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DM के बॉडीगार्ड से बिहार के डॉन बनने की सतीश पांडेय की कहानी जानिए

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सिटी पोस्ट लाइव : बिहार के गोपालगंज जिले के हथुआ थाने के रूपनचक गांव में एक सप्ताह पहले हुए तीहरे हत्याकांड के बाद एकबार फिर से सतीस पाण्डेय चर्चा में हैं.सबके जेहन में ये सवाल उठ रहा होगा कि आखिर ये सतीस पाण्डेय है कौन? सिटी पोस्ट लाइव आज आपको सतीस पाण्डेय के बारे में विस्तार से बताने जा रहा है. गोपालगंज के हथुआ थाने के नयागांव तुलसिया के रहनेवाले जेडीयू विधायक आमरेंद्र पांडेय उर्फ पप्पू पांडे का भाई सतीश पांडेय पिछले तीस साल से अपराध की दुनिया में सक्रिय है. बिहार सरकार के मंत्री  बृजबिहारी प्रसाद हत्याकांड के अलावा कई नरसंहार और हत्याओं को अंजाम देने के आरोपी हैं. चार साल से वो जमानत पर जेल से बाहर है. सतीश पांडेय ने अपने वर्चस्व की बदौलत गोपालगंज अपने छोटे भाई अमरेंद्र कुमार उर्फ पप्पू पांडेय को कोचायकोट से विधायक बनाया.जिला परिषद् के अध्यक्ष पद पर पत्नी को बिठाया फिर लन्दन से पढ़कर वापस लौटे बेटे मुकेश पाण्डेय को जिला परिषद् की अध्यक्ष की कुर्सी पर काबिज करवा दिया.

जिले में चाहे जो भी सरकारी गैर-सरकारी टेंडर हो सतीस पाण्डेय के मर्जी से ही काम होता है.लालू यादव के राज के जमाने से आजतक  कोई इस परिवार के सामने खड़े होने की हिम्मत नहीं जुटा पाया.कभी अंतरराज्‍यीय अपराधी गिरोह का सरगना रहे  दो लाख रुपए के ईनामी अपराधी सतीश पांडे के खिलाफ तकरीबन लगभग 100 मामले दर्ज हैं.

गोपालगंज के एसपी मनोज तिवारी के अनुसार  बिहार और उतर प्रदेश पुलिस के लिए लम्बे समय तक वांछित रहा सतीश पांडे गोपालगंज जिले के कुचायकोट थाना के एक गांव का निवासी है. सतीश पांडे की पत्नी उर्मिला पांडे गोपालगंज जिला परिषद की अध्यक्ष रह चुकी हैं. बेटा भी गोपालगंज जिला परिषद का अध्यक्ष है. भाई अमरेंद्र पांडे विधायक हैं. सतीश पांडे ने वर्ष 1990 और 1995 में सीवान जिले के बरौली विधानसभा क्षेत्र से चुनाव भी लड़ा था, लेकिन उसे जीत हासिल नहीं हो सकी थी. बचपन में पहलवानी का शौक रहने वाला सतीश पांडे कभी पहलवान के नाम से भी जाना जाता है. सतीश पांडेय बिहार पुलिस में भर्ती हुआ था और सीवान के जिलाधिकारी का अंगरक्षक भी था. सतीश पांडे ने सीवान के पूर्व सांसद स्वर्गीय जनार्दन तिवारी के भांजे और अपने परम मित्र अभय पांडे की हत्या के बाद अपराध की दुनिया में कदम रखा था.

90 के दशक में कुख्यात सतीश पांडेय और बाहुबली मोहम्मद शहाबुद्दीन के बीच रेलवे रैक पर अपना दबदबा कायम करने और लेवी वसूलने को लेकर कई बार हिंसक झड़पें हुई थीं. इस वर्चस्व की लड़ाई में कइयों की जानें भी गई. उस दौर में शहाबुद्दीन की तूती बोलती थी क्योंकि उस दौरान बिहार में लालू यादव की सरकार थी और मोहम्मद शहाबुद्दीन को लालू और उनके रसूख का खुलकर सहयोग मिलता था .लेकिन जैसे-जैसे समय बदलता गया और 2005 में बिहार में तख्तापलट हुआ शहाबुद्दीन कमजोर होते गए और फिर कुख्यात सतीश पांडेय का रेलवे के रैक पर पूरा साम्राज्य स्थापित हो गया.

पुलिस डायरी के अनुसार 2018 में लखनऊ में गिरफ्तार एक अपराधी पप्पू ने बताया कि माफिया सतीश पाण्डेय के पास छह एके-47 रायफल मौजूद हैं.लालू यादव का राज हो या फिर नीतीश कुमार का हमेशा कोई न कोई बाहुबली बिहार में राज करता रहा है.दरअसल, अपराधी कास्ट हीरो बन गए हैं.उन्हें जातीय गोलबंदी का सहारा मिल रहा है जिसकी वजह से राजनीतिक दल उन्हें भाव देने को मजबूर हैं.वैसे भी सत्ता के शीर्ष पपर बैठा प्रभु हमेशा मजबूत लोगों का ही साथ देता रहा है.जातीय समर्थन और राजनीतिक संरंक्षण की वजह से ऐसे अपराधी एक जमाने से राज करते आये हैं और आगे भी करते रहेगें.जब भी ये कानून के घेरे में  आते हैं, राजनीति इन्हें बचा लेती है और पहले और ज्यादा मजबूती के साथ ये मैदान में खड़े नजर आते हैं.

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