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मूडीज़ ने गिरा दी है भारत की रेटिंग, एक तरफ़ कुआँ और दूसरी तरफ़ खाई.

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सिटी पोस्ट लाइव :रेटिंग एजेंसी मूडीज़ ने भारत की रेटिंग गिरा दी है.मतलब बाज़ार में भारत की साख ख़राब हो गई है. अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में देश की रेटिंग गिर गई है. यानी क़र्ज़ मिलना मुश्किल होगा और जो क़र्ज़ पहले से ले रखे हैं उनकी वापसी का दबाव बढ़ेगा. मूडीज़ के रेटिंग गिराने का अर्थ यह है कि भारत सरकार विदेशी बाज़ारों या घरेलू बाज़ारों में क़र्ज़ उठाने के लिए जो बॉंड जारी करती है अब उन्हें कम भरोसेमंद माना जाएगा. ये रेटिंग पिछले बाईस सालों में सबसे निचले स्तर पर पहुँच गई है. इससे पहले 1998 में रेटिंग गिराई गई थी, और वो इसी स्तर पर पहुँची थी. जब भारत के परमाणु परीक्षणों के बाद अमेरिका ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए थे.

सबसे ख़तरनाक या चिंताजनक बात यह है कि मूडीज़ के इस डाउनग्रेड की वजह कोरोना से पैदा हुआ आर्थिक संकट क़तई नहीं है. उसका कहना है कि इस महामारी ने सिर्फ़ उन ख़तरों को बड़ा करके दिखा दिया है जो भारतीय अर्थव्यवस्था में पहले से ही पनप रहे थे. इन्हीं ख़तरों को देखकर इंडीज़ ने पिछले साल अपना आउटलुक बदला था.

पिछले साल नवंबर में भी आशंका थी की इंडीज़ रेटिंग गिरा सकता है, लेकिन तब उसने रेटिंग इससे एक पायदान ऊपर यानी Baa2 पर बरकरार रखी थी. हालाँकि उस वक़्त उसने भारत पर अपना नज़रिया बदल दिया था. यानी उसे समस्या की आशंका दिख रही थी. उसने भारत पर अपना आउटलुक बदलकर स्टेबल यानी स्थिर से निगेटिव यानी नकारात्मक कर दिया था.तब विश्लेषकों ने कहा था कि ज़्यादा फ़िक्र की बात नहीं है क्योंकि अर्थव्यवस्था रफ़्तार पकड़ेगी और मूडीज़ का मूड भी बिगड़ने के बजाय सुधर जाएगा. लेकिन अब ये उम्मीद तो बहुत दूर की कौड़ी साबित हो रही है. और फ़िक्र की बात ये है कि अब भी यानी रेटिंग गिराने के बाद भी मूडीज ने अपना आउटलुक निगेटिव ही रखा है. इसका सीधा मतलब यह है कि उसे यहाँ से हालात और ख़राब होने का डर है.

मूडीज़ के अनुसार सरकारों के ख़ज़ाने की हालत काफ़ी ख़स्ता हो रही है. केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारों का हाल ऐसा है. और भारत के वित्तीय क्षेत्र में लगातार स्ट्रेस यानी तनाव बढ़ रहा है. यहाँ तनाव का मतलब है क़र्ज़ दिया हुआ या लगाया हुआ पैसा वापस न आने या डूबने का ख़तरा.और आउटलुक या नज़रिया ख़राब होने का अर्थ है कि एजेंसी को भारत की अर्थव्यवस्था और वित्तीय ढाँचे में एक साथ जुड़े हुए कई खतरे दिख रहे हैं जिनके असर से भारत सरकार की माली हालत उससे भी कहीं और कमजोर हो सकती है.

दो साल पहले नवंबर 2017 में मूडीज़ ने भारत की क्रेडिट रेटिंग बढ़ाई थी. उस वक़्त उसे उम्मीद थी कि भारत में कुछ ज़रूरी आर्थिक सुधार लागू किए जाएँगे जिनसे देश की माली हालत धीरे धीरे मज़बूत होगी. लेकिन अब उसे शिकायत है कि उस वक़्त के बाद से सुधारों की रफ़्तार भी धीमी रही है और जो हुए भी उनका ख़ास असर नहीं दिखता. कोरोना संकट आने से पहले ही सरकारों का क़र्ज़ देश की जीडीपी का बहत्तर परसेंट था और अब बदली परिस्थिति में यानी कोरोना संकट के बाद जब सरकारों को ख़र्च के लिए और पैसे की ज़रूरत पड़ रही है तो ऐसा अनुमान है कि यह बोझ बढ़कर जीडीपी के 84 परसेंट तक जा सकता है.

इसी तरह रेटिंग गिरने के बाद जब कोई देश बॉंड जारी करता है या सीधे क़र्ज़ लेना चाहता है तो उसे ऊँचा ब्याज चुकाना पड़ता है क्योंकि उसको क़र्ज़ देना जोखिम का काम माना जाता है. देश की क्रेडिट रेटिेंग गिरने के साथ ही देश की सभी कंपनियों की रेटिंग की अधिकतम सीमा भी वही हो जाती है. किसी भी रेटिंग एजेंसी के हिसाब में किसी भी निजी या सरकारी कंपनी की रेटिंग उस देश की सॉवरेन रेटिंग से ऊपर नहीं हो सकती. यानी अब प्राइवेट कंपनियों के लिए भी क़र्ज़ उठाना मुश्किल और महँगा हो जाता है. जिनके बॉंड या डिबेंचर पहले से बाज़ार में हैं उनके भाव गिर जाते हैं और उनपर रक़म वापस करने का दबाव बढ़ने लगता है.अभी भारत की रेटिंग जहां पहुँची है वहाँ वो इन्वेस्टमेंट ग्रेड की आख़िरी पायदान पर है. यानी अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान अभी इसमें पैसा लगा सकते हैं. लेकिन अगर ये रेटिंग इससे नीचे खिसक गई तो दुनिया भर के बड़े वित्तीय संस्थानों में से बहुत सारे मजबूर हो जाएँगे कि वो भारत सरकार के या भारत की कंपनियों के जो भी बॉंड उनके पास हैं उनका पैसा तुरंत वापस माँगे या उन्हें औनेपौने भाव पर बाज़ार में बेच दें.

आगे बढ़ने के लिए सरकार के पास धन का अभाव है तो  रेटिंग की चिंता में सरकार द्वारा  खर्च रोकने की शुरुवात से  इकोनॉमी को पटरी पर लाना बहुत मुश्किल हो जाएगा. जाहिर है एक तरफ़ कुआँ और दूसरी तरफ़ खाई. लेकिन अनेक जानकार राय दे रहे हैं कि सरकार को कुछ समय तक रेटिंग की चिंता छोड़कर पूरा दम लगाकर इकोनॉमी में जान फूंकनी चाहिए और एक बार इकोनॉमी चल पड़ी तो रेटिंग सुधरने में भी बहुत वक़्त नहीं लगेगा.

मूडीज़ का भी अनुमान है कि इस वित्त वर्ष में क़रीब चार परसेंट की गिरावट के बाद भारत की अर्थव्यवस्था अगले साल तेज़ उछाल दिखाएगी. फिर भी उसे डर है कि आगे कई साल तकलीफ़ बनी रहेगी इसीलिए उसका नज़रिया कमजोर है. अब अगर सरकार कुछ ऐसा कर दे कि तस्वीर पलट जाए तो यह नज़रिया अपने आप ही बदल जाएगा.

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