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शुचिता की राजनीति की बात बिहार में बेमानी, धनबल-बाहुबल की जानिए कहानी

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सिटी पोस्ट लाइव :राजनीति का अर्थ समय के साथ बदल गया है.राजनीति का एक जमाने में अर्थ और मकसद होता था नीति के राज की स्थापना लेकिन अब राजनीति का अर्थ और मकसद दोनों बदल गया है.आज राजनीति का मकसद है किसी तरह से राज पर काबिज होने की नीति.आज कोई शरीफ और गरीब आदमी चुनाव लड़ने की सोंच भी नहीं सकता.चुनाव में धन बल का इतना जोर है कि अच्छे लोगों के राजनीति में आने का रास्ता ही बंद हो गया है.अब राजनीति में धन बल वालों और बाहुबलियों की बहार है.

बिहार के 160 विधायक (MLA) यानी 67 प्रतिशत विधायक करोड़पति हैं. ज्यादातर अपराधिक रिकॉर्ड वाले विधायक हैं. जाहिर है राजनीतिक सुचिता की बात अब पुराणी हो गई है. सियासी पार्टियां धन पशुओं और बाहुबलियों को ही अपना उम्मीदवार बना रही हैं.आज हम इस विडियो में  ऐसे ही धनबलियों और बाहुबलियों (Bahubali) की बात करेगें जो बिहार की राजनीति में अपनी गहरी पैठ बना चुके हैं.

सबसे बात करते हैं JDU प्रत्याशी पूनम देवी यादव की.इनकी बात सबसे पहले इसलिए क्योंकि ये सबसे अमीर महिला उम्मीदवार हैं और एक बड़े बाहुबली रणवीर यादव की पत्नी हैं. पूनम देवी खगड़िया से विधायक हैं और इसबार भी जेडीयू उम्मीदवार हैं. इनकी  कुल संपत्ति- 41 करोड़ 34 लाख रुपए है.इनके पति रणवीर यादव नरसंहार मामले में सज़ायाफ्ता हैं.

दूसरे नेता हैं अजीत शर्मा जो भागलपुर से विधायक और कांग्रेस उम्मीदवार हैं.इनकी कुल संपत्ति- 40 करोड़ 57 लाख रुपए है. ये अपराधी तो नहीं लेकिन धनबल में बहुत आगे हैं.

बाहुबलियों की बात हो और अनंत सिंह की चर्चा न हो तो ऐसा हो ही नहीं सकता. अनंत सिंह मोकामा से निर्दलीय विधायक हैं और इसबार आरजेडी के उम्मीदवार हैं.इनकी कुल संपत्ति- 28 करोड़ रुपए है.हत्या, अपहरण समेत कई आपराधिक मामले इनके खिलाफ दर्ज हैं. कभी ये नीतीश कुमार के बेहद ख़ास होते थे लेकिन आज उनके निशाने पर हैं और जेल से ही चुनाव लड़ रहे हैं. ये निर्दलीय चुनाव जीतने का दमखम रखते हैं ऐसे में RJD के उम्मीदवार बन जाने से इनको हराना बेहद मुश्किल है.

धनबल और बाहुबल का सहारा नहीं लेने के सियासी पार्टियों के दावों को ये नेता मुंह चिढ़ाते नजर आते हैं. वैसे इस तरह के सैकड़ों उम्मीदवार हैं जो या तो धन पशु हैं या फिर बाहुबली हैं. टिकट बांटते वक्त बिहार के सभी दल धन और बल का सहारा जरूर लेते हैं, इनमें आरजेडी सबसे आगे है जिसने इस बार के चुनाव में भी दागी और बाहुबलियों या उनकी पत्नी को टिकट थमाया है.

राजवल्लभ यादव नवादा से आरजेडी के पूर्व विधायक हैं. ये  नाबालिग से रेप मामले में सज़ायाफ्ता हैं. इसबार इनकी जगह पार्टी ने इनकी पत्नी विभा देवी को अपना उम्मीदवार बनाया है. ये सैकड़ों करोड़ के मालिक हैं और पत्थर माफिया के नाम से मशहूर हैं. दुसरे RJD के सन्देश विधायक अरुण यादव हैं जो  नाबालिग से रेप के आरोपी हैं और अभी फरार चल रहे हैं. इनकी पत्नी किरण देवी को आरजेडी का टिकट मिला है.

