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चेतावनी : 50 साल बाद धरती नहीं बचेगी रहने लायक, उमस भरी गर्मी ले लेगी जान

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सिटी पोस्ट लाइव : अगले 50 साल में धरी रहने लायक नहीं रहेगी. ये किसी ज्योतिष की भविष्यवाणी नहीं है.ये चेतावनी जलवायु परिवर्तन पर शोध करने वाले वैज्ञानिकों ने दी है.उनके अनुसार  साल 2070 तक पृथ्वी का तापमान इतना बढ़ जाएगा कि यहां रहना लगभग मुमकिन नहीं होगा. लेकिन साइंस एडवांसेज़ जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन बताता है कई जगहों पर ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं जिनके बारे में अब तक चेतावनी दी जाती थी. इस अध्ययन के लेखक के अनुसार  वे ख़तरनाक स्थितियां जिनमें गर्मी और उमस एक साथ सामने आती हैं, वे पूरी दुनिया में होती दिख रही हैं.हालांकि, ये स्थितियां बस कुछ घंटों के लिए रहती हैं लेकिन इनके होने की संख्या और गंभीरता बढ़ती जा रही है.

इन शोधार्थियों ने साल 1980 से 2019 के बीच मौसम की जानकारी देने वाले 7877 अलग-अलग स्टेशनों के प्रति घंटे के डेटा का विश्लेषण किया है.इस विश्लेषण में ये सामने आया है कि कुछ उप-उष्णकटिबंधीय तटीय इलाकों में बेहद गर्मी और उमस मिश्रित मौसम की आवृतियां दुगनी हो गई हैं.इस तरह की हर एक घटना में गर्मी और उमस मिली होती है जो कि एक लंबे समय तक ख़तरनाक साबित हो सकती है.

इस तरह की घटनाएं लगातार भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, उत्तरी-पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया, लाल सागर के तटीय क्षेत्र और केलिफॉर्निया की खाड़ी में नज़र आ रही हैं.इनमें से सबसे ज़्यादा ख़तरनाक आंकड़े सऊदी अरब के धहरान/दमान, क़तर के दोहा, संयुक्त अरब अमीरात के रस अल खमैया शहरों में 14 बार दर्ज किए गए. इन शहरों बीस लाख से ज़्यादा लोग रहे हैं. दक्षिण पूर्वी एशिया, दक्षिणी चीन, उप – उष्णकटिबंधीय अफ्रीका और केरिबियाई क्षेत्र भी इससे प्रभावित हुआ था.

अमरीका के दक्षिण पूर्वी में काफ़ी गंभीर स्थितियां देखी गईं. और ये स्थितियां मुख्यत: गल्फ़ कोस्ट के पास पूर्वी टेक्सस, लुइसियाना, मिसीसिपी, अलाबामा और फ़्लोरिडा पेनहैंडल में देखी गई हैं. न्यू ओरेलॉन्स और बिलोक्सी शहर भी बुरी तरह प्रभावित हुए हैं.दुनिया भर में ज़्यादातर मौसम विज्ञान केंद्र दो थर्मामीटरों से तापमान का आकलन करते हैं.पहला ड्राई बल्ब उपकरण हवा का तापमान हासिल करता है.

ये वो आंकड़ा है जो कि आप अपने फोन या टीवी पर अपने शहर के तापमान के रूप में देखते हैं.एक अन्य उपकरण वेट बल्ब थर्मामीटर होता है. ये उपकरण हवा में उमस को रिकॉर्ड करता है.इसमें एक थर्मामीटर को कपड़े में लपेट कर तापमान लिया जाता है. सामान्यत: ये तापमान खुली हवा के तापमान से कम होता है.इंसानों के लिए बहुत तेज उमस भरी गर्मी जानलेवा साबित हो सकती है. इसी वजह से वेट बल्ब की रीडिंग जिसे ‘फील्स लाइक’ कहा जाता है, उसकी रीडिंग बहुत अहम होती है.

हमारे शरीर का सामान्य तापमान 37 डिग्री सेल्सियस होता है. और हमारे शरीर का तापमान सामान्यत: 35 डिग्री सेल्सियस होता है. इस अलग अलग तापमान हमें पसीना निकालकर हमारे शरीर को ठंडा रखने में मदद करता है.शरीर से पसीना निकलकर भाप बनते हुए अपने साथ गर्मी भी लेकर उड़ जाता है.ये प्रक्रिया रेगिस्तानों में बिलकुल ठीक ढंग से काम करती है. लेकिन उमस वाली जगहों पर ये प्रक्रिया ठीक ढंग से काम नहीं करती है. क्योंकि हवा में पहले से इतनी नमी होती है कि वह इस प्रक्रिया में पसीने को भाप के रूप में उठा नहीं पाती है.

