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बिहार में चुनावी खेल शुरू ,जोड़तोड़-दल-बदल की चल रही पूरजोर तैयारी

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लेकिन सबसे बड़ा सवाल –क्या बीजेपी और जेडीयू के लिए आगामी लोक सभा का चुनाव पिछले चुनाव की तरह आसान होगा.जबाब है बिलकुल नहीं.इसबार बिहार के राजनीतिक समीकरण बदले हुए हैं.पिछले चुनाव में जब नीतीश कुमार लालू यादव के साथ थे लोगों ने केंद्र के लिए बीजेपी को और बिहार के लिए नीतीश कुमार को चूना था .लेकिन इसबार क्या होगा .पेश है कनक  कुमारकी  विशेष  रिपोर्ट

सिटीपोस्टलाईव:मोदी सरकार अपने पांच साल के कार्यकाल में से चार साल पूरा कर चुकी है. ये पांचवा साल चुनावी साल है.अब सरकारी कामकाज कम,राजनीतिक काम ज्यादा होगा.अब सभी पार्टियाँ पूरी तरह से चुनावी मोड़ में आ गई हैं.मोदी राज्यों में घूम घूमकर हाजारों- लाखों करोड़ रुपये की विकास योजनाओं के शिलान्यास से अपने चुनावी अभियान का श्री गणेश कर चुके हैं.उनके सहयोगी दल जेडीयू के नेता बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पहले से ही एससी/एसटी और अल्पसंख्यक छात्रों के लिए विशेष योजनाओं की शुरुवात करने के साथ साथ आरक्षण का नया राग छेड़ चुके हैं.

हर पार्टी अपने नफे-नुकशान के हिसाब में जुटी है.कोई एक मुश्त ढेर सारा वोट बटोर लेने के लिए ज्यादा जनसँख्या वाली जातियों पर नजर टिकाये हुए है वहीं कुछ पार्टियाँ छोटे मोटे नेताओं के पेबंद लगा लगाकर अपनी पार्टी के वोट बैंक को दुरुस्त करने में जुटी हैं.इसबार बिहार में पेबंद की सबसे ज्यादा दरकार बीजेपी को है.लालू यादव के आरजेडी के पास एकमुश्त बड़ा वोट अल्पसंख्यकों और यादवों का है और इससे मुकाबले के लिए बीजेपी को हर छोटे-बड़े नेताओं के पाबंद की दरकार है.

आगामी चुनाव में कांग्रेस और आरजेडी गठबंधन तय है.लेकिन फिर भी दोनों की कोशिश अपने एकमुश्त वोट बैंक को दूसरे छोटे छोटे दलों के नेताओं के पेबंद से और मजबूत कर लेने की चल रही है.अचानक कांग्रेस ज्यादा सक्रीय हो गई है. कांग्रेस के शीर्ष नेताओं का बिहार दौरा लगातार जारी है.संगठन को चुस्त-दुरुस्त करने बिहार कांग्रेस के प्रभारी शक्ति सिंह जी-जान से जुटे हैं.

लेकिन केंद्र और राज्य की सत्ता पर काबिज बीजेपी बहुत तेज रफ़्तार से चुनावी ट्रेन दौड़ा रही है.पार्टी का महासंपर्क अभियान का प्रथम चरण 26 मई से शुरू हो चुका है.यह 11 जून तक चलेगा. दूसरा चरण 23 जून से छह जुलाई तक चलेगा.  नमो ऐप के जरिए बूथ स्तर तक केंद्र सरकार के कार्यों एवं योजनाओं को प्रचारित और प्रासारित करने की विशेष योजना पर काम तेजी से चल रहा है. मुहिम चलाकर जिला, मंडल एवं बूथ स्तर के पदाधिकारियों को नमो ऐप से जोड़ा जा रहा है, जिसमें केंद्रीय योजनाओं का जिक्र है. मुद्रा एवं उज्ज्वला योजना की रफ्तार बढ़ा दी गई है.बीजेपी के लिए चुनाव की तैयारी में पहले से ही संघ जुटा हुआ है.संघ अबतक एक लाख से ज्यादा लोगों को सक्रीय सदस्य बना चूका है.अब ये सक्रीय सदस्य बिहार के घर घर जाकर संघ के विचारधारा का बीज बो रहे हैं.

पहलीबार जदयू की तरफ से पार्टी कैडर तैयार करने के लिए विशेष अभियान चलाया जा रहा है.पार्टी के तीन लाख सक्रिय सदस्यों को 25-25 नए सदस्य बनाने का टास्क दे दिया गया है.जेडीयू के वरिष्ठ नेता आरसीपी सिंह का कहना है कि बहुत जल्द पार्टी के सदस्यों की संख्या 75 लाख से ज्यादा हो जायेगी.यानी जेडीयू के पास अगले चुनाव में मदद के लिए एक बड़ा पार्टी कैडर की फ़ौज होगी. चुनाव जीतने के लिए प्रत्येक बूथ पर जदयू के 10-10 कार्यकर्ता तैनात किए जाएगें .

लेकिन सबसे बड़ा सवाल –क्या बीजेपी और जेडीयू के लिए आगामी लोक सभा का चुनाव पिछले चुनाव की तरह आसान होगा.जबाब है बिलकुल नहीं.इसबार बिहार के राजनीतिक समीकरण बदले हुए हैं.पिछले चुनाव में जब नीतीश कुमार लालू यादव के साथ थे लोगों ने केंद्र के लिए बीजेपी को और बिहार के लिए नीतीश कुमार को चूना था .लेकिन आरजेडी नेताओं का कहना है कि इसबार नीतीश कुमार के फिर से बीजेपी में चले जाने और लालू यादव के परिवार के खिलाफ लगातार हो रही कारवाई को लेकर यादवों और मुसलमानों की जबर्दश्त गोलबंदी हुई है. लालू प्रसाद यादव की पुराने राजनीतिक समीकरण “माय” (मुस्लिम-यादव)  को फिर से दुरुस्त करने में तेजस्वी यादव जी-जान से जुटे हैं. तेजस्वी अपने समर्थकों को समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि उनके पिता और परिवार को शाजिष के तहत फंसाया जा रहा है.लोकसभा चुनाव में भले ही आरजेडी को सिर्फ चार सीटें मिली हों लेकिन वधान सभा चुनाव 80 सीटों के साथ फिर सबसे बड़ी पार्टी बनने के बाद आरजेडी नेताओं के हौसले बुलंद हैं.तेजस्वी मेहनत भी खूब कर रहे हैं.अब पार्टी में लालू यादव की जगह भी ले चुके हैं.लेकिन अभी भी उनके समर्थकों को लगता है कि राजनीति के नए खिलाड़ी हैं.और उन्हें बीजेपी और नीतीश कुमार जैसे धुरंधर खिलाड़ी बहुमत आ जाने पर भी सरकार बनाने और चलाने नहीं देगें.उनका मुकाबला केवल लालू यादव जैसा मंजा हुआ खिलाड़ी ही कर सकता है.

वैसे सभी दलों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है सीटों के बंटवारे को लेकर .एनडीए में तो घमाशान जारी है ही ,कांग्रेस भी इसबार आरजेडी पर दबाव बनाकर ज्यादा से ज्यादा लोक सभा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटी है.लेकिन सच्चाई यहीं है कि ज्यादा दबाव बनाने की स्थिति में न तो कांग्रेस पार्टी है और ना ही नीतीश कुमार.

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