रामा सिंह को भला कौन नहीं जानता .ये वैशाली से पूर्व सांसद हैं . हत्या और अपहरण के आरोपी हैं.रघुवंश बाबू के विरोध के बावजूद आरजेडी में इन्हें एंट्री मिली है और इनकी पत्नी को महनार सीट से आरजेडी का टिकट भी मिला है.

आनंद मोहन शिवहर से पूर्व सांसद हैं. डीएम जी कृष्णैया हत्याकांड में सज़ायाफ्ता हैं.पत्नी लवली आनंद और बेटे चेतन आनंद को आरजेडी ने अपना उम्मीदवार बनाया है.बेटे चेतन आनंद शिवहर सीट से और लवली आनंद को सहरसा से आरजेडी का टिकट मिला है.

राजनीतिक सुचिता का दावा करने वाली जेडीयू भी धनबल और बाहुबल के मामले में पीछे नहीं है. इस बार भी बाहुबलियों और दागियों को टिकट देकर जेडीयू ने बता दिया कि इस मामले में वो भी बाकी से अलग नहीं है. रणवीर यादव खगड़िया से पूर्व विधायक हैं. नरसंहार मामले में सजायाफ्ता, रंगदारी, हत्या की कोशिश का आरोप है.अभी जेल में हैं.इंकी पत्नी पूनम यादव 2005, 2010, 2015 में खगड़िया से जेडीयू विधायक हैं.इस बार भी खगड़िया से पूनम देवी को नीतीश कुमार ने उम्मीदवार बनाया है.

अमरेंद्र कुमार पांडेय कुचायकोट से जेडीयू विधायक हैं. गोपालगंज ट्रिपल मर्डर केस में आरोपी हैं. इन्हें इस बार भी कुचायकोट से जेडीयू का टिकट मिला है. ये गोपालगंज के कुख्यात सतीश पाण्डेय के भाई हैं. गोपालगंज में इनके नाम का सिक्का चलता है. मंजू वर्मा को भला कौन नहीं जानता.चेरिया बरियारपुर से विधायक और पूर्व मंत्री हैं. मंत्री रहते हुए मुजफ्फरपुर में हुए बालिका गृहकांड और आर्म्स एक्ट के मामले में जमानत पर बाहर हैं. नीतीश कुमार ने इन्हें चेरिया बरियारपुर से फिर से जेडीयू का टिकटदे दिया है.

जाहिर है बिहार की राजनीति में  धनबल और बाहुबल का बोलबाला है.इसे ही  चुनाव जीतने की गारंटी माना जाता है. आंकड़े भी इसकी गवाही देते हैं. उम्मीदवार अगर अपराधिक मामलों का आरोपी है तो उसके जीतने की संभावना 15 प्रतिशत होती है. साफ छवि का उम्मीदवार मैदान में उतरे तो जीतने की संभावना मात्र 5 प्रतिशत होती है.

हाल ही में जारी इलेक्शन वाच और एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2005 से अब तक 10,785 उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे. इनमें 30 प्रतिशत ऐसे थे, जिन्होंने खुद पर लगे आपराधिक आरोपों की घोषणा की. इन दागी लोगों में 20 प्रतिशत ऐसे हैं, जिनके ऊपर गंभीर अपराध के आरोप हैं. जीत के बाद 820 सांसदों और विधायकों का विश्लेषण हुआ तो इनमें 57 प्रतिशत पर आपराधिक आरोप थे, जिनमें 36 प्रतिशत पर गंभीर अपराध के आरोप थे. यानी वही उम्मीदवार ज्यादा जीते जिनपर अपराधिक घटनाओं में लिप्त होने का आरोप है.

रिपोर्ट के मुताबिक चुनाव जीतने के बाद इन धनकुबेरों की संपत्ति में और इजाफा होता चला जाता है. साल 2005 से अब तक सभी उम्मीदवारों के पास औसतन 1.09 करोड़ की संपत्ति थी. जीत के बाद औसत संपत्ति बढ़कर 2.25 करोड़ हो गई. चुनाव मैदान में उतरे स्नातक या उसके अधिक की शिक्षा लेने वालों में 33 प्रतिशत पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. इनमें 21 प्रतिशत शिक्षित उम्मीदवारों पर गंभीर आपराधिक मामलों का आरोप है. कम शिक्षित यानी 12वीं तक की शिक्षा ग्रहण करने वाले उम्मीदवारों में 29 प्रतिशत ही आपराधिक घटनाओं के आरोपी हैं. गंभीर आपराधिक घटनाओं के आरोपी 20 प्रतिशत हैं.

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