ऐसे में अगर उमस बढ़ती है और वेट बल्ब तापमान को बढ़ाकर 35 डिग्री सेल्सियस या इससे ऊपर तक ले आती है तो पसीने के भाप बनने की प्रक्रिया धीमी होगी जिससे हमारी गर्मी झेलने की क्षमता पर असर पड़ेगा.कुछ गंभीर मामलों में ये भी हो सकता है कि ये प्रक्रिया पूरी तरह रुक जाए. ऐसे में किसी व्यक्ति को एक एयर-कंडीशंड कमरे में जाना पड़ेगा क्योंकि शरीर का अंदरूनी तापमान ये गर्मी बर्दाश्त करने की सीमा के पार चला जाएगा जिसके बाद शारीरिक अंग काम करना बंद कर देंगे.और ऐसी स्थिति में बेहद स्वस्थ व्यक्ति भी दम तोड़ देगा.

अब तक ये माना जाता था कि पृथ्वी पर वेट बल्ब तापमान दुर्लभ स्थितियों में 31 डिग्री सेल्सियस के पार जाता है.लेकिन 2015 में ईरान के शहर बंदार महाशहर में मौसम विज्ञानियों ने वेट बल्ब का तामपान 35 डिग्री सेल्सियस के क़रीब जाता हुआ देखा.उस समय हवा का तामपान 43 डिग्री सेल्सियस था. लेकिन इस नए अध्ययन के बाद पता चला है कि फ़ारस की खाड़ी के शहरों में एक से दो घंटे के समय में वेट बल्ब टेंपरेचर एक दर्जन से ज़्यादा बार 35 डिग्री सेल्सियस तक गया.

कोलंबिया यूनिवर्सिटी में लेमॉन्ट डोहर्टी अर्थ ऑब्जर्वेटरी में शोधार्थी और इस अध्ययन में प्रमुख लेखक कॉलिन रेमंड कहते हैं, “फारस की खाड़ी में जो उमस भरी गर्मी वो गर्मी की जगह मुख्यत: नमी की वजह से है. लेकिन ऐसी स्थितियां पैदा होने के लिए तापमान को भी औसत से ज़्यादा होना चाहिए. हम जिन आंकड़ों का अध्ययन कर रहे हैं वो अभी भी काफ़ी दुर्लभ हैं. लेकिन 2000 के बाद काफ़ी बार सामने आ चुके हैं.”

अब तक जलवायु परिवर्तन पर जितने भी अध्ययन हुए हैं, वे सब इस तरह की गंभीर घटनाओं को दर्ज करने में असफल रहे हैं. ये अध्ययन इस बारे में बताता है क्योंकि शोधार्थी सामान्यत: बड़े क्षेत्र और लंबे अंतराल में गर्मी और उमस के औसत को देखते हैं. लेकिन कॉलिन रेमंड और उनके साथियों ने पूरी दुनिया के मौसम विज्ञान केंद्रों पर आने वाले प्रति घंटे के हिसाब से आ रहे डेटा पर नज़र रखी. इससे उन्हें उन घटनाओं के बारे में पता चल पाया जिसकी वजह से काफ़ी कम समय में काफ़ी छोटे जगह पर असर दिख रहा है.

शोध के अनुसार किसी मेट्रोपॉलिटन क्षेत्र के स्तर पर 35 डिग्री सेल्सियस वेट बल्ब तापमान 2100 तक एक सामान्य बात होगी. ऐसी घटनाएं ज़्यादातर तटीय क्षेत्रों, खाड़ियों और जलसंधियों में हो रही हैं जहां पर भाप बनकर उड़ रहा समुद्री जल गर्म हवा में मिलने की संभावना पैदा करता है.अध्ययन बताते हैं कि ज़्यादातर भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश में 2100 तक ऐसा तापमान बना रहेगा जिसमें ज़िंदा रहा जा सकता है. ये समुद्री जलस्तर के अत्यधिक तापमान और महाद्विपीय गर्मी का संगम है जो कि उमस भरी गर्मी पैदा कर सकता है.अगर ऐसी स्थिति पैदा होती है तो लोगों को एयर-कंडीशन में रहने और  घर के बाहर रहकर काम नहीं करना होगा. अध्ययन उन आर्थिक रूप से कमजोर इलाकों के बारे में चिंता व्यक्त करता है जहां पर तापमान तेजी से बढ़ रहा है. क्योंकि ये लोग गर्मी से बचाव करने में असमर्थता महसूस करेंगे.

ग़रीब देशों में जिन लोगों पर ख़तरा ज़्यादा मंडरा रहा है, वे बिजली भी इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं, एयर कंडीशन तो भूल जाइए. ज़्यादातर लोग अपने जीविकापार्जन के लिए खेती किसानी पर निर्भर हैं. ये तथ्य कुछ क्षेत्रों को रहने के लिए अयोग्य बना देंगे.अगर कार्बन उत्सर्जन में कमी नहीं लाई गई तो इस तरह की घटनाओं का बढ़ना लाज़मी है.ये आकलन बताते हैं कि पृथ्वी के कुछ क्षेत्रों में जल्द ही ऐसी गर्मी हो जाएगी कि वहां रहना मुमकिन नहीं होगा. पहले ये माना जाता था कि हमारे पास काफ़ी सेफ़्टी ऑफ़ मार्जिन यानि जोख़िम काफ़ी दूर है.

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