
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