EXCLUSIVE: एक बेटे की जुबानी, माता के कलयुग में चीरहरण की कहानी

City Post Live

सिटी पोस्ट लाइव ( आकाश ): भोजपुर जिले के बिहियां में एक महिला के चीरहरण की कहानी हिला देनेवाली है. वैसे तो इस चीरहरण को लेकर जितने मुंह उतनी बातें हो रही हैं. लेकिन इसका आँखों देखी हाल बयान किया है उस बेटे ने जिसकी आँखों के सामने उसकी माता का चीरहरण हो गया और वह कुछ नहीं कर सका. अभिषेक ( काल्पनिक नेम) अपनी माता के चीरहरण की कहानी बताते बताते बिलखने लगता है. उसे यह बात साल रही है कि उसकी आँखों के सामने उसकी माता का चीरहरण हो गया और वह कुछ नहीं कर सका.

अभिषेक ब्रह्मपुर से भगवान शंकर का जलाभिषेक कर उसी दिन वापस घर लौटा था. जब वह घर में सो रहा था कुछ लोगों ने उसके घर पर हमला बोल दिया. घर में आग लगा दी. दरवाजे तोड़ने लगे.भीड़ ने घर में घुसकर उसकी माँ को बाहर घसीट लिया.वह भागना चाहती थी लेकिन जब उसे लगा कि भागने का कोई रास्ता नहीं है, उसने आत्म-समर्पण कर दिया. वह रोटी बिलखती रही. हाथ जोड़कर लोगों को अपने बेक़सूर होने की दुहाई देती रही लेकिन भीड़ ने उसकी नहीं सुनी. किसी ने उसकी साड़ी फाड़ दिया तो किसी ने ब्लाउज नोंच दिया. वह स्तब्ध खड़ी थी भीड़ के बीच और भीड़ उसे नोंच रही थी.अभिषेक कहता है कि भीड़ में जाने का मतलब था ,जान देना. अपनी आँखों को ढक वह खड़ा स्तब्ध था. अभिषेक कहता है कि उसकी माँ का कसूर बस इतना भर था कि एक युवक की लाश उसके घर से सटे फेंकी हुई मिली थी.

अभिषेक कहता है कि ये कैसा न्याय है, जहाँ आरोपी को सफाई देने तक का मौका नहीं मिलता .वगैर सबूत के शक के आधार पर जिस तरह की सजा उसकी माँ को दी गई है, वह तो मौत से भी बदतर है. बब्लू कहता है कि पुलिस, कोर्ट और सरकारी व्यवस्था किस काम का, जब भीड़ ही फैसला लेने लगेगी और ऐसी तुगलकी सजा देने लगेगी. अभिषेक आगे रोते हुए बताता है कि अगर उसकी माँ ने ज्यादा विरोध किया होता अपने चीरहरण का तो भीड़ उसे जान से मार देती. लेकिन वह स्तब्ध खडी थी. ईश्वर के भरोसे उसने अपने आपको छोड़ दिया था. जान तो बाख गई लेकिन उसका परिवार जीने लायक नहीं बचा.

अभिषेक कहता है कि जिन गलियों में खेलते कूदते वह जवान हुआ ,उन्हीं गलियों में उसके माँ का दिल दहला देनेवाला चीरहरण हुआ. यह चीरहरण महाभारत के द्रौपदी के चीरहरण से ज्यादा खौफनाक था और चीरहरण करनेवाले एक नहीं सैकड़ों दुशासन थे. उसकी माता का चीरहरण करनेवाली भीड़ उन्मादी, अनियंत्रित और हिंसक थी. मां के शरीर से एक-एक कर कपड़े नोच डाले. मेरी मां मदद के लिए गुहार लगाती रही लेकिन लोग उसका वीडियो बनाते रहे. उसे मारते-पीटते रहे. मेरी मां को निर्वस्त्र कर शहर की उन गलियों में घुमाया गया जिससे मेरे और मेरे परिवार का जन्मों से नाता-रिश्ता  है.

अभिषेक सोमवार का दिन और तारीख अगस्त की 20 तारीख को कभी भुला नहीं पायेगा.इस दिन जो चीरहरण हुआ वैसा चीरहरण आजतक हिंदुस्तान ने नहीं देखा होगा. यह चीरहरण एक महिला का नहीं बल्कि औरत समाज का था.इस चीरहरण की घटना के पीछे चाहे जो भी मंशा या राजनीति रही हो, इससे यह साबित हो गया कि समाज में संवेदना नाम की चीज नहीं बची है.इतनी शर्मनाक वारदात को सैकड़ों हजारों लोग जिस तरह से सेलेब्रेट करते नजर आये, वह किसी भी महिला को हिला देने के लिए काफी है. किसी को सजा देने के नाम पर समाज ने महिला बिरादरी को नंगा कर दिया.

अभिषेक अपनी मां को पूरी तरह निर्दोष बताते हुए  कहता है कि वो कैसी महिला थी इसका सबूत बिहियां के लोग दे सकते हैं. अभिषेक फिलहाल पुलिस सुरक्षा में है. कैमरे के सामने उसे बोलने की इजाजत नहीं है. वह बेचैन है, खौफजदा है और बेहद विवश और लाचार है. उसकी समझ में ये बात नहीं आ रही है कि आखिर उसकी मां को न्याय कैसे मिलेगा? वह समाज में कैसे जिंदा रह पायेगा. वह बार बार अपने परिवार के साथ साथ अपनी मौत की भीख मांग रहा है. वह चाहता है कि जिस समाज ने उसकी माँ को नागा किया है वहीँ उसे और उसकी माँ को ख़त्म कर दे तभी न्याय हो पायेगा.

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