सिटी पोस्ट लाइव :नीतीश कुमार ने BJP के साथ भी बहुत दिनों तक चलाई लेकिन किसी मंत्री की हैसियत नहीं थी उनसे सवाल जबाब करने की.अब जब नीतीश कुमार महागठबंधन की सरकार चला रहे हैं, उनके मंत्री उनके कामकाज के तरीके पर ही सवाल उठा रहे हैं.उनके सुशासन पर ही प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं.कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने नीतीश कुमार के कृषि रोड मैप पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि ‘इन दोनों कृषि रोड मैप से राज्य के किसानों को कोई लाभ नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि दूसरे और तीसरे कृषि रोड मैप का लाभ-हानि का आकलन ही नहीं किया गया. ये दोनों फेल हो गए. न तो किसानों की आमदनी ही बढ़ी और न ही उत्पादन बढ़ा. यह तो नंगी आंख से दिख रहा है कि ये असफल रहे.’
मंत्री सुधाकर सिंह नीतीश कुमार के सुशासन पर भी सवाल उठा चुके हैं.उन्होंने ने ही एक सभा में कहा था कि उनके विभाग में चोर भरे पड़े हैं और वे चोरों के सरदार हैं. इसके बाद कैबिनेट की बैठक में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ भी उनकी तनातनी हो गई थी.उन्होंने कहा कि बिहार और बिहार से बाहर की संस्था दोनों कृषि रोड मैप का सामाजिक और आर्थिक अध्ययन करेगी कि उसके सही परिणाम सामने क्यों नहीं आए? पहला कृषि रोड मैप महज 6 हजार करोड़ रुपए का था.दूसरा डेढ़ लाख करोड़ रुपए और तीसरा एक लाख करोड़ रुपए का था. इतने खर्च के बावजूद उत्पादन नहीं बढ़ा और जनसंख्या बढ़ती गई तो हमने क्या व्यवस्था की.उन्होंने कहा कि प्रति व्यक्ति को जो न्यूट्रिशन मिलना चाहिए, वह नहीं मिल रहा होगा. नतीजा है कि राज्य के लोगों की ऐवरेज हाइट अन्य राज्यों के मुकाबले नहीं बढ़ रही. इतना खर्च होने के बावजूद जब रिजल्ट नहीं हुआ तो हम देखेंगे कि आगे कृषि में किस तरह से खर्च किया जाए.
सुधाकर का मन्ना है कि किसानों की न्यूनतम आय सुनिश्चित की जानी चाहिए.उसके लिए पूरे मार्केटिंग के तंत्र को बदला होगा. खेती के इनपुट कॉस्ट को घटाने के लिए रिसर्च करना होगा. किसानों ने पर्यावरण की रक्षा की है इसलिए नए कृषि रोड मैप में एग्रो फॉरेस्टी मजबूती से रहेगा.एग्रो बेड्स खेती के अलावा हॉटिकल्चर, गौवंश संवर्धन पर ध्यान देना होगा.जो हम उत्पादन करेंगे, उसका न्यूट्रिशन वैल्यू बेहतर बनाने के लिए लंबा काम करना होगा.ताकि राज्य के लोगों को गुणवत्तापूर्ण भोजन मिल सके. हर खेत तक पानी हम सुनिश्चित नहीं कर पाए हैं, वहां तक पानी पहुंचाना है.
मंत्री ने कहा कि जिन खेतों में खेती नहीं होती या जो ड्राई लैंड है, उसमें वैकल्पिक खेती पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। आबादी बढ़ रही है और खेती घट रही है. क्रॉप पैटर्न को बदला जाएगा. जैसे कि मखाना की खेती गलत दिशा में जा रही है. जिस जमीन पर मल्टी क्रॉप हो सकता है, उसमें भी मखाना उपजाया जा रहा है.चौर के इलाके में जहां कुछ और नहीं होता वहां मखाना की खेती करनी चाहिए. हमारे पास नौ लाख हेक्टेयर चौर है. मखाना की खेती की हार्वेस्टिंग नहीं हो पा रही. इसकी मशीन चार-पांच करोड़ में इजाद हो सकती है.
सुधाकर सिंह ने कहा कि जरूरी नहीं कि चौथे कृषि रोड मैप की राशि बहुत ज्यादा हो. हम किसानों को टेक्निकल सपोर्ट देना चाहते हैं. हम किसानों को बाजार देना चाहते हैं. डोमेस्टिक और इंटरनेशनल मार्केट तक। उसके लिए ढांचा खड़ा करना चाहते हैं.किसान अभी भी खेती पर 97 रुपए खुद का खर्च कर रहे हैं. सरकार मुश्किल से तीन रुपए की मदद कर रही है. सरकार का रोल सिर्फ सब्सिडी देना नहीं है. हमारा रोल रिसर्च के जरिए गुणवत्तापूर्ण बीज देने, कम फर्टिलाइजर टेक्नोलॉजी के जरिए खेती के उपाय बताने का भी है. बड़ी बात यह कि किसान उत्पादन तो कर ले रहा है.पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आगे किसान हार जा रहे हैं. न्यूनतम मूल्य से नीचे डिस्ट्रेस मूल्य पर किसान अनाज बेच रहे हैं.
सरकार के फार्म और किसान के फार्म के अनाज में अंतर देख लें तो पता चल जाएगा कि किसान बेहतर उत्पादन कर रहे हैं. हमें किसानों की क्षमता पर तनिक भी शक नहीं है. किसान और बेहतर कर सकते हैं उन्हें बस यह आशा होनी चाहिए कि उनकी उपज का सही मूल्य बाजार में मिल जाएगा. उन्होंने कहा कि फरवरी से पहले चौथा कृषि रोड मैप नहीं आ पाएगा.